समीक्षक इंदु धूपिया जी की समीक्षा पर संदीप खैरा दीप जी राम कुमारी जी संगीता सिंह जी खरे उतरे

RAKESH SONI

समीक्षक इंदु धूपिया जी की समीक्षा पर संदीप खैरा दीप जी राम कुमारी जी संगीता सिंह जी खरे उतरे।

सारणी:- मनसंगी साहित्य संगम जिसके संस्थापक अमन राठौर जी सहसंस्थापिका मनीषा कौशल जी अध्यक्ष सत्यम जी के तत्वाधान में काव्यधारा समूह पर आयोजित प्रतियोगिता जिसका विषय बेबसी रखा गया उसमें कई रचनाकारों ने विभिन्न राज्यों से भाग लिया अपनी स्वरचित रचनाए प्रेषित की समीक्षक का कार्यभार आदरणीय इंदु धूपिया जी ने बखूबी संभाला इन्होंने कहा सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक है जिससे उन्हें चयन करने में काफी समस्या हुई छोटी छोटी बारीकियों को ध्यान में रखकर उन्होंने प्रथम स्थान संदीप खैरा जी को द्वितीय स्थान रामकुमारी जी तथा तृतीय स्थान संगीता सिंह जी को दिया।

इन सभी रचनाकारो की रचनाएं क्रमबद्ध है।

बेबसी क्या होती है
मजदूर से पूछो
तपती सड़क पर
खुले आसमां के नीचे
स्वेत रक्त बहा कर
दो जून की रोटी से
बच्चों की भूख मिटाता है।
बेबसी क्या होती है
किसान से पूछो
रवि की प्रखर ज्वाल में
पसीना बहाता है
खुद भूखा रहकर
संसार की भूख मिटाता है।
बेबसी क्या होती है
युवाओं से पूछो
बेरोजगारी के कारण
बूढ़े माता पिता की
उम्मीदों को पूरा न कर पाने
अपनी बेबसी पर
आंसू बहाया करते है ।।

संदीप खैरा”दीप”
ग्वालियर, म0प्र0

 

बेबसी

बेबसी ये कैसी अजीब सी,
चेहरे पर आज छाई है ।
कल तक पापा की थी परी ,
रानी बिटिया ससुराल आयी है।

एक ही दिन में बदल गया ,
सारा मंजर जीवन का ये ।
जल्दी उठने की आदत नही,
ये सोचकर घबराई है

कल तक जो धर अपना था,
आज पराया हो गया वो।
चेहरे पर जो कौतुहल था,
आज कही खो गया है वो।

मनचाहा करने की आजादी,
खाने में भी पसंद का खाना ।
कैसा आया पल जीवन मे,
गम और खुशी का ताना–बाना।

कैसे सह पायेगी बो अब,
माता- पिता से इतनी दूरी ।
यहाँ नही अब हो पायेगी ,
कहे बिना ही जरूरत पूरी।

बेबसी है या लाचारी है ,
सारा परिवार व्यापारी है।
दहेजे की लंबी पर्ची थमाई,
खत्म हो गयी पिता की कमाई।

रामकुमारी गंगा नगर मेरठ यूपी

 

 

नमन मंच-मनसंगी काव्यधारा
विधा-कविता
बिषय-बेबसी
बेबसी

बेबस हो गई तेरे जाने से,
नहीं रूठती अब जमाने से।
नहीं छुपता दर्द अब छुपाने से,
नहीं रूकते अश्क नयनों से।।

बेबस कर दिया इतना मुझे,
खुद की परछाई चिढ़ाती है मुझे।
डरती नहीं थी किसी चुनौती से,
डर लगता है अब मुझे खुद से।।

चुपकी छा गई तेरे जाने से,
आ जाओ तुम मेरे बुलाने से।
डरती हूं तुम्हारे खो जाने से,
लौट कर वापस ना आने से।

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