गर्भधान रक्षा के उपाय और मंत्र के बारे मे जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से कैसे भगवान वासुदेव ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की
Kolkata। गर्भधान रक्षा के उपाय और मंत्र गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा के लिए गर्भरक्षक श्रीवासुदेव सूर्य का उपयोग किया जाता है। यह एक ज्योतिष उपयोग है, जिससे शिशु की रक्षा होती है और गर्भपात का खतरा नहीं रहता।
मां बनने वाली महिला के साथ ही पूरा परिवार भी यह चाहता है कि, नन्हे मेहमान का जन्म स्वस्थ और सुरक्षित हो। इसके लिए गर्भवती महिला के खान-पान, व्यायाम, रहन-सहन और चिकित्सीय उपचार आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है. क्योंकि जरा भी भूल-चूक होने पर गर्भपात होने का खतरा रहता है।
कारगर होता है गर्भरक्षक श्रीवासुदेव सूत्र
ज्योतिष में गर्भपात को रोकने के लिए गर्भरक्षक श्रीवासुदेव सूत्र के उपयोग को कारगर माना गया है। इससे गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा होती है और उसपर कोई आंच नहीं आती। इस सूत्र को लेकर कहा जाता है कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा भी गर्भरक्षक श्रीवासुदेव सूत्र से ही हुई थी।
महाभारत में मिलता है वर्णन
गर्भरक्षक सूत्र को लेकर महाभारत युद्ध की एक घटना है। जिसके अनुसार महाभारत युद्ध में दुर्योधन के सभी भाई मारे जा चुके थे और अंत में भीम ने भी दुर्योधन को मार दिया। वहीं दूसरी ओर गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के भीतर पांडवों से बदला लेने की आग धधक रही थी। उस समय अर्जुन की पुत्रवधु और अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा गर्भवती थी। पांडवों से बदला लेने और उसके आने वाले वंश का नाश करने के लिए अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर अमोघ ब्रह्मास्त्र चलाया।
तभी श्रीकृष्ण के कानों में उत्तरा की आवाज सुनाई पड़ी और श्रीकृष्ण ने तुरंत ही अपने माया कवच से उत्तरा के गर्भ को ढक दिया। इस तरह भगवान वासुदेव उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु के रक्षक कवच बने और अश्वत्थामा द्वारा चलाया गया अमोघ ब्रह्मास्त्र निष्फल हो गया।
गर्भरक्षक श्रीवासुदेव सूत्र और कैसे करें इसका उपयोग
• गर्भरक्षक श्रीवासुदेव सूत्र कच्चे धागे से बनाया जाता है और इसे मंत्र से अभिमंत्रित करने के बाद गर्भवती महिला को धारण करना होता है। धार्मिक मान्यता है कि इससे गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा होती है और गर्भपात नहीं होता है।
• गर्भरक्षक सूत्र बनाने के लिए पहले गर्भवती महिला को स्नानादि के बाद साफ कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद श्रीकृष्ण, गणेश और नवग्रह की शांति पूजा करें।
• इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुखकर बैठ जाएं। घर की कोई अन्य महिला जोकि शुद्ध हो वह कच्चा सूत्, केसरिया धागा या रेशम के धागे से गर्भवती महिला के सिर से पैर तक ७ बार माप लें और धागे को सात तह कर लें।
• अब गर्भरक्षक श्रीवासुदेव मंत्र ‘ओम अंत:स्थ: सर्वभूतानामात्मा योगेश्वरो हरि: स्वमाययावृणोद् गर्भ वैराट्या: कुरुतन्तवे स्वाहा’ का २१ बार जाप करते हुए धागे में गांठ लगाएं। इस तरह से धागे में २१ गांठे लग जाने के बाद पूजा-पाठ करें।
• गर्भवती महिला भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए गर्भ रक्षा की प्रार्थना करें और इस धागे को अपने गले , बाएं हाथ के मूल या फिर कमर में पहन लें।
• गर्भरक्षक श्रीवासुदेव सूत्र को बनाने, पूजा पाठ करने और अभिमंत्रित करने के लिए आप किसी पुरोहित या ज्योतिष से सलाह ले सकते हैं।
• इस तरह से विधि-विधान से गर्भरक्षक श्रीवासुदेव सूत्र को धारण करने से गर्भ की रक्षा होती है।
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गर्भरक्षक सूत्र को धारण करने पर इन नियमों का करें पालन
• गर्भरक्षक सूत्र को शिशु के जन्म के सवा महीने तक पहने रहें और इसके बाद इसे जल में प्रवाहित कर दें.
• प्रसव के सवा महीने बाद नया सूत्र बनवाकर बच्चे के गले में पहना सकते हैं.
• गर्भरक्षक सूत्र को धारण करने पर गर्भवती महिला को किसी सूतक या पातक वाले घर में जाने से बचना चाहिए. यानी जिस घर में किसी की मृत्यु हुई हो या शिशु का जन्म हुआ हो ऐसे घर पर न जाएं.
• गर्भरक्षक सूत्र धारण करने वाली महिला को मांसाहार भोजन भी नहीं करना चाहिए.