रथ सप्तमी आज  रथ सप्तमी में करें इन सूर्य मंत्रों का जाप।

RAKESH SONI

रथ सप्तमी आज  रथ सप्तमी में करें इन सूर्य मंत्रों का जाप।


धार्मिक। हिंदू धर्म में रथ सप्तमी का विशेष महत्व है। इस दिन स्नान दान के साथ सूर्य को अर्घ्य देने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी कहा जाता है। इसे अचला सप्तमी और सूर्य जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य का जन्म हुआ था। इसी के कारण इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करने से व्यक्ति को हर पापों, दुख-दरिद्रता से मुक्ति मिल जाती है।

रथ सप्तमी की तिथि
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हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 15 फरवरी को सुबह 10 बजकर 12 मिनट पर आरंभ हो रही है, जो 16 फरवरी को सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के हिसाब से रथ सप्तमी 16 फरवरी 2024, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

रथ सप्तमी स्नान का मुहूर्त
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रथ सप्तमी के दिन स्नान दान का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह 05 बजकर 17 मिनट से सुबह 06 बजकर 59 मिनट तक स्नान करना शुभ होगा।

रथ सप्तमी का शुभ योग
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इस साल रथ सप्तमी पर काफी शुभ योग बन रहे हैं। सुबह से लेकर दोपहर 03 बजकर 18 मिनट तक ब्रह्म योग रहेगा। इसके साथ ही सुबह से लेकर सुबह 08 बजकर 47 मिनट तक भरणी नक्षत्र और उसके बाद कृत्तिका नक्षत्र रहेगा।

रथ सप्तमी का महत्व
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्य का जन्म हुआ था। इस कारण इस दिन सूर्य की पूजा करने से व्यक्ति को हर रोग, दोष और भय से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही अर्घ्य देने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और आरोग्य का वरदान मिलता है। माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की पूजा उनके सुनहरे रथ पर बैठकर की जाती है, जो सात सफेद घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। इसके साथ ही सूर्य भगवान के सभी मंदिरों में रथ सप्तमी के दिन विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

रथ सप्तमी में करें इन सूर्य मंत्रों का जाप
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ॐ घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः ।
ॐ सूर्याय नम: ।
ॐ घृणि सूर्याय नम: ।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ

रथ सप्तमी की व्रत कथा
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इस संदर्भ में भविष्य पुराण में एक कथा है कि एक वैश्या ने अपने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया। बुढ़ापे में जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह ऋषि वशिष्ठ के पास गईं। उसने ऋषि के समक्ष अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। तब वशिष्ठ जी ने उन्हें रथ सप्तमी यानी अचला सप्तमी के व्रत का महत्व बताते हुए कहा कि इस दिन यदि कोई व्यक्ति जल को तरल बनाने से पहले किसी दूसरे के जल से स्नान करता है और सूर्य को दीप दान करता है तो उसे बहुत पुण्य मिलता है। वैश्या ने ऋषि के कहे अनुसार रथ सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से शरीर त्यागने के बाद उसे इंद्र की अप्सराओं की मुखिया बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

रथ सप्तमी की पूजा विधि
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– सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद उगते सूर्य को देखें और ‘ओम घृणि सूर्याय नम:’ कहते हुए उन्हें जल चढ़ाएं।
– लाल रोली और लाल फूल मिलाकर सूर्य की किरणों को जल दें।
– सूर्य को जल चढ़ाने के बाद लाल आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
”एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
करुणामयी माता, गृहस्थभक्ति, दिवाकर।”
– ऐसा करने से आपको सूर्य देव का आशीर्वाद मिलेगा और आपको सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलेगा। किए गए काम का फल आपको जल्द ही मिलना शुरू हो जाएगा और आपकी कमियां दूर हो जाएंगी। साथ ही आपके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होगा और आप सफलता की राह पर आगे बढ़ने लगेंगे।

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