जन्म जन्मांतर के पुण्य के संग्रह के बाद सनातन धर्म में जन्म मिलता है :- पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज

RAKESH SONI

जन्म जन्मांतर के पुण्य के संग्रह के बाद सनातन धर्म में जन्म मिलता है :- पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज

 सारणी। पिछले कई जन्मों के पुण्य का संग्रह हमें सनातन धर्म में जन्म लेने के का अवसर प्रदान करता है । इसे व्यर्थ ही नहीं गंवाना चाहिए और भटकना भी नहीं चाहिए। गायत्री मंत्र के जाप से अगर किसी की व्याधि नहीं जाती है तो वह किसी भी तंत्र या किसी अन्य उपाय से तो बिल्कुल ही नहीं जाएगी। मैं बार-बार कहता हूं कि सनातन धर्म में जन्म लेने के बाद अन्यत्र भटकने से बचें।

उक्त बातें बैतूल के सारनी में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के सातवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।

श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि भजन करने वाला या नहीं करने वाला दोनों की मृत्यु सुनिश्चित है। लेकिन जब हम पुराणों का दर्शन करते हैं तो वहां हमें पता चलता है कि भजन करने वाले को कभी भी नरक का दर्शन नहीं होता है। अर्थात नरक से मुक्ति मिल जाती है। भगत को ले जाने के लिए भगवान के दूत आते हैं ना कि यमदूत।

 पूज्य महाराज जी ने कहा कि हमारे लिए यह भी जानना आवश्यक है कि हम किनका भजन करें। जिस किसी का भजन भी नहीं करना है। आजकल भूत प्रेत पिशाच जोगिनी हाथ की पूजा कर भी परंपरा चल पड़ी है जो बहुत ही घातक स्थिति है। अघोर पंथ की पूजा पद्धति में जाने वाले का एक अंग खराब होना सुनिश्चित होता है।

महाराज श्री ने कहा कि अगर आपको यह पता नहीं है कि हमें किनका भजन करना चाहिए तो सीधे ओम नमः शिवाय का भजन करें। क्या जापान तथा आपको यह बता देगा या वह रास्ता दिखा देगा कि आपको किन का भजन करना चाहिए। अगर आप वैष्णव हैं तो राम जी कृष्ण जी का, शैव हैं तो शिवजी का और शाक्त हैं तो मां भगवती की उपासना करें। यह भी ध्यान रखना है कि देवताओं का पूजन केवल सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए करना होता है जबकि भगवान का भजन परमार्थ यात्रा को सुनिश्चित करने के लिए होता है।

 रामचरितमानस में मनुष्य के जीवन जीने के लिए कई उपयुक्त और बहुत ही सटीक सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं। पूज्यश्री ने बताया जो भी अपना कल्याण, कीर्ति, यश , सुख समृद्धि आदि की चाहत रखता है उसे अपने जीवन में पर स्त्री के ललाट का कभी भी दर्शन नहीं करना चाहिए । हमारी संस्कृति हमेशा से मातृ प्रधान संस्कृति रही है और हम परस्त्री को मातृ भाव से ही देखते आ रहे हैं।

हमारे शास्त्रों का एक सरल सिद्धांत दिया है भी है कि आदमी को सौ कार्य छोड़ कर भी भोजन करना चाहिए, हजार कार्य छोड़कर स्नान करना चाहिए और एक लाख कार्य छोड़कर भी दान करना चाहिए। चाहे वह दान थोड़ा ही हो । लेकिन, यह सभी कुछ छोड़कर के भगवान का भजन करना चाहिए।

भगवान श्रीराम की वन यात्रा प्रसंगों का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया।

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