बाघिन के गायब होने, कॉलर आईडी गिरने और शावक का शव मिलने के मामले में वन विभाग प्रमुख सचिव से शिकायत
बैतुल। लगभग 2 वर्ष पहले बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से दो बाघिनों को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में रिहेब किया गया था, जिसके बाद एक बाघिन जिसका नाम शर्मीली है वह उत्तर वन मंडल बैतूल में मौजूद सतपुड़ा मेलघाट टाइगर कॉरिडोर में पहुंच गई थी। जनवरी 2022 में रानीपुर रेंज में मौजूद बाघ से मेटिंग करने के बाद बाघिन ने सतपुड़ा मेलघाट टाइगर कॉरिडोर में ही अपनी टेरीटरी बना ली थी। शनिवार 30 अप्रैल 2022 को उत्तर वन मंडल बैतूल के माध्यम से मीडिया में जानकारी देते हुए बताया गया था कि बाघिन 4 दिन से लापता है एवं दो दिन पूर्व उसका रेडियो कॉलर आईडी जंगल में पड़ा मिला, जो गल गया था।
इस संबंध में बैतूल के सारनी शहर निवासी वाइल्डलाइफ एंड नेचर कंजर्वेशन एक्टिविस्ट आदिल खान लगातार अपने निजी सूत्रों से जानकारी जुटा रहे थे। जिसके बाद आदिल को पता चला कि बाघिन के एक शावक का शव भी 30 अप्रैल को ही वन विभाग को मिला है, जिसका गुपचुप तरीके से पोस्टमार्टम उपरांत अंतिम संस्कार भी कर दिया गया है। जानकारी की पुष्टि होने के बाद आदिल ने मिडिया में इसकी सूचना दी, मिडिया के माध्यम से बार-बार सवाल पुछे जाने के बाद उत्तर वन मंडल बैतूल में नवीन पदस्थ हुए डीएफओ राकेश डामोर ने बाघिन के शावक की मृत्यु होने की बात स्वीकारते हुए बताया कि 30 अप्रैल की देर शाम बाघिन के बच्चे का शव मिला है, जिसकी उम्र 15 से 20 दिन के करीब रही होगी। बाघिन द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद इस शावक की भूख और मौसम की वजह से मृत्यु हो गई। कई बार बाघिन अपने शावकों को पालने में सक्षम नहीं होती है, तो वह शावकों को छोड़ देती है या कभी कभी वह खुद ही उसे मार देती है। वैसे टाइगर रिज़र्व के इलाकों में भरपूर आहार श्रृंखला उपलब्ध होती है, लेकिन वह जिस तरह से बैतूल के जंगलों में रह रही थी यहां पर वो मवेशियों पर निर्भर थी। जिसके लिए उसे कई बार दूर तक जाना पड़ता था। यहां शिकार की कमी की वजह से उसने शायद बच्चे को छोड़ दिया जो मौसम और भूख की वजह से मौत का शिकार हो गया।
वहीं पिछले 5 दिनों से बाघिन का कोई पता नहीं है और उसका रेडियो कॉलर भी जंगल में पड़ा मिला था। उक्त घटनाक्रम के बाद सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व से एक दल बैतूल पहुंचा है और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का दल भी बैतूल पहुंचा है। उत्तर वन मंडल अधिकारी बैतूल राकेश डामोर ने बताया कि अब बाघिन की लोकेशन मिल रही हैं और इसको लेकर कोई संशय नहीं है। उसके कॉलर आईडी का पट्टा 2 साल पुराना हो गया था जो जंगल में गिर गया।
वहीं इस पूरे घटनाक्रम पर सवाल उठाते हुए आदिल खान का कहना है कि वन विभाग ने बाघ के शावक का अंतिम संस्कार करने के बाद भी मीडिया में इसकी जानकारी नहीं दी और जंगल में बाघिन के अन्य शावकों की भी कोई जानकारी वन विभाग ने नहीं दी, आदिल ने कहा कि एक ही समय पर बाघिन का पट्टा गिरना और फिर शावक का शव मिल जाना मामले को और भी संदिग्ध बनाता है। बाघिन अपने शावकों के आसपास के क्षेत्र में ही रहती है फिर भी 5 दिन से उसकी लोकेशन ना मिलना अत्यंत गंभीर विषय है, राठीपुर के जंगल में पूर्व में भी एक बाघ का शिकार हो चुका है। अगर बाघिन स्वस्थ्य हैं और जीवित है तो वन विभाग को उसकी ट्रैपिंग कैमरे में आई ताज़ा तस्वीरों को मीडिया के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए और बाघिन के अन्य शावकों को भी तत्काल ढूंढना चाहिए। आदिल ने बताया कि इस संबंध में स्थानीय वन विभाग की कार्यप्रणाली गंभीर रूप से सवालों के घेरे में है इसलिए मामले की उच्च स्तरीय जांच के लिए वन विभाग के प्रमुख सचिव से शिकायत भी की है।
एक साल से भी कम समय में दूसरे शावक की मृत्यु
आदिल ने जानकारी देते हुए यह भी बताया कि उत्तर वन मंडल बैतूल की भौंरा रेंज में पिछले साल 11 मई को एक बाघ का शावक पानी की तलाश में भटक कर शहर के पास आया था और ट्रेन से टकराकर मर गया था। उक्त शावक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह आया था कि वह कुछ दिन से भूखा था। वही बैतूल के राठीपुर में जो शावक मिला है उसकी भी भूख की वजह से मौत हुई है निश्चित रूप से स्थानीय वन विभाग का अमला बाघों के संरक्षण के लिए उचित अनुभव नहीं रखता है जिस वजह से इस तरह के हादसे हो रहे हैं और बाघों की संख्या घटते ही जा रही है। आदिल ने बताया कि बैतूल जिले में सीसीएफ की नियुक्ति और वन्यप्राणी अभ्यारण्यों में काम कर चुके अधिकारीयों की बैतूल जिले में नियुक्ति के लिए वे कई पत्र प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी को लिख चुके हैं परंतु अब तक स्थाई नियुक्ति नहीं की गई है। बैतूल में सीसीएफ का पद अतिरिक्त प्रभार पर है, जबकि बैतूल में घने जंगल और वन्यप्राणी मौजूद है। इसलिए तत्काल प्रभाव से बैतूल जिले में स्थाई सीसीएफ की नियुक्ति की जाना चाहिए, ताकि बैतूल जिले में बाघों का बेहतर तरीके से संरक्षण हो सके।