भगवान शिव के रौद्र रूप, काल भैरव के विषय में जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा  से

RAKESH SONI

भगवान शिव के रौद्र रूप, काल भैरव के विषय में जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा  से

Kolkata। भगवान शिव का रौद्र रूप है काल भैरव, उज्जैन में होती है विशेष पूजा अर्चना हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की तिथि के दिन मनाई जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस तिथि पर भगवान शिव के रौद्र रूप का अवतरण हुआ था। इस विशेष दिन पर भगवान काल भैरव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ ही भैरवनाथ भगवान के भक्त लाखों की संख्या में देश के विभिन्न कोनों में स्थित भैरव मन्दिर में दर्शन के लिए उमड़ते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
भारत में भगवान काल भैरव के कई मन्दिर स्थापित हैं। जहां पूजा-पाठ करने के लिए और अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए भक्त आते हैं। भगवान काल भैरव को तंत्र-मंत्र के स्वामी के रूप में भी जाना जाता है। उनकी पूजा में कई प्रकार के सामग्री का प्रयोग किया जाता है। लेकिन उज्जैन में एक ऐसा मन्दिर है जहां भगवान को मदिरा अर्पित की जाती है।
मध्य प्रदेश के उज्जैन में विश्व-प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। लेकिन यहां भगवान काल भैरव का एक ऐसा मन्दिर भी स्थापित है, जिनके दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।मैंने वक्तिगत रूप से इस मंदिर के दर्शन ३ बार किये है। भगवान भैरवनाथ का यह मन्दिर उज्जैन के भैरवगढ़ में शिप्रा नदी के किनारे बना हुआ है। यहां की खासियत है कि इस मन्दिर में भगवान भैरवनाथ की मूर्ति मदिरापान करती है। साथ ही यह भी मान्यता है कि उनकी पूजा के बिना बाबा महाकालेश्वर की पूजा भी अधूरी रह जाती है। उज्जैन में भगवान काल भैरव का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसका महत्व भी बेहद खास है. मान्यता है कि काल भैरव की इजाजत के बाद ही महाकाल के दर्शन किए जाते हैं.
उज्जैन के काल भैरव का विशेष महत्व
भगवान काल भैरव को भगवान महाकाल का सेनापति माना जाता है। कोतवाल की इजाजत के पहले राजाधिराज के दरबार में हाजिरी नहीं लगाई जाती। यही वजह है कि कई श्रद्धालु पहले काल भैरव का आशीर्वाद लेते हैं. इसके बाद महाकालेश्वर के दरबार में पहुंचते हैं। वर्तमान समय में कई श्रद्धालु पहले भगवान महाकाल की पूजा अर्चना करते हैं। इसके बाद काल भैरव के दर्शन करने के लिए जाते हैं. काल भैरव मंदिर मैं दर्शन करने मात्र से कई मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
काल भैरव की आराधना से कम होता है शनि का प्रकोप
काल भैरव की आराधना से कुल देवता की कृपा भी होती है इसके अलावा शनि देवता का भी प्रकोप कम होता है।
भैरव अष्टमी, जिसे भैरवाष्टमी, भैरव जयंती, काल-भैरव अष्टमी और काल-भैरव जयंती के रूप में भी जाना जाता है, यह हिंदू धर्म का पवित्र दिन है जो भैरव, भगवान शिव का एक भयावह और क्रोधी अवतार लेने का दिन है। इस दिन का भैरव का जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह कार्तिक के हिंदू महीने के पंद्रहवें दिन (अष्टमी) को घटते चंद्रमा (कृष्ण पक्ष) के पखवाड़े में पड़ता है। भैरव अष्टमी नवंबर, दिसंबर या जनवरी में एक ही दिन पड़ती है। कालाष्टमी नाम का उपयोग कभी-कभी इस दिन को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, लेकिन कृष्ण पक्ष में किसी भी अष्टमी को भी संदर्भित किया जा सकता है, ये सभी भैरव के पवित्र दिन हैं, जिन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है। भगवान भैरव का वाहन कुत्ता होता है अर्थात् भगवान भैरव कुत्ते की सवारी करते है।
भैरव, भगवान शिव का क्रोध का रूप अवतार है। ऐसा कहा जा सकता है कि भैरव, भगवान शिव के क्रोध का प्रकटीकरण है। इस अवसर पर वर्णित कथा के अनुसार, त्रिमूर्ति देवता, ब्रह्मा, विष्णु और शिव गंभीर मनोदशा में बात कर रहे थे कि कौन उन सभी में से कौन श्रेष्ठ है। इस बहस में, शिव ने ब्रह्मा द्वारा की गई टिप्पणी से थोड़ा क्रोध आया गया और अपने गण भैरव को ब्रह्मा के पांच सिर में से एक को काटने का निर्देश दिया। भैरव ने शिव की आज्ञा का पालन किया और ब्रह्मा का एक सिर काट दिया गया और इस तरह वे चार मुखिया बन गए। भय से भरे हुए, अन्य सभी ने शिव और भैरव से प्रार्थना की।
एक ओर कथा के अनुसार जब ब्रह्मा ने शिव का अपमान किया, तो काल भैरव, क्रोधित शिव के माथे से प्रकट हुए और ब्रह्मा के सिर को काट दिया, और केवल चार सिर छोड़ दिए। ब्रह्मा की हत्या करने के पाप के कारण ब्रह्मा का सिर भैरव की बायीं हथेली पर अटक गया – ब्रह्महत्या या ब्राह्मणवाद। ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ती पाने के लिए, भैरव को एक कपाली का व्रत करना पड़ा। दुनिया को एक भिखारी की खोपड़ी के साथ नग्न भिखारी के रूप में भटकते हुए अपने भिखारी के रूप में। भैरव के पाप का अंत तब हो जाता है जब वह पवित्र शहर वाराणसी पहुंचता है, जहां उसे समर्पित एक मंदिर अभी भी मौजूद है।
• काल भैरव जयंती २०२३
• मंगलवार, ०५ दिसंबर २०२३
• अष्टमी तिथि प्रारंभ : ०४ दिसंबर २०२३ को रात्रि ०९ :५९ बजे
• अष्टमी तिथि समाप्त : ०६ दिसंबर २०२३ को १२  बजकर ३७  मिनट पर

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