जन्मपत्रिका का रोग से क्या सम्बन्ध है -जानते है जीवन में कब कोनसी बीमारी होगी – डॉ सुमित्रा जी से निदान भी जानेंगे
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता
इंटरनेशनल वास्तु अकादमी
सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
कोलकाता। जन्मपत्रिका में ग्रहो की स्थिति सब कुछ बता देती है। ग्रहों की प्रकृति त्रिगुणात्मक है तथा सम्पूर्ण प्रकृति एवं मानव शरीर भी त्रिगुणात्मक है। अतएव इनमें एक लयबद्धता विद्यमान रहती है। जीवन में कब क्या घटेगा ये तो बताया ही जाता है साथ ही ये भी बताना संभव है कब फ्रैक्चर होगा , कब ऑपरेशन होगा, किस अंग का ऑपरेशन होगा , क्या आँखों की समस्या होगी या नहीं, शरीर के किस अंग में कष्ट होगा, मृत्यु का कारण बीमारी होगी या नहीं। ग्रहों का स्वभाव सदैव रोगकारक नहीं होता। ग्रह कुछ विशेष स्थितियों में ही मनुष्य के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य में विकार उत्पन्न करते हैं।
जन्मपत्रिका में विशेष क्या देखे –
रोगों के सम्बन्ध में ग्रहों की स्थितियों के आधार पर विचार किया जाता है। छठे भाव में स्थित ग्रह, अष्टम भाव में स्थित ग्रह, बारहवें भाव में स्थित ग्रह, छठे भाव का स्वामी, छठे भाव के स्वामी के साथ स्थित ग्रह। सभी ग्रह ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति के अनुसार रोगोत्पत्ति के कारण बनते हैं।
कोनसा ग्रह कोनसी बीमारी देगा –
सूर्य ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने से सूर्य रोग कारक की स्थिति में होता है और मन्दाग्नि, अतिसार, हृदय रोग, नेत्र रोग, चर्मरोग, पित्त रोग, वात प्रकोप आदि शारीरिक रोग तथा चित्त व्याकुलता तथा अपस्मार आदि मानसिक रोगों का कारण बनता है।
चन्द्रमा ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने से चन्द्रमा रोग कारक स्थिति में होता है और रक्त विकार, कफ रोग, पीलिया, जलोदर, निद्रारोग, आलस्य. तथा अनेक प्रकार के रोगों का कारण बनता है।
मंगल ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने से मंगल रोग कारक स्थिति में होता है और प्रकोप, विषपीड़ा, नेत्ररोग, चर्मरोग, अंग या हड्डी का टूटना आदि शारीरिक रोग तथा अपस्मार आदि रोग को उत्पन्न करता है।
बुध ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने से बुध रोग कारक स्थिति में होता है और कर्ण रोग, आंत्र रोग, उदर विकार, संग्रहणी ,भ्रान्ति, जड़ता तथा मूच्छा आदि रोग का कारण बनता है।
गुरु ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने से गुरु रोग कारक स्थिति में होता है और आंत्र स्वर, कर्ण रोग, कफ,मोहजन्य, शोकजन्य, मूर्च्छा आदि रोगो का कारण बनता हैं।
शुक्र ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने के कारण शुक्र रोग कारक स्थिति में होता है और मोतियाबिन्द, मूत्र रोग, वीर्य विकार, सन्धि रोग, क्षय रोग, स्त्रीजन्य रोग, नपुंसकता, कामोन्माद आदि रोग पैदा करता हैं।
शनि ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने के कारण शनि रोग कारक स्थिति में होता है और पेट रोग, उदरशूल, सन्धि रोग, कफजन्य रोग, स्नायुरोग, भ्रान्ति आदि रोगो को जन्मा देता है।
राहु ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने के कारण राहु रोग कारक स्थिति में होता है और हृदय रोग, विष, कीटाणुओं के रोग, पैर में चोट, गंडमाला , अरुचि, अपस्मार तथा प्रभार आदि रोग उत्पन्न होते हैं।
केतु ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में स्थिति में होने के कारण केतु रोग कारक स्थिति में होता है और श्वेत कुष्ठ, गर्भस्राव, चर्मरोग, विष व्याधि, चिन्ताग्रस्तता आदि रोग होते हैं।
उपाय
उन सभी ग्रह जो ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में हो उनके मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
मंत्र
सूर्य मन्त्र
ॐ घृणि सूर्याय नमः।
चन्द्र मन्त्र
ॐ सों सोमाय नमः ।
बुध मन्त्र
ॐ बुं बुधाय नमः ।
गुरु मन्त्र
ॐ बृं बृहस्पतये नमः ।
शुक्र मन्त्र
ॐ शुं शुक्राय नमः ।
शनि मन्त्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः ।
राहु मन्त्र
ॐ रां राहवे नमः ।
केतु मन्त्र
ॐ कें केतवे नमः ।
ग्रह के मन्त्र की जप संख्या
सूर्य ग्रह के मन्त्र जप संख्या ७०००
चन्द्र ग्रह के मन्त्र जप संख्या ११०००
बुध ग्रह के मन्त्र जप संख्या ८०००
गुरु ग्रह के मन्त्र जप संख्या १९०००
शुक्र ग्रह के मन्त्र जप संख्या ११०००
शनि ग्रह के मन्त्र जप संख्या २३०००
राहु ग्रह के मन्त्र जप संख्या १८०००
केतु ग्रह के मन्त्र जप संख्या १७०००
मेरे अनुभव के आधार पर ये बोल सकती हु की अगर जन्मपत्रिका के सभी ग्रह जो ६, ८, १२ स्थितियों में युति, दृष्टि, इष्ट या अनिष्ट भाव तथा राशि में हो उनके ऊपर बताये गए मंत्र और ऊपर बताई गयी जप संख्या करने से निश्चित फल की प्राप्ति होती है।