प्रदोष व्रत आज जानते है प्रदोष व्रत के बारे मैं

RAKESH SONI

प्रदोष व्रत आज जानते है प्रदोष व्रत के बारे मैं


धार्मिक। सावन के बाद भगवान शिव का प्रिय कोई व्रत है तो वह है प्रदोष व्रत। अभी अश्विन का महीना चल रहा है, अश्विन माह में देवी दुर्गा के संग शिव आराधना कई गुना फलदायी होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की कृपा जल्दी ही प्राप्त होती है। इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने से भक्त की मनोकामनाएं जरूर पूरी होती है।

शास्त्रों में उल्लेख है कि प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की कृपा जल्दी प्राप्त होती है। वहीं अक्टूबर के महीने में माता दुर्गा के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से सभी तरह की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। साथ ही सेहत भी अच्छा बना रहता है।

अश्विन माह का पहला प्रदोष अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाएगा। जो 12 अक्टूबर दिन गुरुवार को पड़ रहा है। इस दिन अमृत योग का भी निर्माण होने जा रहा है। इस कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत भी कहते हैं। माना जाता है कि प्रदोष काल में शिवलिंग में साक्षात भगवान शिव प्रकट होते हैं। इसलिए प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से दोगुना फल की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत पर पूजा का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 11 अक्टूबर 2023 को शाम 05 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगी। अगले दिन 12 अक्टूबर 2023 को शाम 07 बजकर 53 मिनट पर इसका समापन होगा। 12 अक्टूबर शाम 07 बजकर 53 मिनट पर त्रयोदशी तिथि रहने के कारण प्रदोष व्रत 12 अक्टूबर को ही रखा जाएगा। 12 अक्टूबर को अमृत योग का भी निर्माण होने जा रहा है और अमृत योग में प्रदोष व्रत करना बेहद शुभ माना जाता है।

प्रदोष व्रत के दौरान जलाभिषेक का महत्व

प्रदोष व्रत के दिन अगर आप व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव जी की पूजा करते हैं तो ग्रहों की कुदृष्टि आप पर नहीं पड़ती है। मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव साक्षात शिवलिंग में प्रकट होते हैं। इस दौरान शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से राहु व केतु अशुभता और चंद्रमा का दोष भी समाप्त हो जाता है।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन मान्यतानुसार पूजा की जाए तो भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो सकते हैं। प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान पश्चात व्रत का संकल्प लिया जाता है। भक्त शाम के समय प्रदोष व्रत की पूजा करते हैं लेकिन सुबह शिव मंदिर के दर्शन कर आते हैं। शाम को पूजा करने के लिए बेलपत्र, अक्षत, दीपक, गंगाजल और धूप आदि पूजा सामग्री के रूप में सम्मिलित किए जाते हैं। इसके अलावा, शिवलिंग पर जलाभिषेक कर शिव मंत्रों का जाप होता है।

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