मनसंगी मंच पर विषय “महाराणा प्रताप” पर आयोजित प्रतियोगिता मे इंदु धूपिया जी की बेहतरीन् समीक्षा।
सारणी:- मनसंगी साहित्य संगम जिसके संस्थापक अमन राठौर जी सहसंस्थापिका मनीषा कौशल जी अध्यक्ष सत्यम जी के तत्वाधान में काव्यधारा समूह पर आयोजित प्रतियोगिता जिसका विषय *महाराणा प्रताप* रखा गया उसमें कई रचनाकारों ने विभिन्न राज्यों से भाग लिया अपनी स्वरचित रचनाए प्रेषित की समीक्षक का कार्यभार आदरणीय इंदु धूपिया जी ने बखूबी संभाला इन्होंने कहा सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक है जिससे उन्हें चयन करने में काफी समस्या हुई छोटी छोटी बारीकियों को ध्यान में रखकर उन्होंने प्रथम स्थान प्रभात राजपूत जी को द्वितीय स्थान श्याम मठपाल जी तथा तृतीय स्थान डॉ जबरा राम कंडारा जी को इनकी
रचनाए निम्न है
जय मां शारदे
मंच को नमन
दिनांक :- ०९-०५-२०२२
वार :- सोमवार
विषय :- मेरा राणा प्रताप
विधा :- कविता
राजस्थान की पावन भूमि को प्रणाम करता हूं,
उदय सिंह जी को भी प्रणाम सौ सौ बार करता हूं।।
मिट्टी कितनी प्यारी है राणा जैसे जन्मे हैं,
एकलिंग जी हरदम जिनके तन में हैं।।
राणा प्रताप ने जन्म लिया गौरव मान बढ़ाया है,
देखकर राणा प्रताप को दुश्मन भी थर्राया है।।
प्रताप के आदर्श मूल्यों का गुणगान गाया है,
जिसने देश के लिए प्राण दांव पर लगाया है।।
हुआ पराजित कभी नहीं, जो पग पग बढ़ता जाता है,
छिन्न-भिन्न हो चुका था राज्य पर तनिक नहीं घबराता है।।
मुगल सैनिकों से अपने परिवार बचाने के खातिर,
रोटी खाई घास की स्वाभिमान बचाने के खातिर।।
त्याग,तपस्या,संघर्ष से देश का मान बचाया है,
देश बचाने के खातिर सर्वस्व दांव पर लगाया है।।
इतिहास रखेगा याद जिन्हें, देशभक्त मतवाला है,
राणा प्रताप के तीर,तलवार और वीरवर भाला है।।
दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए तनिक नहीं घबराते हैं,
मारो काटो देश बचाओ,बस यही नारा लगाते हैं।।
गौरव,सम्मान,मान,स्वाधीनता के संस्कार हैं,
भारत भूमि राजस्थान का प्यारा राजकुमार है।।
संकट की घड़ी है आन पड़ी राह नहीं है सूझ रहा,
आक्रमण करने के खातिर अकबर देखो जूझ रहा।।
हल्दीघाटी युद्ध की सबसे भीषण युद्ध रहा,
झाला,चेचक को देखकर अकबर भी कुद्ध रहा।।
लगातार प्रयास रहा दुर्ग आजाद कराया है,
दृढ़ संकल्प रहा जिनका,वही विजेता कहलाता है।।
स्वरचित रचना
प्रभात राजपूत”राज”गोंण्डवी
गोंडा, उत्तर प्रदेश
महाराणा प्रताप
कई मन्नतों – दुवाओं का असर
वीर प्रताप के जन्म का सुअवसर
देवों ने आशीष फूल बरसाए
देदीप्यमान शिशु के दर्शन पाए
तेजस्वी -प्रतापी महाराणा प्रताप
संघर्षशील जीवन ,नहीं कोई संताप
वीरता उनमें कूट-कूट भरी थी
स्वाभिमान की भूमि हरी थी
वो जिरहबख्तर ,वो सवामन भाला
आजादी का दीवाना ,मेवाड़ मतवाला
बाजुओं में बिजली,अपार शक्ति थी
दुश्मन को चीरा, एकलिंग भक्ति थी
हाकिम को सेनापति बनाया
भीलों को उसने गले लगाया
माटी का फ़र्ज़ सबसे बड़ा था
ऐश्वर्य सारा ठोकर में पड़ा था
अकबर के आगे सर न झुकाया
चाहे जंगलों में जीवन बिताया
जनता में उनका जादुई असर था
भामाशाह का धन उनको नज़र था
हल्दीघाटी में पराक्रम दिखाया
मान सिंह ने सर बचाया
खून से धरती लाल हो गई
वीरों की वीरता बेमिशाल हो गई
चेतक का बलिदान अमर हो गया
स्वामिभक्त वो स्वर्ग को गया
ताउम्र स्वाधीनता का पुजारी रहा
पराधीन था जो भिकारी रहा
मेवाड़ के परचम को सदा फहराया
माटी के मान को सदा बचाया
श्याम मठपाल,उदयपुर
मनसंगी काव्य धारा
प्रतियोगिता
विषय–महाराणा प्रताप जयंती
विधा–कविता
दिनांक–09-05-2022
नौ मई पंद्रह सौ चालीस में उदयपुर जिले में।
खुशियां छाई अपार कुंभलगढ़ के किले में।।
राणा सांगा खुश थे उदयसिंह अत्यंत अपार।
जेवन्ती बाई मोद मनावै,पुत्र रत्न को निहार।।
भये जवान राज्याभिषेक हुआ विधि-विधान।
अकबर से किया युद्ध विश्व गया सारा जान।।
कभी नही हार स्वीकारी,थे वो अजेय वीर।
चेतक की सवारी सौहै,शास्त्र भाला तीर।।
झुके नही पथ चुके नही समर लड़े अद्भुत।
शत शत नमन करे जगत,जय मेवाड़ सपूत।।