काशी विश्वनाथ धाम जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से मोक्ष धाम के बारे में

कोलकाता। काशी विश्वनाथ धाम हिंदू धर्म के सबसे पवित्र शहर काशी (वाराणसी) के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान विश्वनाथ यहां ब्रह्मांड के स्वामी के रूप में निवास करते हैं। यह एक ऐसा नगर है जिसके बारे में शिव पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि जब तक यह नगर है तब तक सृष्टि का अंत नहीं होगा। पिछले साल ही काशी विश्वनाथ धाम का जीर्णोद्धार हुआ है, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने १३ दिसंबर को किया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर
१२ ज्योतिर्लिंगों में से सातवां ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के पश्चिम घाट पर स्थित है। काशी भगवान शिव और माता पार्वती का सबसे प्रिय स्थान में से एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पूर्व भैरव जी के दर्शन करना जरूरी है। इसके पीछे मान्यता है कि भैरव जी के दर्शन किए बगैर विश्वनाथ के दर्शन का लाभ प्राप्त नहीं होता। मान्यता है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने भी काशी में ही तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। काशी नागरी भगवान भोलेनाथ को इतनी प्रिय है कि ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में भोले बाबा और माता पार्वती काशी भ्रमण पर जरूर आते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
महाभारत और उपनिषदों में भी इस मंदिर का उल्लेख है। हालांकि इस मंदिर का निर्माण किसने कराया इस बात का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। लेकिन साल ११९४ में मुहम्मद गौरी ने इस मंदिर को लूटने के बाद इसे तुड़वा दिया था। इतिहासकारों के मुताबिक विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार अकबर के नौरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने कराया था। उन्होंने साल १५८५ में अकबर के आदेश पर नारायण भट्ट की मदद से इसका जीर्णोद्धार कराया। १० वीं शताब्दी के अंत से, मंदिर और शहर को विदेशी हमलों के अंतहीन हमले का सामना करना पड़ा। इसका वर्तमान स्वरूप- दो छोटे शिखरों से घिरा एक केंद्रीय शिखर (शिखर) का निर्माण १७८० में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था। उसके बाद एकमात्र बड़ा जोड़ १८३९ में था, जब महाराजा रणजीत सिंह द्वारा उपहार में दिए गए सोने के साथ दो शिखर थे।
क्या है वाराणसी नगरी से जुड़ी मान्यता
वाराणसी मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाता है। एक मान्यता यह भी है महादेव खुद यहां मरणासन्न व्यक्ति के कानों में तारक मंत्र का उपदेश सुनाते हैं। इसका उल्लेख मत्स्य पुराण में भी किया गया है। प्रलय आने पर भी कभी काशी का कभी लोप नहीं हुआ, ऐसा इसलिए क्योंकि कहते हैं कि पहले ही भोलेनाथ खुद काशी को अपने त्रिशूल पर उठा लेते हैं, इस तरह काशी सुरक्षित हो जाती है।