जानते हैं नागपंचमी के बारे में वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से क्या करे कालशर्प योग के जातक

RAKESH SONI

जानते हैं नागपंचमी के बारे में वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से क्या करे कालशर्प योग के जातक

Kolkata। इस नाग पंचमी में बन रहे हैं ये शुभ योग
ऐसे करेंगे पूजन तो कालसर्प संबंधी दोष से मिलेगी मुक्ति

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के नाम से जाना जाता है। जो कि, हिंदू धर्म में एक प्रमुख त्योहार है। इस वर्ष यह पर्व २१ अगस्त २०२३ , सोमवार को मनाया जाएगा। जैसा कि विदित है कि सावन का महीना भगवान शिव को सबसे प्रिय है। इस माह में भक्त शिवालयों में जाकर अभिषेक कर विधि विधान से भोलेनाथ की आराधना करते हैं। यह तो सभी जानते हैं कि, भगवान शिव के गले में नाग देवता हमेशा लिपटे रहते हैं और नाग भगवान शिव को बहुत ही प्रिय होते हैं। इसलिए इस माह में नाग देवता की पूजा की जाती है। माना जाता है कि, नाग देवता की पूजा से नाग देवता के साथ भगवान शिव की कृपा भी मिलती है। इस दिन नाग देवता की पूजा करने से कुंडली में कालसर्प संबंधी दोष से मुक्ति मिलती है। वहीं इस बार नाग पंचमी पर कई शुभ योग बन रहे हैं, आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में…

तिथि कब से कब तक तिथि आरंभ:
२१ अगस्त २०२३ , सोमवार की मध्य रात्रि १२ बजकर २१ मिनट से तिथि समापन: २२ अगस्त २०२३ , मंगलवार की रात्रि ०२ बजे बना ये दुर्लभ योग ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस बार नाग पंचमी का त्योहार सोमवार के दिन पड़ रहा है और यह दिन भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन सुबह से लेकर रात ०९ बजकर ०४ मिनट तक शुभ योग रहेगा। वहीं सुबह ११ बजकर ५५ मिनट से लेकर दोपहर १२ बजकर ३५ मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। ज्योतिष के अनुसार, पूजा के लिए सबसे शुभ मुहूर्त सुबह ०५ बजकर ५३ मिनट से सुबह ०८ बजकर ३० मिनट तक रहेगा।
पूजा विधि –
नाग पंचमी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठें और दैनिकक्रिया से मुक्त होकर स्नान करें।
– साफ वस्त्र धारण करें और सूर्यदेव को जल चढ़ाकर व्रत का संकल्प लें।
– घर के दरवाजे पर मिट्टी, गोबर या गेरू से नाग देवता का चित्र अंकित करें।
– नाग देवता को दूर्वा, कुशा, फूल, अछत, जल और दूध चढ़ाएं
– नाग देवता को सेवईं या खीर का भोग लगाएं। – सांप की बांबी के पास दूध या खीर रखें।

अष्टनागों के इस मंत्र का जाप करें
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः। ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥ एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥

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