भोले नाथ की जटाओं में गंगा का रहस्य जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
कोलकाता। भोले नाथ ही जटाओं में गंगा का रहस्य
भगवान भोलेनाथ की महिमा के साथ ही उनका रूप भी निराला है। महादेव अपने मस्तक पर चंद्रमा, हाथों में त्रिशूल, गले में सर्प और जटा में गंगा धारण किए हैं। इन सभी का खास महत्व और कारण है। सावन के इस महीने में जानते हैं कि आखिर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में क्यों धारण किया। हिंदू पुराणों के अनुसार, मां गंगा पहले देवलोक में रहा करती थी। इसलिए उन्हें देवनदी के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं। शिवजी ने मां गंगा को धरती पर अवतरित कराने के लिए उन्हें अपनी जटाओं में बांध लिया। शिव पुराण में इस कथा के बारे में जिक्र किया गया है।
शिवजी की जटाओं में गंगा का रहस्य
पौराणिक हिंदू कथाओं के अनुसार महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए स्वर्गलोक से मां गंगा को धरती पर लाने की ठानी और इसके लिए कठोर तप किए। भगीरथ की तपस्या से खुश होकर मां गंगा धरती पर आने के लिए मान गईं। लेकिन समस्या यह थी कि मां गंगा सीधे धरती पर नहीं आ सकती थीं। उन्होंने भगीरथ से कहा कि, धरती उनका तेज वेग सहन नहीं कर पाएगी और वे रसातल में चली जाएंगी। इसके बाद भगीरथ ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उन्होंने अपनी समस्या बताई। ब्रह्माजी ने भगीरथ को भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कहा।
देव लोक से शिवजी की जटाओं में पहुंची गंगा
भगीरथ ने कठोर तपस्या की और भोलेनाथ उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए। जब भोलेनाथ ने भगीरथ से वरदान मांगने के लिए कहा तो भगीरथ ने उन्हें सारी बात बताई। भगवान भोलेनाथ ने गंगा के वेग से पृथ्वी को बचाने के लिए अपनी जटाएं खोल दी और इस तरह से मां गंगा देवलोक से उतर कर शिवजी की जटा में समा गईं और शिव जी ने सहर्ष मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया। इसलिए भी भोलेनाथ के कई नामों में उनका एक नाम गंगाधर है। शिव जी की जटाओं में आते ही मां गंगा का वेग कम हो गया।
इस तरह शिव की जटा से उतरी भागीरथी गंगा कहलाई जाह्नवी :
भगवान शिव की जटा से उतरी गंगा का वेग कम तो हुआ लेकिन धरती पर उनके रास्ते में आने वाली तमाम बाधाओं को मां गंगा बहाती चल रही थी। इसी बीच में सुल्तानगंज स्थित जिस पहाड़ी पर महर्षि जह्नु तप कर रहे थे, उस पहाड़ी में गंगा के वेग से कंपन हुआ और महर्षि जह्नु की तपस्या बाधित हो गयी। महर्षि जह्नु ने क्रोधावेश में तपोबल से पूरी गंगा को ही अपनी अंजुरी में भरकर पी लिया। कहते हैं जब भगीरथ ने अपने पीछे गंगा को आते नहीं देखा तो संशय से भर उठे। जानकारी मिली कि गंगा को तो महर्षि जह्नु ने उदरस्थ कर लिया है। अनुनय-विनय पर महर्षि जह्नु ने आंखें खोली और जाना कि देवनदी गंगा का पान कर लिया है तो बड़े असमंजस में पड़ गये। भगवान ब्रह्मा के सामने दुविधा बताई कि मुंह से निकालूं तो गंगा जूठी हो जाएगी, लघुशंका से निकालूं तो और अशुद्ध हो जाएगी। तब ब्रह्मदेव ने बताया कि महर्षि जह्नु अपनी कनिष्ठा उंगली से अपनी जंघा में चीरा लगाएं तो गंगा वहीं से पुनर्प्रवाहित हो जाएगी। इस तरह महर्षि जह्नु की जंघा से निकलकर गंगा उनकी पुत्री मानी गयी। तभी उन्हें महर्षि जह्नु की सुता जाह्नवी का नया नाम मिला। इसके बाद मां गंगा उस स्थान पर पहुंची जहां भगीरथ के पूर्वजों की राख पड़ी थी। मां गंगा का स्पर्श होते ही भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हुई।