श्री जाम्भोजी का पुण्य दिवस आज
राजस्थान। राजस्थान की भूमि वीरों और संतों की जन्मस्थली रही हैं. यहाँ राणा प्रताप, मीराबाई, बाबा रामदेव जंभेश्वर भगवान जैसे वीर और संत जन्मे।
राजस्थान का एक जिला हैं नागौर। मरुस्थलीय प्रदेश के इस जिले में मुख्यत कृषि और पशुपालन का व्यवसाय ही होता हैं. नागौर शहर से ठीक 50 किमी उतर में एक स्थान हैं, पीपासर. आज से तक़रीबन 500 साल पूर्व रोलोजी पंवार नाम से एक राजपूत रहा करते थे।
जो पैतृक व्यवसाय के रूप में कृषि और पशुपालन का ही कार्य किया करते थे. इसके दो बेटे और एक बेटी थी. रोलोजी के बड़े बेटे का नाम लोहटजी और छोटे बेटे का नाम पूल्होजी एवं बेटी का नाम तांतु देवी था. बड़े होने पर लोहट जी का विवाह हांसा देवी के साथ सम्पन्न हुआ।
जंभेश्वर भगवान का जन्म और इतिहास
राजस्थान की भूमि वीरों और संतो की जन्मस्थली रही हैं. यहाँ राणा प्रताप, मीराबाई, बाबा रामदेव जैसे वीर और संत जन्मे. इसी का एक जिला हैं नागौर।
मरुस्थलीय प्रदेश के इस जिले में मुख्यत कृषि और पशुपालन का व्यवसाय ही होता हैं. नागौर शहर से ठीक 50 किमी उतर में एक स्थान हैं, पीपासर।
आज से तक़रीबन 500 साल पूर्व रोलोजी पंवार नाम से एक राजपूत रहा करते थे. जो पैतृक व्यवसाय के रूप में कृषि और पशुपालन का ही कार्य किया करते थे।
इसके दो बेटे और एक बेटी थी. रोलोजी के बड़े बेटे का नाम लोहटजी और छोटे बेटे का नाम पूल्होजी एवं बेटी का नाम तांतु देवी था. बड़े होने पर लोहट जी का विवाह हांसा देवी के साथ सम्पन्न हुआ।
पीपासर में बसे लोहाट जी धर्मप्रिय इंसान थे. वे मुख्य रूप से कृषि और पशुपालन का कार्य किया करते थे. गाँव के सबसे सम्मानित व धनी इंसान लोहाट जी मुश्किल की घड़ी में हर इंसान की मदद करने सबसे पहले आते थे।
उन्हें और हंसा बाई को अधेड़ आयु तक कोई सन्तान की प्राप्ति नही हुई. सन्तान सुख के वियोग में वे दिन ब दिन चिंतित रहते थे।
जंभेश्वर भगवान का जन्म
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पंवार राजपूत लोहाट जी के घर जंभेश्वर भगवान ने 1451 को पीपासर में जन्म लिया. कई वर्षो की तपस्या के बाद इकलोती सन्तान होने की वजह से इनको घर-परिवार सभी जगह बड़ा आदर सत्कार प्राप्त हुआ।
कहते हैं. जंभेश्वर भगवान ने अपने आरम्भिक जीवन में मौन व्रत धारण कर रखा था. मात्र आठ साल की आयु से 30 वर्ष के होने तक जंभेश्वर भगवान ने श्री कृष्ण की तरह गाये चराने का कार्य किया।
जब जंभेश्वर भगवान 33-34 वर्ष के थे तब लोहाट जी और माता हंसा बाई का निधन हो गया था. तभी उन्होंने कार्तिक महीने की आठवी तिथि को पीपासर से बीकानेर का समराथल धोरा अपनी कर्म स्थली बनाया।
तक़रीबन 17 वर्षो तक जंभेश्वर भगवान जी ने समराथल में ही रहकर विष्णु की भक्ति करते हुए धर्म प्रचार का कार्य किया।
बालपन में इनके कम बोलने को लेकर लोगों ने जाम्भोजी को गुगा जैसे शब्दों से सम्बोधित कर बुलाया जाने लगा. वे आजीवन हिन्दू समाज में नैतिक उत्थान के लिए कार्य करते रहे. 1452 में जाम्भोजी द्वारा एक नए सम्प्रदाय विश्नोई पन्थ की नीव रखी गईं।
जाम्भोजी ने तालवा गाँव के पास सन 1526 में अपनी देह त्यागी थी. उनकी याद में हर वर्ष फागुन महीने की तेरस को विशाल मेला भरता हैं. जाम्भोजी के गीत और भजनों से उनकी श्रद्धांजलि अर्पित की जाती हैं।
जाम्भोजी का इतिहास और विश्नोई समाज
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जाम्भोजी विश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक थे. इनका जन्म विक्रम संवत् 1508 में (1451 ईस्वी) भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को नागौर जिले के पीपासर गाँव में पंवार लोह्टजी और हाँसा देवी के यहाँ पर हुआ था.
