द्वादश भाव – जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा जी से
कोलकाता। जन्म कुण्डली में द्वादश भाव को व्यय भाव के नाम से जाना जाता है। द्वादश भाव से व्यय, हानि, घाटा, दिवाला, मुकदमेबाजी, व्यसन, बाहरी स्थानों से सम्बन्ध, शत्रुता का विरोध, नेत्र- पीड़ा, फिजूलखर्ची, अतिरिक्त एवं आकस्मिक खर्चे, मोक्ष एवं मृत्यु पश्चात् प्राणी की गति, छोटा चाचा, छोटी बुआ, मामा, ससुर, मौसी, सास, शयन सुख, भोग विलास तथा वीर्य विसर्जन आदि का विचार किया जाता है। द्वादश भाव से कभी-कभी पांवों का भी विचार किया जाता है।
1. द्वादश भाव और गुणों का अतिव्यय का विचार : द्वादश भाव व्यय का है। व्यय में अपव्यय भी सम्मिलित है। अतः यदि पाप ग्रह द्वादश भाव में बिना किसी शुभ प्रभाव के स्थित हो तो निज गुणों में अपव्यय और अतिव्यय करते हैं और द्वादश भाव में शुभ ग्रह पाप प्रभावों में उपस्थित हो तो व्यक्ति को नशे का व्यसनी भी बनाता है। जैसा ग्रह द्वादश भाव में उपस्थित होगा जातक उससे सम्बन्धित वस्तुओं का अतिव्यय करता रहता है, जैसे बुध हो तो जातक वाणी का अतिव्यय करता है और शुक्र हो तो वीर्य का अतिव्यय करता रहता है।
2. द्वादश भाव और दृष्टिहानि का विचार : द्वादश भाव में सूर्य अथवा चन्द्रमा का पापयुति अथवा पाप दृष्टि में स्थित होना आँखों को दृष्टिहानि देता है क्योंकि द्वादश भाव बायीं आँख है और सूर्य और चन्द्र ज्योतियाँ होने से आँख के प्रतीक हैं। द्वादश भाव पाप प्रभाव में हो तथा सूर्य एवं चन्द्र भी पाप प्रभाव में हो तो आँखों की दृष्टि में हानि प्रदान करता है।
3. द्वादश भाव और भोग-विलास की प्राप्ति का विचार शुक्र भोग-विलासप्रिय ग्रह माना गया है यह ग्रह भोग विलास स्थान अर्थात् सप्तम् एवं द्वादश में अच्छा फलदायक माना गया है। अतः द्वादश भाव में शुक्र की स्थिति जातक को भोग-विलास में वृद्धि देता है। यदि द्वादश भाव में शुक्र स्वगृही हो जाए तो जातक को महान् भोग सामग्री प्रदान करने वाला योग है। अर्थात् इस योग के फलस्वरूप मनुष्य बहुत धनाढ्य तथा सुखी हो जाता है। शुक्र की द्वादश स्थिति जातक को कुछ व्यभिचारी भी बनाती है।
4. द्वादश भाव और कामान्धता योग विचार: यदि द्वादशेश सप्तम् भाव में और सप्तमेश द्वादश भाव में स्थित हो और शुक्र के प्रभाव में हो अथवा सप्तमेश एवं द्वादशेश एक साथ पंचम्, सप्तम् अथवा द्वितीय भाव में उपस्थित हो तो जातक को कामान्धता देता है और काम-वासना. की पूर्ति के लिए सभी सामाजिक बन्धन तोड़ भी देता है।
5. द्वादश भाव और चाचा की मृत्यु का विचार: यदि द्वादश भाव में किसी पाप ग्रह की राशि हो और अपने स्वामी से दृष्ट हो तो अल्पायु में जातक अपने चाचा की मृत्यु देखता है।
6. द्वादश भाव और पाँव के कटने का विचार: काल पुरुष में द्वादश स्थान पाँव का है। यदि द्वादश भाव, द्वादशेश, गुरु तथा मीन राशि पर पाप प्रभाव युति अथवा दृष्टि द्वारा पड़ रहा हो तो मनुष्य (जातक) को पाँव में चोट, रोग आदि से कष्ट देता है। यदि यह पाप प्रभाव मंगल का हो और न केवल लग्न से द्वादश द्वादशेश पर हो बल्कि चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न से भी द्वादशेश पर हो तो जातक का पाँव कट जाता है।
7. द्वादश भाव और धनदायक योग : द्वादशापति की तृतीय, षष्ठ अष्टम् में जब स्थित हो और उस पर केवल पाप प्रभाव हो, शुभ प्रभाव बिल्कुल भी न हो तो विपरीत राजयोग की सृष्टि होती है जो अतुलनीय धन प्रदान करने वाला योग होता है। प्रायः धनाढ्य अथवा अरबपतियों की कुण्डलियों में ऐसा योग देखा गया है।
8. द्वादश भाव और पति का अन्य स्त्री से प्रेम का विचार यदि स्त्री जातक की जन्म कुण्डली हो और उसमें राहू षष्ठेश, एकादशेश का योग द्वादश भाव तथा उसके स्वामी से हो तो स्त्री के भोग-सुख अन्यत्व को प्राप्त होते हैं। अर्थात् उसके पति के साथ भोगने वाली कोई अन्य स्त्री हो जाती है। जिसके फलस्वरूप पति अपनी स्त्री के अतिरिक्त दूसरी स्त्रियों से भोग का व्यवहार रखता है।
9. द्वादश भाव और मोक्ष का विचार : यदि लग्न या लग्नेश का तथा नवम् का सम्बन्ध गुरु से हो तथा गुरु अथवा केतु द्वादश भाव में उपस्थित हो तो जातक जीवन में सद्कर्मों के कारण मोक्ष प्राप्त करता है।