वास्तु जाने और सीखे – भाग २ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल कोलकाता
सिटी प्रेजिडेंट इंटरनेशनल वास्तु अकादमी कोलकाता
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
कोलकाता। अपना घर हो ये सब की कामना होती है। लोग जीवन भर मेहनत करने के बाद तब कही जा कर एक घर बना पाते है और कई लोग तो बना भी नहीं पाते है। घर बनाने का शुभ मुहूर्त बहुत ही आवश्यक होता है। सही मुहूर्त में निर्माण सुरु करने से जहां धन की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही प्रतिष्ठा में भी चार चाँद लग जाते है। वही दुसरी तरफ गलत समय में निर्माण सुरु करने से लाखो रुपए कोडियो में बदल जाते है, मृत्यु, भय, विनास का सामना भी करना पड़ता है।
सूत जी ने ऋषियों को गृह निर्माण के विषय में बताया था। इसी विषय में चर्चा करेंगे। आज वास्तु जानो और सीखो का दूसरा अध्याय है और आज का विषय मुहूर्त है।
सूत जी कहते है –
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि गृहकालविनिर्णयम् ।
यथा कालं शुभं ज्ञात्वा सदा भवनमारभेत् ॥ १
अर्थात – अब मैं घर के निर्माण के समय के निर्धारण का वर्णन करूंगा।
शुभ मुहूर्त को जानकर हमेशा मकान बनाना शुरू कर देना चाहिए। १
चैत्रे व्याधिमवाप्नोति यो गृहं कारयेन्नरः ।
वैशाखे धेनुरत्नानि ज्येष्ठे मृत्युं तथैव च ॥ २
अर्थात – चैत्र के महीने में घर बनाने वाला आदमी बीमार हो जाता है।
वैशाख मास में धेनु और रत्न प्राप्त करता है और ज्येष्ठ के महीने में घर बनाना सुरु करने से मृत्यु को प्राप्त होता है। २
भृत्यरत्नानि पशुवर्गमवाप्नुयात्।
श्रावणे भृत्यलाभं तु हानिं भाद्रपदे तथा ॥ ३
अर्थात – आषाढ़ में निर्माण सुरु करने से सेवक, रत्न और पशु की प्राप्त होती है ।
श्रावण मास में सेवकों की प्राप्ति और भाद्रपद के महीने में निर्माण सुरु करने से हानि होती है । ३
पत्नीनाशोऽश्विने विद्यात् कार्तिके धनधान्यकम् ।
मार्गशीर्षे तथा भक्तं पौषे तस्करतो भयम् ॥ ४
अर्थात – अश्विन में पत्नी की हानि ,कार्तिक में धन और अनाज की प्राप्ति ।
पौषमें चोरोंका भय और माघ मास में अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। ४
लाभं च बहुशो विन्द्यादग्निं माघे विनिर्दिशेत्।
फाल्गुने काञ्चनं पुत्रानिति कालबलं स्मृतम् ॥ ५
अर्थात – माघ में निर्माण करने से बार-बार लाभ मिलता है पर साथ ही आग लगने का भी भय रहता है ।
फाल्गुन मास में स्वर्ण और पुत्रों की प्राप्ति होती है । ५
अश्विनी रोहिणी मूलमुत्तरात्रयमैन्दवम्।
स्वाती हस्तोऽनुराधा च गृहारम्भे प्रशस्यते ॥ ६
अर्थात – अश्विनी, रोहिणी, मुला , तीनो उत्तरा, मृगशिरा, स्वाति हस्त, अनुराधा में ग्रह बनाना चाहिए। ६
आदित्यभौमवर्ज्यास्तु सर्वे वाराः शुभावहाः ।
वर्ज्यं व्याघातशूले च व्यतीपातातिगण्डयोः ॥७
विष्कम्भगण्डपरिघवज्रयोगे न कारयेत् ।
अर्थात – रविवार और मंगलवार को छोड़कर सभी दिन शुभ है।
व्याघात, शूल, व्यतिपात, अतिगंड, परिघ और वज्र में गृह नहीं बनाना सुरु करना चाहिए ।
श्वेते मैत्रेऽथ माहेन्द्रे गान्धर्वाभिजिति रौहिणे ॥ ८
वैराजसावित्रे मुहूर्ते गृहमारभेत् ।
अर्थात – श्वेत, मैत्र, माहेन्द्र, गान्धव, अभिजित, रौहिण, वैराज और सावित्र – इन मुहूर्ती में गृहारम्भ करना चाहिये।। ८
चन्द्रादित्यबलं लब्ध्वा शुभलग्नं निरीक्षयेत् ॥ ९
अर्थात – चन्द्रमा और सूर्य की शक्ति को प्राप्त करके शुभ राशि का अवलोकन करना चाहिए। ९
स्तम्भोच्छ्रायादि कर्तव्यमन्यत्तु परिवर्जयेत् ।
प्रासादेष्वेवमेवं स्यात् कूपवापीषु चैव हि ॥ १०
अर्थात – प्रथम स्तम्भारोपण करना चाहिये। यही नियम महलों और कुओं के लिए भी है। १०