वसंत पंचमी को ही क्यों मनाई जाती है सरस्वती पूजा जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्राजी से ब्रह्मवैवर्त पुराण में क्या लिखा है 

RAKESH SONI

वसंत पंचमी को ही क्यों मनाई जाती है सरस्वती पूजा जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्राजी से ब्रह्मवैवर्त पुराण में क्या लिखा है 

सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल

सिटी प्रेसीडेंट इंटरनेशनल वास्तु अकादमी 

कोलकाता। वसंत पंचमी उत्तरी भारत तथा पश्चिम बंगाल में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है वसंत पंचमी का त्यौहार। हमारे धार्मिक ग्रंथों में वसंत को ऋतुराज अर्थात् सब ऋतुओं का राजा माना गया है। वसंतपंचमी वसंत ऋतु का एक प्रमुख त्योहार है। वसंतपंचमी का त्योहार मानवमात्र के हृदय के आनंद और खुशी का प्रतीक कहा जाता है। वसंत ऋतु में प्रकृति की सौंदर्य निखर उठती है और उसकी अनुपम छटा देखते ही बनती है

होली का आरंभ भी वसंतपंचमी से ही होता है। इस दिन प्रथम बार गुलाल उड़ाई जाती है। उत्तर-प्रदेश में इसी दिन से फाग उड़ाना आरंभ करते हैं, जिसका अंत फागुन की पूर्णिमा को होता है। 

भगवान् श्रीकृष्ण इस त्योहार के अधिदेवता हैं, इसलिए व्रजप्रदेश में राधा तथा कृष्ण का आनंद-विनोद बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन किसान अपने नए अन्न में घी, गुड़ मिलाकर अग्नि तथा पितरों को तर्पण करते हैं। 

ब्रह्मवैवर्त पुराण में क्या दिया है 

ब्रह्मवैवर्त पुराण के कथा अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण ने इस दिन देवी सरस्वती पर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। इसीलिए विद्यार्थी तथा शिक्षाप्रेमियों के लिए यह मां सरस्वती के पूजन का महान पर्व है। 

चरक संहिता में क्या लिखा है 

चरक संहिता में लिखा है कि कामदेव वसंत के अनन्य सहचर हैं। अतएव कामदेव व रति की भी इस तिथि को पूजा करने का विधान है।

पूजन विधि-

विधान यह त्योहार माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन नित्य कार्य करके शरीर पर तेल से मालिश करें। फिर स्नान के बाद आभूषण धारण कर पीले वस्त्र पहनें। ब्राह्मणों को पीले चावल, पीले वस्त्र दान करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन विष्णु भगवान् के पूजन का माहात्म्य बताया गया है और ज्ञान की देवी सरस्वती के पूजन का विशेष विधान है। 

कलश स्थापित करके गंध, पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि से षोडशोपचार विधि से पूजन करें। 

इस दिन भगवान् गणेश, सूर्य, विष्णु और शिव को गुलाल लगाना चाहिए। गेहूं और जो की बालियां भी भगवान् को अर्पित करने का विधान है। सरस्वती-पूजन के पश्चात् शिशुओं को तिलक लगा कर अक्षरज्ञान प्रारंभ कराने की की प्रथा है। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें। 

पौराणिक कथा : 

ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख आया है-

जब प्रजापति ब्रह्मा ने भगवान् विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की रचना की, तो वे उसे देखने के लिए निकले। उन्होंने सर्वत्र उदासी देखी। सारा वातावरण उन्हें ऐसा दिखा जैसे किसी के पास वाणी ही न हो। सुनसान सन्नाटा, उदासी भरा वातावरण देखकर उन्होंने इसे दूर करने के लिए अपने कमंडलु से चारों तरफ जल छिड़का। उन जलकणों के वृक्षों पर पड़ने से वृक्षों से एक देवी प्रकट हुई, जिसके चार हाथ थे। उनमें से दो हाथों में वह वीणा पकड़े हुए थी तथा उसके शेष दो हाथों में से एक में पुस्तक और दूसरे में माला थी। संसार की मूकता और उदासी भरे वातावरण को दूर करने के लिए ब्रह्माजी ने इस देवी से वीणा बजाने को कहा। वीणा के मधुर स्वरनाद से जीवों को वाणी (वाक्शक्ति) मिल गई। सप्तविध स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती पड़ा। वीणावादिनी सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरणा है। वह विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई है, जिनकी पूजा-आराधना में मानवकल्याण का समग्र जीवन-दर्शन निहित है। इसीलिए वसंत पंचमी को इनका विधि-विधान से पूजन करने का नियम बनाया गया है।

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