🇮🇳 74 वा गणतंत्र दिवस विशेष 🇮🇳
भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करता है संविधान :- डॉ मोदी
93 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ.कृष्णा मोदी से मुलाकात ।

सारनी . 74 वा गणतंत्र दिवस के अवसर पर पाथाखेड़ा क्षेत्र में मौजूद एक मात्र स्वंतत्रता संग्राम सेनानी डॉ कृष्णा मोदी ने अनौपचारिक प्रेस वार्ता के दौरान बताया की भारत की आजादी के पूर्व देश में भारत सरकार अधिनियम 1935 चलता था, जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किया गया था। लेकिन 26 जनवरी 1950 गणतंत्र दिवस के दिन भारतीय सरकार अधिनियम 1935 को हटाया गया और 1950 में एक नया भारत का संविधान लागू किया गया। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि भारत में गणतंत्र दिवस हर वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। जैसा की आप सभी को पता है भारत देश को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली लेकिन उस समय हमारा संविधान नही लागू था और 26 जनवरी 1950 को ही हमारा संविधान लागू किया गया और इसी दिन भारत एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य बना इसलिए गणतंत्र दिवस मनाया जाता है।
*ऐतिहासिक तारीख है 26 जनवरी 1930*
भारतीय गणतंत्र दिवस का इतिहास बहुत ही रोचक है, इसकी शुरुआत तब हुई, जब सन् 1929 में लाहौर में पंडित जवाहर लाल नेहरु की अध्यक्षता में हुए काग्रेंस अधिवेशन के दौरान यह प्रस्ताव पारित किया गया कि यदि 26 जनवरी 1930 तक अंग्रेजी सरकार भारत को ‘डोमीनियन स्टेटस’ नही प्रदान करती तो भारत अपने आप को पूर्णतः स्वतंत्र घोषित कर देगा। तब कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वराज की मांग रखी थी। इसके बाद जब 26 जनवरी 1930 तक अंग्रेजी हुकूमत ने कांग्रेस के इस मांग का कोई जवाब नही दिया। तो उस दिन से कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय के लिए अपना संक्रिय आंदोलन आरंभ कर दिया। तब से हर साल 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस मनाया जाता था लेकिन 15 अगस्त, 1947 को देश के स्वतंत्र होने की वजह से 15 अगस्त को ही स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था। लेकिन भारत सरकार 26 जनवरी की गरिमा को बनाये रखना चाहती थी, इसलिए 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू करने का निश्चय किया और फिर इस दिन हमारे देश में ‘भारत सरकार ने अधिनियम’को हटाकर भारत के संविधान को लागू किया। गणतंत्र का अर्थ होता है कि देश का मुखिया संविधान इसलिए 26 जनवरी के इस दिन की गरिमा को ध्यान में रख कर 26 जनवरी को भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
*युवा पीढ़ी जाने देश का गौरवशाली इतिहास*
स्वंतत्रता सेनानी डॉ कृष्णा मोदी ने कहा वर्तमान स्थिति को देखते हुए देश के युवा पीढ़ी को हमारे गौरवशाली इतिहास को जानना जरूरी है । आज पूरी दुनिया में भारत ज्ञान का केंद्र बन चुका । विश्व के कोने कोने हम अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे है। एक समय था भारत सोने की चिड़िया हुआ करती थी, वाणिज्य व्यापार में भारत अग्रणी था लेकिन हजार वर्ष की गुलामी के कारण गरीबी और बेरोजगारी का देश बन कर रह गया। अंग्रेजों से गुलामी के जंजीर को काट फेंकने के 75 वर्ष बाद भी हम बेरोजगारी, अशिक्षा और स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे हैं। विदेशी ताकतें हमें कमजोर करने की फिराक में लगी रहती है। इससे निपटने का एकमात्र रास्ता है शिक्षा का विकास और राष्ट्र प्रेम की भावना। उन्होंने कहा कि इस समय की आवश्यकता है कि हमे आने वाली पीढ़ी को अपने बच्चों को आजादी के वीरों और अपने भारत के गौरवशाली इतिहास के बारे में बताया जाए।
*21वी सदी भारत के नाम होगी, विश्व ने माना*
आज भी हमें एक मजबूत, अधिक एकजुट, अधिक समावेशी और अधिक समृद्ध भारत के अपने दृष्टिकोण को साकार करने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। हमारे पास एक महत्वपूर्ण युवा बल है। हमारी आबादी का लगभग 68% 35 वर्ष से कम आयु का है। गणतंत्र दिवस समारोह को इस युवा उभार को स्वीकार करना चाहिए और इसे बेहतर भविष्य की दृष्टि को साकार करने के लिए जीवन शक्ति के स्रोत के रूप में कार्य करने के लिए सक्रिय करना चाहिए। हम अपने विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधार का निर्माण कर रहे हैं। हमारे पास भरोसा करने के लिए जनसांख्यिकीय लाभांश है। हमने ग्रामीण घरों में बिजली की सार्वभौमिक पहुंच देना शुरू कर दिया है। हम स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश कर रहे हैं। हमें उन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए जहां हम कम से कम समय में सार्थक प्रगति कर सकते हैं उनमें से एक स्वास्थ्य सेवा है।।
*वर्तमान परिस्थिति में संविधान का ढांचा खतरे में*
वर्तमान समय में संविधान में उपस्थित समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष शब्द की देश में कल्पना करना मुमकिन नही जहा 70 प्रतिशत आम जनता गरीबी रेखा के नीचे जा चुकी है और उनके दिमाग में धर्म विरोधी जहर घोला जा रहा है । डॉ मोदी ने बताया कि संविधान में उल्लिखित समाजवादी शब्द का आशय यह है कि ‘ऐसी संरचना जिसमें उत्पादन के मुख्य साधनों, पूंजी, जमीन, संपत्ति आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य हो। पूंजीपतियों पर निरन्तर बढ़ती जा रही निर्भरता भी संविधान के कुछ मूल तत्वों से भटकाने का ही संकेत है। उत्पादन में जोखिम, भूमि और पूंजी के समान ही श्रम का महत्व होता है। लेकिन श्रम शक्ति को सम्मान देने के बजाय पूंजी का गुलाम बनाया जा रहा है। हमारे देश के भीतर कुछ लोग संविधान को बदलने और उसके विपरीत कार्य करने की कोशिश कर रहे परंतु वे इसमें कभी सफल नहीं होंगे ये मेरा मानना है। हमे गर्व है की भारत गणराज्य का हिस्सा है।