त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में खास क्या है जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा जी से त्रिदेवो के विषय में
कोलकाता। अभी सावन माह चल रहा है और इस माह में शिवजी के मंदिरों में दर्शन और पूजन करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। शिवजी के १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है नासिक के पास स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग। इस मंदिर के संबंध में मान्यता है कि यहां स्थित शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था यानी इसे किसी ने स्थापित नहीं किया था। ये मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है।
त्र्यंबकेश्वर की कथा
यहां प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में ब्रह्मगिरी पर्वत पर देवी अहिल्या के पति ऋषि गौतम रहते थे और तपस्या करते थे। क्षेत्र में कई ऐसे ऋषि थे जो गौतम ऋषि से ईर्ष्या करते थे और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते थे। एक बार सभी ऋषियों ने गौतम ऋषि पर गौहत्या का आरोप लगा दिया। सभी ने कहा कि इस हत्या के पाप के प्रायश्चित में देवी गंगा को यहां लेकर आना होगा। तब गौतम ऋषि ने शिवलिंग की स्थापना करके पूजा शुरू कर दी। ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी और माता पार्वती वहां प्रकट हुए। भगवान ने वरदान मांगने को कहा। तब ऋषि गौतम से शिवजी से देवी गंगा को उस स्थान पर भेजने का वरदान मांगा। देवी गंगा ने कहा कि यदि शिवजी भी इस स्थान पर रहेंगे, तभी वह भी यहां रहेगी। गंगा के ऐसा कहने पर शिवजी वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप वास करने को तैयार हो गए और गंगा नदी गौतमी के रूप में वहां बहने लगी। गौतमी नदी का एक नाम गोदवरी भी है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों एक साथ शिवलिंग में स्थापित हैं
त्र्यंबकेश्वर मंदिर बहुत ही प्राचीन है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग हैं। ये तीन शिवलिंग ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाने जाते हैं। त्र्यबंकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मगिरी को शिव स्वरूप माना जाता है। नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है। गंगा द्वार पर्वत पर देवी गोदावरी यां गंगा का मंदिर है। मूर्ति के चरणों से बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो कि पास के एक कुंड में जमा होता है।
कब करें दर्शन
वैसे तो यहां हर समय भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग के सबसे अच्छा समय सावन का माना जाता है, क्योंकि सावन में भगवान शिव की पूजा करना और दर्शन करना शुभ माना जाता है। यहां आप सुबह ५ बजे से लेकर रात ८ बजे के बीच दर्शन के लिए जा सकते हैं। मुकुट दर्शन के लिए सोमवार को शाम 4 बजे से ८ बजे के बीच जा सकते हैं।