श्री बैजनाथ ज्योतिर्लिंग के विषय में जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा जी से
कोलकाता। श्री बैजनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। कहते हैं- रावण ने घोर तपस्या कर शिव से एक पिण्ड प्राप्त किया जिसे वह लंका में स्थापित करना चाहता था, परंतु शिव लीला से वह पिण्ड वैद्यनाथ में ही स्थापित हो गया।प्रसिद्ध तीर्थस्थल बैजनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है।
ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी है बैजनाथ
यह देश का पहला ऐसा स्थान है जो ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। यूं तो ज्योतिर्लिंग की कथा कई पुराणों में है। लेकिन शिवपुराण में इसकी विस्तारपूर्वक जानकारी मिलती है। इसके अनुसार बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है। इस स्थान के कई नाम प्रचलित हैं जैसे हरितकी वन, चिताभूमि, रावणेश्वर कानन, हार्दपीठ और कामना लिंग। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को नहीं आमंत्रित किया। यज्ञ के बारे में पता चला तो देवी सती ने भी जाने की बात कही। शिवजी ने कहा कि बिना निमंत्रण कहीं भी जाना उचित नहीं। लेकिन सतीजी ने कहा कि पिता के घर जाने के लिए किसी भी निमंत्रण की आवश्यकता नहीं। शिवजी ने उन्हें कई बार समझाया लेकिन वह नहीं मानी और अपने पिता के घर चली गईं। लेकिन जब वहां उन्होंने अपने पति भोलेनाथ का घोर अपमान देखा तो सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ कुंड में प्रवेश कर गईं। सती की मृत्यु की सूचना पाकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और वह माता सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर आक्रोशित शिव को शांत करने के लिए श्रीहरि अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे। सती के अंग जिस-जिस स्थान पर गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मान्यता है इस स्थान पर देवी सती का हृदय गिरा था। यही वजह है कि इस स्थान को हार्दपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह यह देश का पहला ऐसा स्थान है जहां ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है। इस वजह से इस स्थान की महिमा और भी बढ़ जाती है।
कामना लिंग भी कहते हैं बैजनाथ धाम को
बैजनाथ धाम में स्थापित में शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। रावण की तपस्या से खुश होकर भगवान ने उससे वरदान मांगने को कहा तो रावण ने कहा कि वह उन्हें अपने साथ लंका ले जाना चाहता है। यह सुनकर सभी देवता परेशान हो गए और ब्रह्माजी के पास गए और कहा कि अगर शिवजी रावण के साथ लंका चले गए तो सृष्टि का कार्य कैसे होगा? इसके बाद ब्रह्माजी ने भगवान शिव को सोच-समझकर वरदान देने के लिए कहा। इस पर शिवजी ने रावण से कहा कि यदि तुम मुझे लंका ले जाना चाहते हो तो ले चलो लेकिन मेरी एक शर्त रहेगी। भगवान शिव ने रावण से कहा कि जहां भी मुझे भूमि स्पर्श हो जाएगी, मैं वही स्थापित हो जाउंगा।