रूद्राक्ष और शिव पुराण जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा जी से – रूद्राक्ष भाग ३ 

RAKESH SONI

रूद्राक्ष और शिव पुराण जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा जी से – रूद्राक्ष भाग ३ 

सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल

सिटी प्रेसीडेंट इंटरनेशनल वास्तु अकादमी 

कोलकाता। रुद्राक्ष के विषय में विद्याश्वर-संहिता अध्याय २५ भाग ६१ से ९० में कई बातें बताई गयी है। पिछले अंक में हमने ६५ तक की व्याख्या जानी। 

इस अंक में ६६ से ७६ तक की व्याख्या जानेंगे। 

 द्विवाक्त्रो देवदेवेशः सर्वकामफलप्रदः |

विशेषतः स रुद्राक्षो गोवधां नशयेद्रुतं || ६६

अर्थात :दो मुखी रुद्राक्ष मनोकामना पूर्ण करता है। यह देवदेवेश्वर का स्वरूप है। यह गाय की हत्या के पाप को तुरंत शुद्ध करता है। ||६६ 

त्रिवक्त्रो यो हि रुद्राक्षः साक्षत्सधनदः सदा |

तत्प्रभवद्भवेयुर्वै विध्यः सर्वः प्रतिष्ठितः || ६७ ||

अर्थात :तीन मुखी रुद्राक्ष साधना का प्रत्यक्ष फल प्रदान करता है। सभी विद्याएं इसके प्रभाव से प्रतिष्ठित हैं। ||६७ 

चारतुर्वक्त्रः स्वयं ब्रह्म नरहत्यं व्यपोहति |

दर्शनात्स्पर्षनत्सद्यश्चतुर्वर्गफलप्रदः || ६८ ||

अर्थात : चार मुखी रुद्राक्ष भगवान ब्रह्मा का रूप है। यह मानव हत्या के पाप को समाप्त करता है। इसके दर्शन (झलक) से धर्म, धन, काम और मोक्ष का फल मिलता है। ||६८ 

पञ्चवक्त्रः स्वयं रुद्रः कला-अग्निर् नमतः प्रभु |

सर्वमुक्तिप्रदश्चैव सर्वकामफलप्रदः || ६९ ||

अर्थात :पांच मुखी रुद्राक्ष भगवान काल-अग्नि रुद्र का रूप है। यह रुद्राक्ष सभी मुक्ति प्रदान करता है और सभी इच्छाओं को पूरा करता है। ||६९ 

अगम्यागमनं पापमभक्षयस्य च भक्षणं |

इत्यादिसर्वपापानि पञ्चवक्त्रो व्यपोहति || ७० ||

अर्थात : व्यभिचार और अखाद्य पदार्थों के सेवन से उत्पन्न पाप पांच मुखी रुद्राक्ष से धुल जाते हैं। || ७० 

शद्वक्त्रः कार्तिकेयस्तु धरणद्दक्षिणे भुजे |

ब्रह्महत्यादिकै: पपैर्मुच्यते नत्र संशयः || ७१ ||

अर्थात :छह मुखी रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे दाहिने हाथ में धारण करना होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह ब्रह्म-हत्या के पाप को धोता है। ||७१ 

सप्तवक्त्रो महेशनि ह्यनङ्गो नमः नमतः |

धरनात्तस्य देवेशि दरिद्रोपिश्वरो भावेत || ७२ ||

अर्थात : हे पार्वती, सात मुखी रुद्राक्ष अनंग रूप है। इसे धारण करने से कंगाल से एक भगवान हो जाते हैं || ७२ 

रुद्राक्षश्चस्तवक्त्रश् च वसुमूर्तिश्च भैरव |

धरणात्सस्य पूर्णयुर्मृतो भवती शुलभृत || ७३ ||

अर्थात : आठ मुखी रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरव का स्वरूप है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से संपूर्ण जीवन काल मिलता है और मृत्यु के बाद भी व्यक्ति त्रिशूलधारी शिव के रूप को प्राप्त करता है ||७३  

भैरवो नववक्त्रश्च कपिलश्च मुनिः स्मृतः |

दुर्गा वा तदाधिष्ठात्रि नवरूपा महेश्वरी || ७४ ||

अर्थात :नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव और कपिलमुनि का रूप कहा गया है। इसकी अधिष्ठात्री देवी देवी दुर्गा हैं, जो नौ रूप धारण करती हैं। ||७४ 

तं धारयद्वमहस्ते रुद्राक्षं भक्तितत्परः |

सर्वेश्वरो भवेनुनं मम तुल्यो न संशायः || ७५ ||

अर्थात :इस नौ मुखी रुद्राक्ष को सम्मानपूर्वक बाएं हाथ में धारण करना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसे धारण करने वाला सर्वशक्तिमान और मेरे स्तर का हो जाएगा। ||७५ 

दशवक्त्रो महेशनि स्वयं देवो जनार्दनः |

धरनात्तस्य देवेशी सर्वकामनवप्नुयत || ७६ ||

अर्थात : हे माहेश्वरी, दस मुखी रुद्राक्ष स्वयं भगवान जनार्दन का स्वरुप है। यह सभी कार्यों को पूर्ण करता है। ७६

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