मैक्युलर डीजेनेरेशन जानते है डॉ सुमित्राजी से – भाग ७ 

RAKESH SONI

मैक्युलर डीजेनेरेशन जानते है डॉ सुमित्राजी से – भाग ७ 

कोलकाता। आपके भेजे हुए सवालो का जवाब आज के अंक में है।  

मुकेश अलवर से पूछते है : मैक्युलर डीजेनेरेशन की गती क्या है?

मैक्युलर डीजेनेरेशन में महत्वपूर्ण दृष्टि हानि हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती है। ड्राई मैक्युलर डीजेनेरेशन(ड्राई ए एम डी) आमतौर पर प्रगति के लिए एक लंबा समय लेता है, जबकि गीला एएमडी अधिक तेजी से दृष्टि हानि का कारण बन सकता है। कुछ मामलों में, हो सकता है कि दृष्टि में कोई परिवर्तन दिखाई न दे, और कुछ मामलों में, यह लीगल ब्लाइंडनेस दे देता है। 

झांसी से श्रावण पूछते है की किन लोगो में अधिक पाया जाता है और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?

हलाकि मैक्युलर डीजेनेरेशन का सम्बन्ध आयु से है परन्तु और भी कई विषय है जिनपर ध्यान देने की आवस्यकता है जैसे की – परिवार में मैक्युलर डीजेनेरेशन की हिस्ट्री अगर मौजूद हो तो मैक्युलर डीजेनेरेशन होने की सम्भावनाये बढ़ जाती है , जीन गत कारण भी होते है ये जेनेटिक डॉक्टर ही बता पाएंगे। आम तोर से धूम्रपान, हृद रोग के मरीज , उच्च रक्तचाप, मोटापा, भोजन में ओमेगा-३ फैटी एसिड की कमी और अधिक धुप में काम करना भी कारण बनता है मैक्युलर डीजेनेरेशन का। इन सब बातों का ध्यान रखे और हर वर्ष आँखों के परदे की ड्राप डलवा कर रूटीन जाँच करवाते रहे। 

बरवानी से सुजाता पूछती है की आज कल लोग सनग्लास पहनते है और बाजार में ५० रुपया से सनग्लास मिलते है , तो क्या सस्ते सनग्लास भी हमारी आँखों को नुकशान पहुंचते है ? क्या हमे सनग्लास खरीदने में कोई सावधानी बरतनी चाहिए ?

ये बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है और सब को सनग्लास से सम्बंधित कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। जब हम धुप में सनग्लास पहन कर निकलते है तब हमारी आँखों की पुतली सिकुड़ने की बजाय फेल जाती है सनग्लास के कारण , और सूर्य की किरणे ज्यादा ज्यादा आँखों के अंदर के परदे तक जाती है और रेटिना को, मैक्युला को नुकशान पहुँचती है। इसका ये अर्थ नहीं है की सनग्लास न पहने। बोलने का उद्देश्य ये है की सनग्लास पहने परन्तु ऐसा सनग्लास पहने जो रेटिना तक सूर्य के यु वी रेडिएशन को जाने न दे। इन सनग्लासेस को पोलरॉइड सनग्लास बोलते है। ये रेटिना की रक्षा करते है। फ़र्ज़ी पोलरॉइड सनग्लास से बचे। कई लोग रंग बिरंगी सनग्लास पहनते है जैसे की लाल, पिल्ली, हरी, नीली। मैक्युला को अगर बचाना चाहते है तो नीली लेंस वाली सनग्लास से बचे। 

वाराणसी से पूनम पूछती है की उनके पिताजी को मैक्युलर डीजेनेरेशन है और उनका चश्मा प्रोग्रेसिव बना हुआ है तो क्या प्रोग्रेसिव चश्मा भी उनको देखने में दिक्कत दे रहा है ?

प्रोग्रेसिवचश्मों में लेंस के ऊपर से नीचे तक पावर में सहज वृद्धि होती है, जिससे केवल एक जोड़ी चश्मे के साथ सभी दूरियों पर स्पष्ट रूप से देखने में मदद मिलती है। दूर की वस्तुओं को देखने के लिए लेंस के शीर्ष भाग से देखते हैं, मध्यवर्ती वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मध्य भाग और चीजों को नज़दीक से देखने के लिए नीचे के भाग से देखते है। मैक्युलर डीजेनेरेशन का रोगी पहले से ही विज़न प्रॉब्लम में है और प्रोग्रेसिव चश्मा एक जटिल चश्मा है। प्रगतिशील लेंस की तीन अलग-अलग फोकल लंबाई पहनने वालों को चक्कर आना स्वाभाविक है। शीर्ष खंड चलने, ड्राइविंग और अन्य गतिविधियों के लिए है, जिसमें लंबी दूरी की दृष्टि की आवश्यकता होती है; निचला भाग पढ़ने, लिखने और अन्य गतिविधियों के लिए है। प्रोग्रेसिव चश्मों में लेंस दो भाग में बटा हुआ नहीं होने के कारण गलत फोकल लंबाई से देखने पर दृष्टि धुंधली हो जाती है और चक्कर आने का एहसास होता है। मैक्युलर डीजेनेरेशन के रोगी को या तो सिंगल विज़न चश्मा पहनना चाहिए अर्थात दूर के लिए अलग चश्मा , कंप्यूटर चलने के लिए अलग चश्मा और रीडिंग राइटिंग के लिए अलग चश्मा या फिर बाइफोकल चश्मा पहनना चाहिए। पिताजी के चश्मे की जाँच कराये और कारण ढूंढ कर निवारण करे उनको निश्चित लाभ होगा। 

पिछले ७ दिनों से हम मैक्युलर डीजेनेरेशन पर चर्चा कर रहे है। और एक दिन इसी विषय पर आपके सवालों के जवाब देंगे। ईमेल भेजते रहे।

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