खरमास की शुरुआत में करे रुक्मिणी अष्टमी पूजन, जानते है कैसे बढ़ाये वैवाहिक सुख डॉ सुमित्रा जी से 

RAKESH SONI

खरमास की शुरुआत में करे रुक्मिणी अष्टमी पूजन, जानते है कैसे बढ़ाये वैवाहिक सुख डॉ सुमित्रा जी से 

कोलकाता। इस बार हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि १६ दिसंबर २०२२ के दिन रुक्मिणी अष्टमी पर्व मनाया जाएगा। इस दिन धनु संक्रांति, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी कालाष्टमी भी है।

इसी दिन से खरमास की शुरुआत भी हो रही है। 

लक्ष्मीस्वरूपा देवी रुक्मिणी की आराधना वैवाहिक जीवन में खुशहाली और धन में बढ़ोत्तरी करती है।

यह पर्व प्रतिवर्ष पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही मनाया जाता है। 

मान्यताओं के अनुसार इसी दिन द्वापर युग में देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था, वे विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थी। 

उन्हें पौराणिक शास्त्रों में लक्ष्मीदेवी का अवतार कहा गया है। मान्यतानुसार इस दिन विधिपूर्वक देवी रुक्मिणी का पूजन-अर्चन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है ।

घर मे धन संपत्ति का वास होता है और जीवन में दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होती है। 

माना जाता है, कि रुक्मिणी अष्टमी पर श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी की पूजा करने से आर्थिक समस्याओं से निजात मिलती है , धन-धान्य की प्राप्ति होती है, और जीवन के हर कष्टों का अंत होता है ।

बता दें कि रूक्मिणी को देवी लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है। 

रुक्मणि अष्टमी की महत्ता 

 मान्यता के अनुसार पौष मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को ही माता लक्ष्मी ने देवी रुक्मिणी के रूप में जन्म लिया था। रुक्मिणी दिखने में अतिसुंदर एवं सर्वगुणों से संपन्न थी। रूपमणि देखने में अतिसुंदर एवं सर्वगुणो में पूर्ण संपन्न थी। उनके शरीर पर माता लक्ष्मी के समान ही लक्षण दिखाई देते थे, इसीलिए उन्हें लोग लक्ष्मस्वरूपा भी कहते थे। मान्यता है कि जो कोई स्त्री रुक्मिणी अष्टमी का व्रत करती है तो उस पर देवी हमेशा अपनी कृपा बनाए रखती है और उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण करती है।

रुक्मिणी अष्टमी का शुभ मुहूर्त 

रुक्मिणी अष्टमी व्रत आरंभ: १६ दिसंबर २०२२ को सुबह ०१ बजकर ३९ मिनट से शरू होगी और अगले दिन १७ दिसंबर २०२२ की सुबह ०३ बजकर ०२ मिनट पर इसका समापन होगा ।

अभिजित मुहूर्त – दोपहर १२ :०२ – दोपहर १२ :४३ (१६ दिसंबर २०२२ )

रुक्मिणी अष्टमी पूजा विधि 

रुक्मिणी अष्टमी के दिन प्रात: सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। 

– इसके बाद एक पात्र में श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी की प्रतिमा को रखकर दक्षिणावर्ती शंख में स्वच्छ जल भरकर दोनों का जलाभिषेक करें। 

– केसर मिश्रित दूध से दुग्धाभिषेक करें। 

– श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी के चरण स्वच्छ जल से धोएं। 

– पैर धोने के जल में फूलों की पंखुड़ियां डालें। 

– प्रतिमा का स्नान करवाते व्यक्त श्रीकृष्ण शरणम मम: या कृं कृष्णाय नम: का जाप करते रहें।

देवी रुकमणी और श्रीकृष्ण की पूजा 

अब पूजा शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश को विराजित करे।

 इसके बाद एक पाट पर पीला, लाल या नारंगी वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी की प्रतिमा को स्थापित करें। 

– दोनों की कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेंहदी, चंदन, सुगंधित फूल, इत्र आदि से पूजा करें। 

भगवान श्रीकृष्ण को पीला और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र समर्पित करें।

श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी को पंचामृत, तुलसीदल, पंचमेवा, ऋतुफल और मिष्ठान्न का भोग लगाए। 

– दोनों को खीर का भोग विशेष रूप से लगाएं और भोग की सभी सामग्री में तुलसी दल डालें। 

– शुद्ध घी का दीपक जलाएं और आरती उतारें। 

– शाम को फिर से इसी विधि-विधान से श्रीकृष्ण और रुकमणी देवी का पूजन करें।

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