वास्तु जाने और सीखे – भाग ६ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल कोलकाता
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कोलकाता। सूत जी ऋषियों से वास्तु चक्र के अन्य देवताओ की उपस्थिति के विषय में बताते है। वास्तु चक्र के देवताओ की पूजा करनी चाहिए। ये देवता अपने स्वाभाव अनुरूप सुबह अशुभ फल प्रदान करते है
सूत जी कहते है –
ईशानादिचतुष्कोणसंस्थितान् पूजयेद् बुधः ।
आपश्चैवाथ सावित्रो जयो रुद्रस्तथैव च ॥ २८
अर्थात – ईशान आदि चारों कोणोंमें स्थित इन देवताओंकी पूजा करनी चाहिये।
और आप, सावित्र, जय, रूद्र भी।।
मध्ये नवपदे ब्रह्मा तस्याष्टौ च समीपगान् ।
साध्यानेकान्तरान् विद्यात् पूर्वाद्यान् नामतः शृणु ॥ २९
अर्थात – मध्यके नौ कोष्ठोंमें ब्रह्मा और उनके समीप अन्य आठ देवताओंकी भी पूजा करनी चाहिये।
साध्य नाम से कहे जाते हैं उनके नाम सुनिये ।
अर्यमा सविता चैव विवस्वान् विबुधाधिपः ।
मित्रोऽथ राजयक्ष्मा च तथा पृथ्वीधरः स्मृतः ॥ ३०
अर्थात – अर्यमा, सविता, विवस्वान्, विबुधाधिप।।
मित्र, राजयक्ष्मा, पृथ्वीधर ।।
अष्टमश्चापवत्सस्तु परितो ब्रह्मणः स्मृताः ।
आपश्चैवापवत्सश्च पर्जन्योऽग्निर्दितिस्तथा ॥ ३१
अर्थात – आठवें आपवत्स आप, आपवत्स, पर्जन्य, अग्नि तथा दिति।।
पदिकानां तु वर्गोऽयमेवं कोणेष्वशेषतः ।
तन्मध्ये तु बहिर्विंशद् द्विपदास्ते तु सर्वशः ॥ ३२
अर्थात – ये पाँच देवताओंके वर्ग हैं।
उनके बाहर बीस पूजा देवता हैं जो दो पदोंमें रहते हैं।
अर्यमा च विवस्वांश्च मित्रः पृथ्वीधरस्तथा ।
ब्रह्मणः परितो दिक्षु त्रिपदास्ते तु सर्वशः ॥ ३३
अर्थात – अर्यमा, विवस्वान्, मित्र और पृथ्वीधर – ये चार ब्रह्मा के चारों ओर तीन- तीन पदोंमें स्थित रहते हैं ॥ ३३ ॥
वंशानिदानीं वक्ष्यामि ऋजूनपि पृथक् पृथक् ।
वायुं यावत् तथा रोगात् पितृभ्यः शिखिनं पुनः ॥ ३४
अर्थात – अब मैं उनके वंशोंको पृथक्-पृथक् संक्षेपमें कह रहा हूँ।
वायुसे लेकर रोगपर्यन्त, पितृगण से शिखी पर्यन्त ।।
मुख्याद् भृशं तथा शोषाद् वितथं यावदेव तु।
सुग्रीवाददितिं यावन्मृगात् पर्जन्यमेव च ॥ ३५
अर्थात – मुख्यसे भृशपर्यन्त, शोषसे वितथ ।
सुग्रीव से विपर्यन्त तथा मृग से पर्जन्य पर्यन्त -ये ही वंश कहे गए है।।