सेवनिवृत हुए ताप विद्युत गृह की जगह ज्वाइंट वेंचर के माध्यम से बनाई जा रही नई कंपनी का अभियंता संघ ने किया पुरजोर विरोध

RAKESH SONI

अमरकंटक ताप विद्युत गृह मे मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी के पूर्ण स्वामित्व में हो पावर हाउस का निर्माण

सेवनिवृत हुए ताप विद्युत गृह की जगह ज्वाइंट वेंचर के माध्यम से बनाई जा रही नई कंपनी का अभियंता संघ ने किया पुरजोर विरोध

मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर हस्तक्षेप हेतु किया अनुरोध। 

सारणी। मध्य प्रदेश विद्युत मंण्डल अभियंता संघ द्वारा माननीय मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मांग किया गया है, कि प्रदेश की सेवनिवृत हो चुकी विद्युत इकाइयों की जगह प्रदेश एवम विद्युत उपभोक्ताओ के हित मे मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड (मध्य प्रदेश शासन का उपक्रम) के पूर्ण स्वामित्व में ही ताप विद्युत गृह का निर्माण कराया जाए । मध्य प्रदेश उत्पादन कंपनी द्वारा अमरकंटक ताप विद्युत गृह में विद्युत उत्पादन की क्षमता में वृधि करने हेतु 1X660 MW कि नवीन इकाई की स्थापना हेतु, MPPGCL एवं SECL के बीच MoU हस्ताक्षरित कर एक जॉइंट वेंचर कंपनी का गठन करने का निर्णय लिया गया है, जो कि उत्पादन कंपनी के कार्मिकों एवं प्रदेश हित में कतई उचित नहीं है । प्रदेश में विगत दो दशक से घरेलू उद्योग कृषि एवं वाणिज्यिक क्षेत्रों में विद्युत की माँग तेजी से बढ़ी है। इसी तारतम्य में प्रदेश की वर्तमान विद्युत क्षमता में भविष्यात्मक वृद्धि के द्रष्टिगत म.प्र.पॉ.ज.कं.लि. अमरकंटक एवं सतपुड़ा ताप विद्युत गृह में सेवानिवृत्त हुई इकाईयों के स्थान पर (1X660 MW) सुपर‍ क्रिटिकल तकनीक पर आधारित नवीन इकाईयों की स्थापना हेतु लम्बे अंतराल से निरंतर प्रयासरत है। 

      अभियंता संघ के महासचिव विकास शुक्ला ने बताया कि अमरकंटक ताप विदयुत परियोजना हेतु मध्य-प्रदेश शासन द्वारा प्रदेश की बढ़ती विदयुत मांग का अनुमान लगाने एवं तदअनुसार प्रदेश की तापीय विदयुत क्षमता बढ़ाने हेतु नए ताप विदयुत गृहों के निर्माण की आवश्यकता हेतु एक कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी द्वारा वर्ष 2018 में जारी अपनी रिपोर्ट में वर्ष 2024-25 से वर्ष 2027-28 तक के कालखंड में प्रदेश में 660MW की चार नवीन ताप विदयुत ग्रहों के निर्माण की अनुशंसा की गयी थी एवं यह स्पष्ट उल्लेखित किया गया था की इसमें से दो इकाइयों का निर्माण मध्य-प्रदेश विदयुत उत्पादन कंपनी (MPPGCL) द्वारा अनिवार्य होगा । इसके बावजूद परियोजना लगत 70:30 (अर्थात 70% ऋण + 15% GoMP + इक्विटी 15% SECL इक्विटी) के अनुपात का प्रावधान रखने हेतु निर्देशित किया गया है, जो कि अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। आज दिनांक पूर्व जो भी प्रदेश हित में ताप विदयुत ग्रहों का निर्माण किया गया है वे सभी 80:20 के अनुपात में ही किया गया है। अर्थात परियोजना में प्रस्तावित कुल लागत में से 20% राज्यांश पूँजी तथा 80% अन्य स्त्रोतों से ऋण व्यवस्था का प्रावधान रखा गया, फिर अमरकंटक कि नवीन इकाई हेतु ही 70:30 समझ से परे है। 

