सावन में जाने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के विषय में वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से
कोलकाता। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान् शंकर के बारह ज्योतिर्लिंग में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है, जो मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन शहर में स्थित है | उज्जैन शहर में माकलेश्वर मंदिर स्थित होने से उज्जैन को महाकाल की नगरी भी कहा जाता है | यह मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर 6 ठी शताब्दी ईसा पूर्व निर्मित मंदिर है |
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को महाकाल कहने के पीछे यह मान्यता है की प्राचीन समय में सम्पूर्ण विश्व का मानक समय यहीं से निर्धारित किया जाता था | महाकाल भगवान की शिवलिंग की स्थापना से राजा चन्द्रसेन व गोपबालक की कथा जुडी हुई है |
महाकालेश्वर मंदिर की सबसे खास बात यहां होने वाली भस्म आरती है, जो ताजे मुर्दे की भस्म के द्वारा की जाती थी मगर अब इस प्रथा को बंद कर दिया गया है। अब गाय के गोबर के कंडे और कुछ विशेष सामग्री को मिलाकर बनी राख से माहाकाल का श्रंगार किया जाता है | शिवरात्री का त्यौहार यहाँ पर बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है | ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है।
सवान में भगवान शिव को क्या अर्पित करें
सावन के सोमवार के दिन महादेव के भक्त फलाहार भोजन करते हैं और शिवलिंग पर पांच तत्वों ( दूध, दही, घी, गंगा जल और शहद) से तैयार पंचामृत और बेलपत्र चढ़ाते हैं। भगवान शिव तुरंत और तत्काल प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष कहा जाता है। भगवान शिव को प्रिय 11 ऐसी सामग्री जो अर्पित करने से भोलेनाथ हर कामना पूरी करते हैं। यह सामग्री हैं : जल, बिल्वपत्र, आंकड़ा, धतूरा, भांग, कर्पूर, दूध, चावल, चंदन, भस्म, रुद्राक्ष।
जल : शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं। जल चढ़ाने का महत्व समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है। विष पीने के बाद उसकी ऊष्णता को शांत करके शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया।
बिल्वपत्र : भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र। अत: तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र शिव जी को अत्यंत प्रिय है। प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है।
आंकड़ा : शास्त्रों के मुताबिक शिव पूजा में एक आंकड़े का फूल चढ़ाना सोने के दान के बराबर फल देता है।
धतूरा : भगवान शिव को धतूरा भी अत्यंत प्रिय है।
भांग : शिव हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं। समुद्र मंथन में निकले विष का सेवन महादेव ने संसार की सुरक्षा के लिए अपने गले में उतार लिया। भगवान को औषधि स्वरूप भांग दी गई। प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है।
कर्पूर : भगवान शिव का प्रिय मंत्र है कर्पूरगौरं करूणावतारं यानी जो कर्पूर के समान उज्जवल हैं। कर्पूर की सुगंध वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है।
दूध: श्रावण मास में दूध का सेवन निषेध है। दूध इस मास में स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक हो जाता है। इसीलिए सावन मास में उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है।
चावल : चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो। अक्षत न हो तो शिव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती।
चंदन : चंदन का संबंध शीतलता से है। भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं। शिव जी को चंदन चढ़ाया जाए तो इससे समाज में मान सम्मान यश बढ़ता है।
भस्म : इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है। कथा है कि पत्नी सती ने जब स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया तो क्रोधित शिव ने उनकी भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया।
रुद्राक्ष : महादेव के नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।