लगभग 20 वर्ष तक पशु चराने का कार्य किया और उसके बाद सन्यास ग्रहण कर लिया और विक्रम संवत् 1593 में देह त्याग किया.
विक्रम संवत् 1542 में जाम्भोजी ने कार्तिक कृष्णा अष्टमी पर समराथल नामक स्थान पर प्रथम पीठ स्थापित करके विश्नोई समाज का प्रवर्तन किया. शासक वर्ग व विशिष्ट वर्ग दोनों ही इनसे प्रभावित थे.
जाम्भोजी के सिद्धांत लोगों के दैनिक जीवन से जुड़े हुए है. जाम्भोजी ने अपने अनुयायियों को 29 नियम पालन करने पर जोर दिया. विश्नोई नाम भी (बीस-नौ) अंको में (20-9) के आधार पर ही दिया.
जाम्भोजी शांतिप्रिय, सह्रदयी, साग्राही, समन्वयकारी, उदार चिंतक, मानव धर्म के पोषक, पर्यावरण के संरक्षक व हिन्दू मुसलमानों में एकता व सामजस्य के समर्थक थे.
अकाल के समय जाम्भोजी ने सामान्य जन की सहायता की थी. उन्होंने बताया कि ईश्वर प्राप्ति के लिए सन्यास की आवश्यकता नही है. समराथल के पास मुकाम नामक स्थान पर वर्ष में दो बार जाम्भोजी का मेला लगता है.
जाम्भोजी ने चारित्रिक पवित्रता और मूलभूत मानवीय गुणों पर बल दिया. इनके वचनों का सामूहिक नाम सबदवाणी है.
जाम्भोजी की शिक्षाओं के कारण ही विश्नोई समाज निरंतर पर्यावरण की रक्षा एवं जीव हत्या के विरोध में प्रयासरत है।
तालवा गाँव जम्भेश्वर के भक्तो का मुख्य तीर्थ स्थली हैं, जंभेश्वर भगवान की समाधि स्थल आज मुक्तिधाम मुकाम राजस्थान के मुख्य धार्मिक स्थलों में शुमार हैं.
हर वर्ष आसोज और फाल्गुन के महीने यहाँ विशाल मेला भरता हैं. जिनमे जंभेश्वर भगवान के अनुयायियों के अतिरिक्त सभी धर्मो के लिए शरीक होते हैं।
बिश्नोई धर्म के 29 नियम
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एक सच्चा बिश्नोई गुरु जम्भेश्वर द्वारा बताए गये इन 29 नियम को अपने जीवन में अपनाता हैं.
“29 धरम कीं आकड़ी, धरियों ज़ोय।
जमभेश्वर करपा करे, बहरी जभ ना होंय। “
सुबह उठने के बाद कोई कार्य करने से पूर्व नहाना.
शील जैसे नैतिक गुणों का पालन करना.
माहवारी के बाद 5 दिन तक स्त्री घर के कार्यो में भागी न बने.
प्रत्येक जन्म सुतक का एक महीने तक पालन करना.
अपने जीवन में संतोष जैसे गुणों को अपनाना.
शरीर और मन को पवित्र बनाए रखे.
संध्या के समय भगवान् का चिंतन कर उनके भजन गाने चाहिए.
मुख्य धार्मिक तिथियों पर घर में पूजा पाठ और हवन करवाएं.
चोरी. न करना
असत्य का पालन करना
परनिंदा से परहेज करना
संयमित वाणी का प्रयोग
भगवान् के विष्णु का व्रत और पूजा पाठ करना.
हरे वृक्षों को कभी ना काटे.
हर महीने की अमावस्या तिथि को व्रत धारण करना.
जल, दूध और जलाने के लिए इंधन को छांटकर उपयोग करे.
दिन के तीनों पहर भगवान् का स्मरण करना.
हमेशा वाद और विवादों से दूरी बनाए रखना.
सभी प्रकार के जीवों की रक्षा करना.
अमल
बीड़ी सिगरेट, तम्बाकू
भाग मदिरा का सेवन
शराब जैसे मादक पदार्थो का सेवन न करना.
नील को छोड़ना.
बैल का कभी बंधन न करना.
खाना खाने व् बनाने से पूर्व हाथों की धुलाई.
गुस्सा लालच जैसे अगुणों से दूर रहना.
मन में हमेशा दया का भाव बनाए रखना.
दया और क्षमा जैसे महागुणों को जीवन का हिस्सा बनाना।