      महासचिव विकास शुक्ला द्वारा बताया गया कि परियोजना लागत लग-भग रु 5000 हजार करोड़ है, जिसका 15% (रु 750 करोड़) शासन द्वारा स्वीकृत किया जा चुका है एवं MPERC द्वारा प्रदेश की समस्त तापीय विदयुत परियोजनाओं हेतु 80% ऋण प्राप्त करने कि पात्रता का प्रावधान है। परियोजना लागत का मात्र 5% (रु 250 करोड़) हेतु एक अन्य कंपनी के हाथों सम्पूर्ण परियोजना हस्तांतरित करना क्या अनुचित नहीं होगा? जिसमें की शासन का पूर्ण स्वामित्व भी नहीं होगा। जबकी उत्पादन कंपनी द्वारा रु 250 करोड़ की व्यवस्था भी आगामी पाच वर्षों उपरांत अन्य स्त्रोतों से (स्क्रैप विक्रय, जल शुल्क माफी, सेवानिवृत यूनिटों कि नीलामी, MPPMCL पे विद्युत विक्रय बकाया और SECL/WCL/NCL द्वारा विवादित बकाया राशी) संकलित कुल राशि रु 9700/- करोड़ होती है, इसके बावजूद मात्र रु. 250 करोड़ की उपलब्धता ना बताते हुए SECL के साथ संयुक्त उपक्रम में जाना प्रदेश में दूरगामी दुष्परिणाम परिलक्षित करेगा जो प्रदेश हित मे नहीं होगा । साथ ही विद्युत मंत्रालय; भारत सरकार द्वारा दिसम्बर 2010 में इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2003 के सेक्शन 3 के तहत “विद्युत टैरिफ पालिसी” के स्पष्टीकरण का खुला उलंघन होगा, जिसके अनुसार वितरण लाइसेंसधारियों द्वारा विद्युत क्रय अनुबंध (PPA) के द्वारा विद्युत क्रय किसी नए विद्युत उत्पादक से किया जाना संभव नहीं है। गौर किया जाना चाहिए कि कथित अमरकंटक नवीन परियोजना हेतु PPA (विद्युत क्रय अनुबंध) अनुमति ‘राज्य नियंत्रित/स्वामित्व वाली कंपनी’ होने एवं ‘मौजूदा परियोजनाओं के विस्तार’ के कारण ही प्राप्त हुई है, जिसे एक प्राइवेट कंपनी के नाम पर स्थानांतरित कदापि नहीं किया जा सकता है । यदि ऐसा किया गया तो उस परिश्थिती में जॉइंट वेंचर कंपनी द्वारा विद्युत क्रय अनुबंध म.प्र.पॉ.मै.कं.लि. के साथ TBCB (अर्थात प्रतिस्पर्धात्मकता) के माध्यम से प्राप्त करना होगा । 

 महासचिव विकास शुक्ला द्वारा यह भी बताया गया कि परियोजना हेतु समस्त स्वीकृतियां जैसे कि पर्यावरणीय, जल, कोयला, भूमि, वन्य भूमि, विदयुत संधारण एवं 100% ऊर्जा हस्ताक्षरण हेतु पी.पी.ए., म.प्र.पॉ.मै.कं.लि. के नाम से काफी लम्बे समय एवं अत्यधिक प्रयासों के उपरान्त प्राप्त हुए है, ऐसे में फिर समस्त स्वीकृतियों को एक नवीन कंपनी के नाम पे स्थानांतरण में व्यर्थ समय गवानां एवं उसमें अतरिक्त पूंजी व्यय करना पूर्णत अनुचित होगा एवं कथित स्वीकृतियों को पुन: एक नवीन संस्था के नाम पे स्थानान्तरण की वजह से परियोजना में विलंभ होगा, जिससे प्रदेश का ही नुकशान होगा । इसके अतिरिक्त, वर्ष 1965 से कार्यशील अमरकंटक ताप विद्युत परियोजना के प्रान्गण के भीतर एक नवीन प्राइवेट कंपनी के गठन से विभिन्न विवादास्पत स्थितियों के निर्मित होने कि संभावनाओं को भी टाला नहीं जा सकता जैसे की राख संधारण, जल संधारण, तेल एवं कोयले कि उचित गणना, कॉलोनी, कार्टर, रेस्ट हाउस आदि ।  

    महासचिव विकास शुक्ला द्वारा अनुरोध किया गया है कि प्रदेश हित को देखते हुए मध्य-प्रदेश शासन द्वारा गठित कमिटी एवं MPERC की अनुशंसा अनुसार (अर्थात “660 MW कि दो इकाइयों का निर्माण मध्य प्रदेश विद्युत उत्पादन कंपनी द्वारा अनिवार्य रूप से करना” एवं “राज्य कि कुल विद्युत् मांग में न्यूनतम 30% प्रदेश की स्वयं की उत्पादन छमता रखना”) और विभिन्न पहलुओं पे गंभीरता से विचार करते हुए प्रदेश हित में अमरकंटक तापीय परियोजना में उत्पादन कंपनी द्वारा मध्य-प्रदेश शासन कि पूर्ण स्वामित्व वाले नवीन पावर हाउस की स्थापना हेतु, तत्काल संबंधितों को निर्देशित किया जाए। जिससे प्रदेश विद्युत् उत्पादन में आत्मनिर्भर बना रहे। इससे प्रदेश की ना केवल चोहमुखी उन्नति होगी अपितु प्रदेश की आमजनता भी अपने आप को सुरक्षित महसूस करेगी ।

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