सब काम सबके लिए नहीं होता है, जाने बिना प्रयोग करने वाले असफल होते हैं : – पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज

RAKESH SONI

सब काम सबके लिए नहीं होता है, जाने बिना प्रयोग करने वाले असफल होते हैं : – पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज

सारणी। भगवान ने धरती पर हर मनुष्य को किसी न किसी विशेष कार्य के लिए ही भेजा है यह जानना आवश्यक है कि हमें प्रभु का कौन सा कार्य संपादित करना है। बिना जाने हाथ पैर मारने से सफलता नहीं मिलती है। माता सीता का पता लगाने का कार्य हनुमान जी के ही हाथों होना था। अतः प्रभु ने उन्हें ही अपनी मुद्रिका सौंपी।

उक्त बातें बैतूल के सारनी में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।

श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि आप अगर भगवान के कृपा चाहते हैं तो उनसे कोई संबंध अवश्य स्थापित करें। क्योंकि मनुष्य वहीं आता जाता है जहां उसका संबंध होता है। और अगर हम भगवान की बात करें तो वह मनुष्य के साथ केवल एक ही नाता मानते हैं वह है भक्ति का नाता है।

श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि भगवान को जाती-पाती, कुल, धन, प्रतिष्ठा अथवा विद्वता से कोई भी लेना देना नहीं है। माता शबरी से स्वयं भगवान ने बताया कि मनुष्य के साथ हमारा केवल भक्ति का ही संबंध होता है।

भगत का कुछ भी अपना नहीं होता है। सब भगवान का ही होता है और वह अपने को प्राप्त हर वस्तु को भगवत कृपा के प्रसादी ही मानकर चलता है। भगत कभी तनाव में नहीं होता ना कभी उससे आप दम्भ की अवस्था में पाते हैं।

 पूज्य श्री ने भगवत प्राप्ति के लिए एक सूत्र दिया और कहा – तुलसी इस संसार में सबसे मिलिए धाय, ना जाने किस वेश में नारायण मिल जाए।

 महाराज श्री ने कहा कि सरल जीवन जीने वाले के लिए ही भगवान स्वयं चलकर मिलते हैं। आप देखें कि भगवान बहुत चलने वालों को नहीं मिले, बल्कि उनकी सच्चे हृदय से प्रतीक्षा करने वालों से स्वयं जाकर मिलते हैं।

बहुत अधिक कामना वालों से भी भगवान के मुलाकात नहीं होती है। “जहां कामना वहां राम ना”। बैठने का अर्थ बेकार बैठे रहना नहीं है बल्कि अपने अंतर में भगवान को स्थापित करने के लिए नियमित भजन करना ही सही तौर पर बैठना है।

 अष्टम दिवस की कथा की समाप्ति पर भव्य आरती का आयोजन किया गया। भगवान श्रीराम की वन यात्रा के प्रसंगों का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे। पूज्यश्री ने दर्जनों भजनों की सुमधुर प्रस्तुति से हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण को झूम कर नृत्य करने के लिए बाध्य कर दिया।

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