कैसे हुई कांवड यात्रा की सुरुवात जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से की कब करे भोलेनाथ का जलाभिषेक

RAKESH SONI

कैसे हुई कांवड यात्रा की सुरुवात जानते है वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा से की कब करे भोलेनाथ का जलाभिषेक

कोलकाता। शुरू हो गई कांवड यात्रा, १५ जुलाई को शिवरात्रि पर करें जलाभिषेक।

सावन शुरु होने के साथ ही कावड़ यात्रा की शुरुआत हो जाएगी। यानी इस साल कावड़ यात्रा की शुरूआत ४ जुलाई से हो गई है । हर साल सावन में लाखों की तादाद में कावड़ियां पदयात्रा करके कावड़ लेकर आते हैं और गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक करते हैं। वैसे तो आप पूरे सावन में कभी भी भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं लेकिन, सावन की शिवरात्रि पर लाखों की संख्या में लोग जलाभिषेक करते हैं। इस बार सावन शिवरात्रि १५ जुलाई २०२३ को है। इस दिन जलाभिषेक किया जाएगा।
कैसा हुई कावड़ यात्रा की शुरुआत

कावड़ यात्रा को लेकर कथा है कि भगवान परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे। एक बार भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर पूरा महादेव के मंदिर में जल चढ़ाया था। इस समय श्रावण मास ही चल रहा था। इसके बाद ही कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी। इसके बाद से ही कावड़ की यात्रा शुरू हुई थी।
इसके अलावा एक अन्य मान्यता है कि जब समुद्र मंथन हुआ था। तब सावन का महीना चल रहा था। मंथन के दौरान जो विष निकला था उसे भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए अपने कंठ में समाहित किया था। इसके बाद वह नीलकंठ महादेव कहलाए थे। विष के कारण उनके अंदर काफी गर्मी हो गई थी। भगवान शिव की गर्मी को शांति करने के लिए सभी देवी देवताओं ने उनपर विभिन्न नदियों से जल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाया और इसी के साथ कांवड़ में जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई।
कावड़ यात्रा को लेकर तीसरी मान्यता है कि सबसे पहले त्रेता युग में श्रावण मास में अपने माता पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने कावड़ यात्रा की थी। अपने माता पिता को कांवड़ में बैठाकर वह हरिद्वार लेकर आए थे। यहां से लौटते समय वह अपने साथ गंगाजल लेकर आए थे। जिसे उन्होंने अपने माता पिता के साथ मिलकर शिवलिंग पर चढ़ाया था। कहा जाता है कि तभी से कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।।

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