मनसंगी मंच पर आयोजित बोलती तस्वीर प्रतियोगिता मे रवि शंकर,अनुराधा के, जबरा राम जी विजयी हुए।
सारणी:- मनसंगी साहित्य संगम जिसके संस्थापक अमन राठौर जी सहसंस्थापिका मनीषा कौशल जी अध्यक्ष सत्यम जी के तत्वाधान में काव्यधारा समूह पर आयोजित प्रतियोगिता जिसका विषय चित्र आधारित रखा गया उसमें कई रचनाकारों ने विभिन्न राज्यों से भाग लिया अपनी स्वरचित रचनाए प्रेषित की समीक्षक का कार्यभार आदरणीय इंदु धूपिया जी ने बखूबी संभाला इन्होंने कहा सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक है जिससे उन्हें चयन करने में काफी समस्या हुई छोटी छोटी बारीकियों को ध्यान में रखकर उन्होंने प्रथम स्थान रवि शंकर निषाद जी को द्वितीय स्थान अनुराधा के मंगलूर जी तथा तृतीय स्थान डॉक्टर जबरा राम कंडारा जी को दिया।
इन सभी रचनाकारो की रचनाएं क्रमबद्ध है।
बढ़ाकर गर्मी की रुत तुम हमें आजमा रहे हो
आहिस्ता से हवा का बहाना करके फंसा रहे हो
भूख प्यास पर अब नियंत्रण होता नहीं हमारा
तेज कर तपन लू लगने का डर बना रहे हो
भीषण गर्मी में लोगों पर कहर ढा रहे हो
*रवि* जी कमाल है चश्मा लगाकर गदर मचा रहे हो ।।
रविशंकर निषाद (ARVI)
रायगढ़( छत्तीसगढ़)
निकला हूँ सैर करने
प्रकृति में प्राण फूंककर बना हूँ
विशाल नील गगन की शान
अपनी गर्मी से भर देता हूँ
हर जीव राशि में नित जान
पसरा है चहु दिशा में आकर्षण
है मनमोहक चुंबकीय लालिमा
आना है मुझे बाहर धूप लेकर
है मिटानी सारे जग की कालिमा
निकला हूँ दुनियाँ की सैर करने
मुझे भी अब धूप से बचना है।
समंदर के निर्मल नीले पानी में
लेकर डुबकी आनंद से रमना है।
रमणीय प्रकृति के आड़ में
लिए काला चश्मा निकला हूँ
सागर से दोस्ती का हाथ लिए
मदहोश आनंद में रोशनी उगला हूँ
-अनुराधा के.मंगलूरु
नमन मंच
मनसंगी काव्य धारा
प्रतियोगिता
चित्राधारित रचना
दिनांक–27-04-2022
सुबह का सूर्य बाल रूप सा,
कैसा ये मस्ताना है
आंखों पे गर चश्मा हो तो,
लगता रु सुहाना है।।
धीरे-धीरे तपीश ये बढ़ाता,
ज्यों ज्यों दिन चढ़ता है।
आंखें तो जलती ही होगी,
फिर भी क्यों अकड़ता है।।
सजना और सँवरने का तो,
इसका भी मन करता है।
सुबह उदय अस्त शाम को,
फर्ज निभा विचरता है।।
मौसम के अनुसार ही ये,
तपता और तपाता है।
चश्मा पहन लें सूरज भैया,
देख हमें मजा आता है।।
–डॉ.जबरा राम कंडारा
जालोर।राजस्थान।
रचना–स्वरचित व मौलिक