सरदार गंजन सिंह कोरकू की प्रतिमा स्थापित करने हेतु कोरकू समाज हुआ लामबंद, एसडीएम के नाम ज्ञापन सौंप प्रशासनिक उदासीनता पर कोरकू समाज दिखा नाराज।
शाहपुर। इतिहास में गुमनाम कर दिए गए सतपुड़ा के स्वतंत्रता सेनानी सरदार गंजन सिंह कोरकू की प्रतिमा स्थापित करने और उनका सम्मान और समाज में स्थान दिलाने के लिए कोरकू समाज लामबंद नजर आया । एसडीएम शाहपुर को ज्ञापन सौंप इस मामले में शामिल हुए सभी जनप्रतिनिधियों ने राजस्व के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की कहा जिस सेनानी ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना सब कुछ निछावर कर दिया क्या उसे एक सम्माननीय स्थान मिलना भी एसडीएम और तहसील दार द्वारा आदेशित नहीं किया जा सकता या राजनैतिक दबाव में अधिकारी अपना पल्ला झाड़ लेते हैं । ज्ञापन सौंपते समय “भारत माता की जय” के नारे के साथ सरदार गंजन सिंह कोरकू के त्याग को भी तहसील कार्यालय में सभी के सामने दर्शाया गया साथ ही लोगों को बताया गया की एक महान स्वतंत्रता सेनानी को किस प्रकार राजनीति के भेंट चढ़ा दिया गया ।
कौन हैं सरदार गंजन सिंह कोरकू:सरदार गंजन सिंह कोरकू का जन्म बरेली गाँव के कोरकू आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री सुखराम कोरकू थे जो उस क्षेत्र बड़े किसान के रूप में जाने जाते थे ।बैतूल जिले के इतिहास में बरेली गाँव के नाम से 1930 का “जंगल सत्याग्रह” जाना जाता है, जिसे बंजारीढाल सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है। गंजन सिंह कोरकू एक घुम्मकड़ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और प्रायः जनजाति क्षेत्रों में लगातार प्रवास पर रहा करते रहते थे जिसके कारण उनका सम्पर्क जनता के बीच में प्रत्यक्ष रूप से रहा करता था ।1 अगस्त 1930 के बैतूल में जंगल सत्याग्रह का आगाज हुआ तब गंजन सिंह भी इस आंदोलन में कूद पड़े। 22 अगस्त 1930 को गंजन सिंह कोरकू ने बंजारीढाल और सातलदेही के बीच सत्याग्रहियों की सभा को एकत्रित कर संबोधित किया जिसमें स्नेकडो की संख्या में जनजातीय क्रांतिकारी एकत्रित हुए। इस सभा को इस समय शाहपुर पुलिस ने तितर-बितर कर गंजन कोरकू को गिरफ्तार करने कोशिश की जिससे जन समूह उग्र हुआऔर अंग्रेज़ी पुलिस के सिपाहियों को पछाड़ कर भागा दिया गया। जिसमें पुलिस के कई सिपाहियों को गंभीर चोटें आई और उन्हें शाहपुर पहुँचाया गया।दूसरे दिन बैतूल पुलिस अधीक्षक लाईटन वहाँ अतिरिक्त बल लेकर पहुँचा तो वहाँ 800 से अधिक आंदोलनकारी एकत्रित थे जिनसे अंग्रेजी पुलिस की पुनः मुठभेड़ हुई। जिसमे अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक सेनानी का उदय हुआ ।1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने महेंद्रवाड़ी क्रांतिकारी सरदार विष्णु सिंह उइके के साथ मिलकर आंदोलन को गति दी। वे तब तक संघर्ष करते रहे जब तक देश आजाद नहीं हुआ। आजादी की घोषणा होते ही वे सरदार विष्णु सिंह गोंड और मोहकम सिंह गोंड के साथ हाथ में तिरंगा लेकर गाँव-गाँव आजादी का संदेश पहुँचाने में जुट गये। आजादी के बाद इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की सरकार व समाज ने उनके किए गए स्वतंत्रता के अथक प्रयासों को कोई सुध नहीं ली। यहां तक की उन्हे अपने जीवन यापन के लिए भी मजदूरी का सहारा लेना पड़ा 1963 में इनकी मृत्यु हो गई। गाँव फुलवरिया के पास जिस ईंट भट्टे पर वो काम करते थे वहीं उन्होंने अंतिम साँस ली।
एसडीएम को ज्ञापन देते समय उपस्थित धपाड़ामाल की सरपंच सुमंत्रा चौहान ने कहा की शासन प्रशासन की उदासीनता सीधे तौर पर राजनैतिक लाभ और हानि के गणित में उलझी हुई है । मानवता और वीर सेनानियों को भी समाज से जान बूझ कर भुलाया जा रहा है। ऐसा नहीं है की क्षेत्र के लोग और शासन प्रशासन में बैठे मलाई खा रहे जनप्रतिनिधि और ब्यूरोक्रेट्स सरदार गंजन सिंह के नाम से अनभिज्ञ हैं। साथ ही रानीपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता मदन चौहान ने भी महान स्वतंत्रता सेनानी को समाज में स्थान न मिलने को लेकर दुख जताया उन्होंने कहा वर्तमान स्थिति में कम से कम लोग सरदार गंजन सिंह का नाम तो जानते हैं आने वाली पीढ़ी को सरकारी उदासीनता के चलते उनका नाम भी नहीं पता होगा। कोरकू सेवा समिति कार्यकारी ब्लॉक अध्यक्ष ललित बारसकर ने भी नगर परिषद और राजस्व पर निशाना साधते हुए कहा की ऊपर बैठे आकाओं के दबाव के चलते राजस्व इस मामले में कोई रुचि नहीं दिखा रहा वहीं नगर परिषद शाहपुर गंजन सिंह कोरकू के नाम पर स्मारक बनाए जाने को लेकर एक कदम पीछे की ओर ही चल रहा है अगर दोनो प्रशासनिक बॉडी चाहें तो तुरंत ही सरदार गंजन सिंह कोरकू की प्रतिमा स्थापित की जा सकती है लेकिन गाहे बगाहे उदासीनता को प्रदर्शित करना राजनैतिक गणित के फिट न होने के कारण देखा जा सकता है ।