मनसंगी मंच पर आयोजित बालविवाह प्रतियोगिता मे रामकुमारी जी, आशीष द्विवेदी जी,प्रियंका लालवानी जी चयनित हुएp

RAKESH SONI

मनसंगी मंच पर आयोजित बालविवाह प्रतियोगिता मे रामकुमारी जी, आशीष द्विवेदी जी,प्रियंका लालवानी जी चयनित हुए

सारणी। मनसंगी साहित्य संगम जिसके संस्थापक अमन राठौर जी सहसंस्थापिका मनीषा कौशल जी अध्यक्ष सत्यम जी के तत्वाधान में काव्यधारा समूह पर आयोजित प्रतियोगिता जिसका विषय *बाल विवाह* रखा गया उसमें कई रचनाकारों ने विभिन्न राज्यों से भाग लिया अपनी स्वरचित रचनाए प्रेषित की समीक्षक का कार्यभार आदरणीय इंदु धूपिया जी ने बखूबी संभाला इन्होंने कहा सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक है जिससे उन्हें चयन करने में काफी समस्या हुई छोटी छोटी बारीकियों को ध्यान में रखकर उन्होंने प्रथम स्थान रामकुमारी जी को द्वितीय स्थान आशीष द्विवेदी साथी जी तथा तृतीय स्थान प्रियंका ललवानी खत्री जी को इनकी

 

रचनाएं निन्मवत है।।

 

मन संगी काव्य धारा /प्रतियोगिता

विषय –बाल-विवाह

 

बाल विवाह है एक बुराई,

जड़ से इसे मिटाना है । 

कन्या जब बालिग हो जाये,

तब ही विवाह कराना है।

 

जिम्मेदारी परिवार की, 

कम से कम वो उठा पायें | 

सोच परिपक्व हो उसकी ,

तब ससुराल में वो जाये।

 

बचपन मत छीनो बेटी का, 

उसे चैन से तुम जी लेने दो ।

पढ़ लिख कर पहले उसको ,

अपने सपने पूरे कर लेने दो ।

 

थोडा रूठने दो उसको,

 तुम जरा नाज उठाने दो ।

जिनको याद कर जी सकें,

थोडी यादे बन जाने दो।

 

उठानी है दोहरी ज़िम्मेदारी,

सबल उसको बन जाने दो।

बचपन की बेपरवाहियो की,

थोड़ी खुशियां मनाने दो।

 

मां की ममता का अहसास,

खयालों मे बस जाने दो।

पिता की खामोशी को जरा,

मधुर अहसास बन जाने दो।

 

संजो ले कुछ अच्छी यादें वो,

समझ ले कुछ ज़िम्मेदारी।

भार जीवन भर ढोना है,

अकेले छुप कर रोना है।

 

रामकुमारी गंगा नगर मेरठ 

 

 

*बाल विवाह* अभिशाप है

निश्चित ही ये पाप है

समय की मांग कभी रहा होगा

अब ये कृत्य श्राप है ।

       

       समाज सुधार जरूरी है

       नारी राष्ट्र की धुरी है

       शिक्षा का अधिकार मिला

       अब कोई ना मजबूरी है ।

बाल विवाह अब रोक दो

ऐसे समाजो को टोक दो

बाल विवाह करके इन्हें 

आग में ना झोंक दो ।

       जागरूकता अभियान हो 

       लोगों में नव गान हो 

       बचपन बचाओ बच्ची का 

       उसमे नव प्राण हो ।

बाल विवाह अभिशाप है 

सभ्य समाज पर दाग है 

अब शादी ना हो बचपन में 

यही समय की मांग है ।

आशीष द्विवेदी *साथी*

 

 

*विषय=बालविवाह*

 

  रिवाजों के नाम पर मासूम बचपन को जला दिया ,

 

एक नन्ही कलि को चूल्हे चौके की आग में तपा दिया ।  

 

क्या हक नहीं था उसको अपनी जिंदगी जीने का , 

 

सपनों के पंख लगा कर मुक्त गगन में उड़ने का , 

 

क्यों दूर कर दिया उसको अपने गुड्डे गुड़ियों से, 

 

बस्ता उठाने की उम्र में गृहस्थी का बोझ दे दिया ,

 

उसकी मोहक मुस्कान को आंसुओं में डुबो दिया , 

 

जो पिता के कंधों पर बैठकर पूरा जग घूमती थी , 

 

उसके नाजुक कंधों पर अनजाने रिश्तो का बोझा ढो दिया ।

 

 बाल विवाह की अग्नि को अब मिलकर हमें बुझाना है , 

 

सामाजिक कुरीतियों को हमें दूर भगाना है ,

 

 हर बेटी को हक है ,सपने पूरे करने का ,

 

गांव गांव तक हमको यही संदेश पहुंचाना

 है ।

 

प्रियंका लालवानी खत्री ,

भोपाल (मध्य प्रदेश)

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