मार्कण्डेय पुराण और नवरात्रे – जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
कोलकाता। नवरात्र, दो शब्दों से मिलकर बना है नव तथा रात्र वस्तुतः नव शब्द संख्या का द्योतक है तथा रात्र का अर्थ है रात्रि समूह जो विशेष कालावधि को इंगित करता है अतः नवरात्र शब्द में संख्या एवं काल का मिश्रण है। पौराणिक ग्रंथों में नवरात्र का अर्थ नवअहोरात्र अर्थात् नौ दिन तथा नौ रात्र तक चलने वाला पर्व भी माना जाता है। वस्तुतः यह नवरात्र शब्द नवानां रात्रिणां समाहारः नवरात्रम् से बना है। प्रमुख रूप से प्रचलित चार नवरात्र हैं जो चैत्र, आषाढ़, अश्विन एवं माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक हिन्दुओं में विशेषकर शक्ति उपासकों द्वारा पूर्ण श्रद्धा, भक्ति व उत्साह के साथ शक्ति जागरण महापर्व के रूप में मनाएँ जाते हैं। ये चारों नवरात्र हमारे चार पुरुषार्थी धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के प्रतीक हैं। लेकिन विद्वानों ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए, उक्त चार नवरात्रों का विलीनीकरण कर दो नवरात्रों का प्रचलन किया है। अर्थ को धर्म में तथा काम को मोक्ष में अन्तर्भूत कर धर्म एवं मोक्ष रूपी पुरुषार्थों के प्रतीक रूप में दो ही सर्वमान्य नवरात्र बासंतिक व शारदीय दो नवरात्र के रूप में प्रचलित किया है। अतः भारतीय आध्यात्मिक परम्परानुसार नवरात्र जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर रामनवमी तक चलते हैं जो रामनवरात्र या नव गौरी नवरात्र भी कहलाते हैं। द्वितीय शरदकाल में शारदीय नवरात्र जो अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से दुर्गाष्टमी तक चलते हैं, जो दुर्गानवरात्र भी कहलाते हैं।
नवरात्र हिन्दुओं का महान धार्मिक पर्व है। वासंतिक व शारदीय नवरात्र में हर स्थान, हर घर में माँ जगदम्बा की पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से आराधना की जाती है। साल में ४ से ५ नवरात्रे आते है। नवरात्र का अवसर वस्तुतः ऋतुओं के परस्पर संध्या का काल है। इस समय इस अवस्था में महाशक्ति के उस वेग की धारा जो सृष्टि के सृजन और विध्वंश का कारण है, अधिक तीव्र हो जाती है। तथा शक्ति का आह्वान अधिक सहज व सरल हो जाता है। वस्तुतः इस काल में इडा-पिंगला में वायु गति समान बने रहने से इस समय कुंडलिनी जागरण सरल हो जाता है। इन दिनों प्रत्येक भक्त स्वयं को नवरात्र व्रत के माध्यम से मानसिक रूप से माँ जगदम्बा के अधिक निकट महसूस करता है तथा माँ से साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास करता है। नवरात्र में अखण्ड द्वीप प्रज्वलित किया जाता है। यहाँ नौ (नव) अखण्ड, अद्वैत, शुद्ध -निराकार ब्रह्म अर्थात् ज्ञान का प्रतीक है तथा रात्र, अंधेरे अथवा अज्ञान का प्रतीक है अतः अखण्ड द्वीप प्रज्वलित कर इस नौ (नव) रूपी ज्ञान (ब्रह्म) पर आच्छादित रात्रि स्वरूप अंधकार, अज्ञान के आवरण को समूल रूप से हटाने वाले प्रकाश, ज्ञान या विजयपर्व के रूप में मनाते हैं। शारदीय नवरात्र एवं वासंतिक नवरात्र की प्रमुखता, सर्वमान्यता एवं सर्व ग्राह्यता का प्रमुख कारण मानव जीवन से जुड़ी हुई प्राण संचारक ऋतुएँ हैं जो वैज्ञानिक आधार पर अधिस्थापित है। अश्विन प्रतिपदा से प्रारम्भ नवरात्र शरद ऋतु एवं शीत ऋतु तथा चैत्र प्रतिपदा से प्रारम्भ नवरात्र बंसत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के युग्म, संसार के लिए एक वरदान स्वरूप समय अथवा युग्म बन जाते हैं। बांसतिक और शारदीय इन दोनों नवरात्रों में प्रकृति से हमें क्रमशः अमि और सोम अर्थात् गेहूँ तथा चावल (धान) की प्राप्ति होती है। ये दोनों तत्त्व मानव के लिए जीवन रक्षक, पोषक व पालक हैं जो प्रकृति के उपहार स्वरूप प्राप्त होते. हैं। अतः जीवन पोषक उपहार प्राप्ति का समय होने के कारण ये दोनों नवरात्र गौरी या परब्रह्म स्वरूप भगवान श्रीराम की शक्ति पूजा के नवरात्र तथा दुर्गा पूजा के नवरात्र रूप में सर्वमान्य व सर्वग्राह्य हैं। गुप्त नवरात्रो की अपनी महत्ता है।
मार्कण्डेय पुराण -शिव पार्वती संवाद :
पौराणिक कथाओं में भी पार्वती जी की जिज्ञासा पर भगवान शिव ने नवरात्र का महात्म्य वर्णित करते हुए कहा है कि नव शक्तिभिः संयुक्तं नवरात्रं तदुच्यते । एकैव देव-देवेशि नवधा परितिष्ठिता ।
अर्थात् नवरात्र नवशक्तियों से संयुक्त है। एक-एक तिथि को एक-एक शक्ति के पूजन का प्रावधान है जिनका उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में इस प्रकार हैं :
प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । तृतीयं चंद्रघटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥ पंचमम् स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् । नवम् सिद्धिरात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः । इन्हीं नवदुर्गाओं की आराधना नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन इसी क्रमानुसार भक्तों द्वारा की जाती है।
बासंतिक एवं शारदीय नवरात्र का काल समस्त प्राणीयों के लिए ऋतु परिवर्तन काल होने के कारण महान कष्टप्रद होता है। इस काल को मृत्यु एवं संहार का काल बताया गया है अतः ये ऋतुएँ यमदृष्ट्र नाम से भी जानी जाती हैं। इस काल में प्राणियों का अमंगल न हों, जन कल्याण हो, प्राणी विभिन्न रोगों से बचें इसलिए माँ भगवती की आराधना की जाती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इसी कालावधि में विभिन्न रोग विशेषकर खसरा, चेचक, टाइफाइड आदि गम्भीर रोग उत्पन्न होते हैं। अतः प्राणियों के कल्याण के लिए इस काल में शक्ति की पूजा, अर्चना की जाती है। नवरात्रों में माँ चण्डी की आराधना विशेष रूप से की जानी चाहिए।