घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के विषय में जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से

कोलकाता। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट दौलताबाद के पास स्थित है। यह घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध है। भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। शिवभक्त घुश्मा की भक्ति के कारण प्रकट होने से भगवान शिव यहाँ घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। इस मंदिर के निकट विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाएं यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा बारह ज्योतिर्लिंग यात्रा को पूर्णता प्रदान करती हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के पश्चात् निःसंतान को संतान का सुख प्राप्त होता है और भक्तों के हर प्रकार के रोग, दुख दूर हो जाते है। विश्व प्रसिद्ध एलोरा गुफायें घृष्णेश्वर मंदिर से मात्र ५०० मीटर की दूरी स्थित है।
मंदिर का इतिहास
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण १३ वीं शताब्दी से भी पहले किया गया था। १३ वीं और १४ वीं शताब्दी के मध्य मुगलों ने इस मंदिर पर आक्रमण किया और मंदिर को भारी हानी पहुचाई। इसके बाद १६ वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा मालोजी भोसले ने इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया था। १६८० और १७०७ के मध्य मुगल सेना ने घृष्णेश्वर मंदिर पर कई हमले किए, जिससे फिर मंदिर क्षतिग्रस्त हुआ। १८ वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का पुनर्निर्माण करवाया।
क्या है पौराणिक कथा
शिव पुराण के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है। प्राचीन काल में सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। उनके विवाह को कई वर्ष बीत गये पर उन्हें संतान की प्राप्ति नही हुई। संतान प्राप्ति हेतु सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति से करवा दिया। घुश्मा एक शिव भक्त थी, वह प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बना कर उनकी पूजा करती थी और फिर एक सरोवर में विसर्जित कर देती थी। समय धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा और घुश्मा ने एक अति सुन्दर बालक को जन्म दिया। कुछ समय बाद सुधर्मा, घुश्मा को ज्यादा प्रेम और मान-सम्मान देने लगा। इस कारण सुदेहा को मन ही मन घुश्मा से ईर्ष्या होने लगी। एक दिन सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र को मार कर उसके शव को उसी सरोवर में डुबो दिया, जहां घुश्मा शिवलिंगों का विसर्जन करती थी। जब घुश्मा को अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो वह जरा भी विचलित नहीं हुई और रोज की तरह शिव की भक्ति में लीन हो कर अपने पुत्र को वापस पाने के लिए प्रार्थना करने लगी। शिवलिंग की पूजन करने के बाद जब घुश्मा शिवलिंगों का विसर्जन करने के लिए सरोवर पहुंची तो उसका पुत्र सरोवर से जीवित बाहर निकल आया। घुश्मा ने अपनी बड़ी बहन सुदेहा को माफ़ कर दिया। घुश्मा के इसी दयालुता और भक्ति से खुश होकर शिवजी उसके सामने प्रकट हो गये। उन्होंने घुश्मा से वरदान मांगने को कहा, घुश्मा ने शिवजी से वरदान मांगा कि वे हमेशा के लिए इसी स्थान पर विराजमान हो जाएँ। तभी से घुश्मा के कहने पर भगवान शिव उसी स्थान पर घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।