कूर्म द्वादशी आज यह द्वादशी क्यों और कहाँ मनाई जाती है
धार्मिक। हिंदू धर्म में कूर्म द्वादशी को बहुत ही शुभ माना जाता है। कूर्म द्वादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। इस वर्ष कूर्म द्वादशी 22 जनवरी को मनाई जाएगी।
कूर्म द्वादशी का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष कूर्म द्वादशी 22 जनवरी, 2024 को मनाई जाएगी। कूर्म द्वादशी आरंभ : 21 जनवरी 2024 को शाम 07 बजकर 26 मिनट पर कूर्म द्वादशी समाप्त : 22 जनवरी 2024 को शाम 07 बजकर 26 मिनट पर
यह किसको समर्पित है, क्या महत्व है?
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हिंदू मान्यता के अनुसार, कूर्म द्वादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित हैं। इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म यानी कछुए के अवतार की पूजा की जाती है। कहा जाता है, कि इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।
कूर्म द्वादशी के दिन चांदी और अष्टधातु से बने कछुए घर में लाने का बड़ा महत्व है। इस दिन कछुए को घर और दुकानों पर रखने से लाभ की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, कूर्म द्वादशी का व्रत करने से मनुष्य को अपने सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह द्वादशी क्यों और कहाँ मनाई जाती है?
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के लिए भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लिया था, इसलिए कूर्म द्वादशी के दिन पूरे भारत में भगवान विष्णु के कूर्म अवतार यानी कछुए की पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं और पुरुष दोनों व्रत करते हैं और साथ ही भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा करते हैं। ऐसा कहा जाता हैं, कि इस दिन पूरे मन से पूजा करने से घर में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
कूर्म द्वादशी की पूजा विधि
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कूर्म द्वादशी के व्रत के नियम दशमी से ही प्रारंभ हो जाते हैं।
व्रत करने वालों को दशमी के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके, साफ कपड़े पहनकर पूरे दिन सात्विक आचरण का पालन करना चाहिए।
दूसरे दिन एकादशी बिना कुछ खाए व्रत रखा जाता है।
द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा होती है।
कूर्म द्वादशी की पूजा में भगवान को चंदन, ताज़े फल-फूल और मिठाई का भोग लगाया जाता है।
पूजा करते समय भगवान विष्णु को समर्पित मंत्र ” ॐ नमो नारायण ” का उच्चारण करते हुए भगवान के कूर्म अवतार की आरती की जाती है।
आरती के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए घर में सुख समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
कूर्म द्वादशी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय जब देवराज इंद्र ने अहंकार में आकर दुर्वासा ऋषि की बहुमूल्य माला का अपमान कर दिया था, तब दुर्वासा ऋषि ने देवराज इंद्र को श्राप दिया, कि वह अपनी सारी शक्तियां और बल खो देंगे और निर्बल हो जाएंगे, जिसका प्रभाव समस्त देवताओ पर भी दिखाई देगा। कुछ समय बाद दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण देवराज इंद्र के साथ-साथ सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां खो दीं। इस बात का फायदा उठाकर दैत्यराज बलि ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को हराकर स्वर्ण पर कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद से दैत्यराज बलि का राज तीनों लोकों पर हो गया।
इससे हर तरफ हाहाकार मच गया। सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे मदद की गुहार लगाई। भगवान विष्णु ने देवताओं की सुन ली और उन्हें अपनी खोई हुई शक्ति वापस पाने का रास्ता दिखाया। भगवान विष्णु ने देवताओं को बताया कि “समुद्र मंथन करके उससे प्राप्त हुए अमृत से सभी देवों की शक्ति उन्हें फिर मिल जायेगी। इस बात को सुन देवता खुश हो गए। परन्तु यह इतना आसान नहीं था, क्योंकि सभी देवता शक्तिहीन हो चुके थे और समुद्र मंथन करना उनके सामर्थ्य में नहीं था।
इस समस्या पर भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा, कि वह “समुद्र मंथन के बारे में असुरों को बताएं और असुरों को इस मंथन के लिए मनाएं।” अब देवताओं के पास असुरों को मनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। तब सभी देवता असुरों को मनाने पहुंचे।
उन्होंने असुरों को समुद्र मंथन के बारे में बताया। यह सुन पहले तो असुरों ने मना कर दिया, लेकिन बाद में अमृत के लालच में आकर उन्होंने समुद्र मंथन के लिए ‘हां’ कह दी। इसके बाद, समुद्र मंथन के लिए देवता और असुर दोनो क्षीर सागर पहुंचे। तब मंथन के लिए मंद्राचल पर्वत को मंथी और वासुकी नाग का रस्सी के रूप में प्रयोग किया। मगर जैसे ही मंथन शुरु हुआ, वैसे ही मंद्राचल पर्वत समुद्र में धसने लगा। पर्वत को धसता देख भगवान विष्णु ने कूर्म यानी कछुए का अवतार धारण किया और मंद्राचल पर्वत को अपने पीठ पर रख लिया। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार से ही समुद्र मंथन पूरा हुआ और देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई।
समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु के द्वारा लिए कूर्म अवतार की, पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को लोग पूजा अर्चना करते हैं और मन चाहा फल प्राप्त करते हैं।