छत्तरपुर के आद्यकात्यायनी देवी जी के मंदिर का वास्तु पक्ष जानते है वास्तु शास्त्री सुमित्रा से
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
कोलकाता
कोलकाता
कोलकाता छत्तरपुर गांव में आद्यकात्यायनी देवी का विशाल मंदिर का निर्माण सन् १९७४ में बाबा संतनागपाल महाराज ने एक रमणीय वातावरण में करवाया। यह पूरा मंदिर परिसर ७० एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इस परिसर में निर्मित श्री मार्क अलग डेय मण्डप, मातगामण्डप, लक्ष्मी विनायक, गौरी शिव मंदिर बहुत ही आकर्षक है।
मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर तीन मेहराब हैं जो शक्ति, स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक हैं। देवी का मंदिर उत्कृष्ट अलंकरणों से युक्त है।मंदिर परिसर के अंदर, कई अन्य मंदिर हैं जिन पर हिंदू पौराणिक कथाओं से धार्मिक रूपांकनों को चित्रित करने वाली जटिल नक्काशी है, जैसे भगवान कृष्ण की बांसुरी , रामायण महाकाव्य के दृश्य। रंग-बिरंगे फूलों के पैटर्न से भी सजाया गया है, जो इस ऐतिहासिक संरचना की सुंदरता को बढ़ाते हैं।
वास्तुशास्त्रीय पक्ष -सफ़ेद पथरो से बना ये आद्यकात्यायनी देवी का मंदिर पूर्वाभिमुख है।
इस मंदिर में प्रवेश करते ही एक हल्का पीला रंग तथा सफेद संगमरमर से निर्मित भगवान् शंकर का मंदिर है जिससे होकर मुख्य मंदिर में प्रवेश किया जाता है। प्रवेश करते ही मुख्य मंदिर के बांयी तरफ धरातल से पाँच फुट ऊंचाई पर शिव मंदिर है इसके मंडप में प्रवेश करने के लिए सात सीढ़ि है। निचे जाने के लिए इसके दोनों ओर ढालू मार्ग भी है। यह मंडप चार स्तम्भों पर आधारित है। शिव मंदिर के बाहर नन्दी मंडप बनाया गया है। काले रंग के पत्थर से नन्दी है जिनका मुख भगवान शिव की ओर हैं। मंदिरो में मूर्तियों की उचाई का विशेष महत्वा है। नंदी की ऊँचाई शास्त्रानुकूल है।
गर्भा गृह –
गर्भगृह तीन भागों में विभक्त है – प्रथम भाग में नन्दी मंडप, द्वितीय भाग में काले पत्थर से निर्मित शिवलिंग स्थापित है, इसके ऊपर चाँदी से निर्मित नागराज है।
शिवलिंग की विशेषता ये है की यह शिवलिंग १ फुट गहराई में स्थित है जो चाँदी के छत्र से आच्छादित है।
गर्भगृह के तीसरे भाग में शिवलिंग के सामने २ फुट ऊंचा चाँदी का सिंहासन है। सिंघासन पर पीतल से निर्मित भगवान शिव व माँ पार्वती की प्रतिमाएं स्थापित है। इस मंदिर के ठीक दाहिनी ओर श्री माँ आद्यकात्यायनी का दो मंजिला मुख्य मंदिर है। मंदिर की लम्बाई ३५ फुट तथा चौड़ाई २५ फुट हैऔर यह ५१ फुट ऊँचा है।
माँ आद्यकात्यायनी के मंदिर में प्रवेश करते ही एक वर्गाकार मंडप है जो चार स्तम्भों पर आधारित है। तीन गर्भगृह है जिसमें क्रमश: हनुमान, रामदरबार एवं राधाकृष्ण जी की प्रतिमाएं ऊंचे आसन पर स्थापित है।
इसकी प्रथम तल पर दक्षिणावर्त २२ सीढ़ियाँ चढ़कर माँ आद्यकात्यायनी के मंदिर में प्रवेश किया जाता है यह मंडप भी वर्गाकार तथा स्तम्भों पर आधारित है। शास्त्रियसमत ये निर्माण मैं कोशांति और शक्ति प्रदान करता है। तीन फुट ऊंचे आसन पर माँ आद्यकात्यायनी की अष्टधातु से निर्मित सुन्दर मूर्ति है। यह गर्भगृह २१ फुट के विशाल शिखर से आच्छादित है।
मंदिर का शिखर कलश एवं ध्वजादि वास्तुशास्त्रानुकूल है। वास्तुसम्मत मंदिर न केवल सुखद अनुभव देता है बल्कि सभी कामनाओं को पूरा करने वाला होता है।
वास्तु में शिखर का विशेष महत्व है – शिखर अगर अनुचित मान का बन जाये तो -अधिक दीर्घ का शिखर कुलनाश करता है, न्यून हो तो नाना व्याधियाँ उत्पन्न होने का भय रहता है।
माँ के मंदिर के मुख्य मंदिर से लगा हुआ दक्षिण की ओर एक विशाल मण्डप है जिसके एक ऊँचे चबूतरे पर माँ की विशाल प्रतिमा स्थापित है इसके ऊपर तीन विशाल शिखर निर्मित है। मंडप में बांयी ओर के कक्ष में बाबा नागपाल जी १९८३ तक निवास किए उनकी मृत्यु के बाद यह कक्ष श्री माँ के शयनकक्ष हो गया है | मंदिर में वृहद् शय्याकक्ष, श्रृंगारमञ्च तथा नौ देवियों के विचारविमर्श के लिए बैठक कक्ष बनाया गया है।
वास्तु के दृश्टिकोण से इस प्रासाद में गर्भगृह से बाहर सभामण्डप के सामने प्रासाद के बीच में पर्याप्त खाली स्थान छोड़ा गया है।
हजारों भक्त के एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करने के लिए मार्कण्डेय मण्डप बहुत ही विशाल बनाया गया है। नवरात्रों व उत्सवों पर माँ के दर्शन की सभी व्यवस्था यहीं से प्रारम्भ होती है।