योगमाया मंदिर और वास्तु पक्ष जानते है वास्तु शास्त्री सुमित्रा से 

RAKESH SONI

योगमाया मंदिर और वास्तु पक्ष जानते है वास्तु शास्त्री सुमित्रा से 

कोलकाता। योगमाया या जोगमाया को भगवान की माया यानी मायावी शक्ति का एक पहलू माना जाता है।

योगमाया मंदिर, जिसे जोगमाया मंदिर भी कहा जाता है, एक हिंदू मंदिर है जो देवी योगमाया को समर्पित है। 

योगमाया कौन है ?

योगमाया कृष्ण की बहन है। योगमाया ने विंध्यवासिनी के रूप में अवतार लिया था। 

कहा है योगमाया का मंदिर ?

योगमाया मंदिर कुतुब परिसर के करीब महरौली, नई दिल्ली में स्थित है।

योगमाया मंदिर का इतिहास

मामलुकों ने २७ मंदिरों कोनस्ट कर दिया था , उनमे से एक है योगमाया माता मंदिर। हिंदू राजा सम्राट विक्रमादित्य हेमू ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। यह पूर्व-सल्तनत काल का एकमात्र जीवित मंदिर है जो अभी भी है। 

देवी के इस मूल मंदिर का निर्माण युधिष्ठिर काल से माना जाता है। इसका जीर्णोद्धार भी लगभग ५० वर्ष पूर्व हुआ था।” इस देवी का पूजन लगभग ६००० वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ था लेकिन किसी स्पष्ट प्रमाण के अभाव में यह कहना कठिन है। 

योगमाया मंदिर से जुडी पौराणिक कथा –

एक पौराणिक कथा हरिवंशपुराण की दुर्गा सप्तशती में इंगित किया गया है। जिसमें यशोदा की पुत्री योगमाया का कंश द्वारा वध करने की कोशिश के दौरान देवी का एक अंश विन्ध्याचल पर्वत पर और दूसरा अंश जहाँ गिरा उस स्थान पर आज महरौली स्थित योगमाया मंदिर है अतः महाभारत कालीन योगमाया मंदिर को दिल्ली का विन्ध्यवासिनी मंदिर माना जा सकता है। मंदिर में प्रदक्षिणा पथ होने से यह साधार शैली का मंदिर है।

वास्तुशास्त्रीय दृष्टि से योगमाया मंदिर –

योगमाया जी का मंदिर दक्षिण मुखी है। देवी का यह प्राचीन एवं जागृत मंदिर आवासीय भवनों की चाहरदीवारी से घिरा होने से किसी भी प्रकार के दोष से रहित है। मंदिर का मुख्य प्रवेश पर शेषनाग का घटाटोप निर्मित है। दरवाजों की चौखट संगमरमर से निर्मित है, जिस पर चांदी की परत चढ़ाई गई है और वह बहुत ही सुन्दर नक्काशी से युक्त है।मंदिर के द्वार के दोनों पार्श्व पर दो सिंह रखे गए हैं, जो शक्ति का परिचायक एवं मूर्तिकला के अनुकूल है। द्वारपाश्र्वों के दोनों ओर द्वारपालों का अंकन देवतामूर्ति प्रकरण के अनुसार किया गया है। संगमरमर से निर्मित फर्श से शीर्ष तक की ऊँचाई लगभग ४२ फुट है। गर्भगृह कक्ष १७२ फीट का है जहाँ काले रंग की पिण्डी है। इसमें मूल प्रतिमा संगमरमर के आधार पर स्थित है जो लगभग ३ फुट गोलाकार और ६ इंच गहरा है। इस मूर्ति को वस्त्रों एवं पुष्पों से सुसज्जित किया गया है तथा वस्त्र में निर्मित दो पंखे ऊपर लटकाए गए हैं। पिंडी के ठीक सामने फर्श पर चार पायों वाली चौकी जो १८२ इंच की है और ९ इंच ऊंची है। इस मंदिर में १४ अन्य छोटे-छोटे मंदिर है जिसमें प्रदक्षिणा क्रम से गणेश, शिव, विष्णु लक्ष्मी, राधा कृष्ण, रामदरबार, कल्कि भगवान, सांई बाबा, भैरों एवं हनुमान जी की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित की गई है। 

सर्वप्रथम मंदिर के प्रवेश द्वार की बाहरी भित्ति पर तीन देवप्रतिमाओं है जिनमें बांयी ओर योगासीन योगमुद्रा में लक्ष्मी पद्मपीठिका पर स्थित है। दाहिनी भित्ति पर १८ भुजाओं वाली महिषमर्दिनी प्रतिमा भूरे रंग के पाषाण से निर्मित है। यहाँ शिव शक्ति का असुरों की संहारक एवं उग्र स्वरूप देखने को मिलता है। देवी के इस उग्र स्वरूप के पार्श्व में भगवान सत्यनारायण का चतुर्भुजी रूप है। विष्णु देव की प्रतिमा के दोनों ओर कदली वृक्ष भी निर्मित है। मंदिर की बाह्य भित्ति पर देवी से सम्बन्धित चित्रण शास्त्रसम्मत है।  

दोष निवारण की प्रक्रिया –

गर्भगृह का ललाट बिम्ब पर किसी भी प्रकार के चित्रण नहीं है जो शास्त्रानुकूल नहीं है। इस दोष के निवारण के लिए गर्भगृह के द्वार पर चांदी की परत पर गणेशाइन कर इस दोष का निवारण करने का प्रयास किया गया है। गर्भगृह सादी है। गर्भा गृह के चारो तरफ कात्यायनी, स्कन्दमाता, चामुण्डा, महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी, सिद्धिदात्री, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, कुष्माण्डा, चन्द्रघण्टा तथा कालरात्रि देवियों का शास्त्रानुसार चित्रण है। शास्त्रों में कहा गया है कि गर्भगृह में देवपरिवारों का चित्रण चतुर्दिकमितियों पर किया जाना चाहिए।ऐसा ही चित्रण मंदिर के गर्भगृह में है , जो की शास्त्रसम्मत है। 

गर्भगृह के पीछे शिवालय है जिसमें भगवान शंकर और माता पार्वती की प्रतिमाएं हैं। शिवालय के भीतर भैरव गणेश, कार्तिकेय, पार्वती की प्रतिमाओं का निर्माण शास्त्रानुसार प्रतीत होता है।  

भैरव देव की स्थापना मंदिर के भीतर नहीं की जाती है। भैरव देव का चित्रण शिवालय की भित्ति पर किया गया है। यह निर्माण शास्त्रसम्मत है। मंदिर का शिखर त्रिकोणात्मक है जो शास्त्रानुकूल है।

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