मनसंगी मंच पर सत्यम जी द्वारा विषय “इक बार चले आओ” पर आयोजित प्रतियोगिता मे इंदु धूपिया जी की बेहतरीन् समीक्षा

RAKESH SONI

मनसंगी मंच पर सत्यम जी द्वारा विषय “इक बार चले आओ” पर आयोजित प्रतियोगिता मे इंदु धूपिया जी की बेहतरीन् समीक्षा

सारणी:- मनसंगी साहित्य संगम जिसके संस्थापक अमन राठौर जी सहसंस्थापिका मनीषा कौशल जी अध्यक्ष सत्यम जी के तत्वाधान में काव्यधारा समूह पर आयोजित प्रतियोगिता जिसका विषय  इक बार चले आओ रखा गया उसमें कई रचनाकारों ने विभिन्न राज्यों से भाग लिया अपनी स्वरचित रचनाए प्रेषित की समीक्षक का कार्यभार आदरणीय इंदु धूपिया जी ने बखूबी संभाला इन्होंने कहा सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक है जिससे उन्हें चयन करने में काफी समस्या हुई छोटी छोटी बारीकियों को ध्यान में रखकर उन्होंने प्रथम स्थान अनुराग बाला पाराशर को द्वितीय स्थान दीपक कुमार जी तथा तृतीय स्थान गोविंद आनंद जी को इनकी

रचनाएं निन्मवत है।।
!!एक बार चले आओ!!
०६/०५/२०२२
🌹🌹🌹🌹🌹
एक बार चले आओ,बीते हुए दिन।
कुछ फिर से गुनगुनाओ , बीते हुए दिन।।

बचपन की किलकारियांँ जवानी की उमंग।
पुन:-पुन: मैं देख लूँ बीते इंद्रधनुषी रंग।।
नैहर की पगडंडियों में उन्मुक्त हँसी की धुन।
एक बार चले आओ……।

वह सुर्ख़ जोड़ा और सहमा-सहमा मन।
प्रेम, मनुहार से महके भीगे तन और बदन।।
खिल उठी फुलवारी बस खुशियांँ पल-छिन।।
एक बार चले आओ…..।।

छोटे -छोटे छौने अब बहुत बड़े हो गये।
समय साठ पार हो चला,पात अब नये-नये।।
यामिनी कटती है मेरी नभ के तारे गिन।।
एक बार चले आओ ।
एक बार चले आओ।
🙏🏻अनुराग बाला पाराशर
श्रद्धा भवन गांधीपुरी शाहपुरा
जिला भीलवाड़ा राजस्थान।

इक बार चले आओ….

आशिकी में डूबी जिस्मों को हवा पानी से न बुझाओ..
एक अलिंगन कर,दिल की अग्नि को तृप्त कर जाओ।।
मेरे महबूब,मेरे सनम,मेरे प्रिय वर तुम..
प्रेम की पूजा में चुम्बन की भेंट चढ़ाओ।।
इक बार चले आओ…

मेरी हृदय वासनी तुम..
मेरी नयन वासनी तुम।।
मेरे क्रोधित मन से निकले शब्दों को तुम..
हृदय के धरा पे रोप कर वृक्ष न बनाओ..
हमारी बातों से रूठ कर यूं न जाओ ।।
इक बार चले आओ..

अपनी प्यारी मुस्कान में..
गुस्से का मुखौटा तुम ना लगाओ ।।
भले ही सुना लो हमें खरी खोटी..
हमारे मन पे भले तीर चलालो।।

पर मेरी मंदाकिनी इक बार चले आओ…

तुम बिन अधूरे हैं..
तुमसे ही पूरे हैं।।
मेरी रोशनी तुम,ज्योति कलश तुम..
मेरी गुलाबी, मेरी मृग्नायनी तुम।।
तुम मेरी भावनाओं को समझ भी जाओ..
इक बार चले आओ…

मेरी बातों के कड़वे शब्दों को तुम..
अपने कर्ण के भीतर न समवाओ।।
अपनी चंचल चित में तुम..
केवल हमारे मधुर प्रेम का घर बनाओ।।

मेरी मनमोहनी इक बार चले आओ…
इक बार चले आओ

दीपक कुमार
(पासीद)
जिला सारंगढ़
छत्तीसगढ़

मनसंगी काव्य धारा

प्रतियोगिता
दिन :- शुक्रवार
दिनांक :- 06=05=2022
विषय :– इक बार चले आओ

इक बार चले आओ वादा है जाने न दूंगा
ग़मों के साये को पास तेरे कभी आने न दूंगा

खुशीयों से भर दूंगा मैं दामन तुम्हारा
झूम उठेगा देखकर ये जहान सारा
जीवन में कभी काले बादल छाने न दूंगा

मिल झुल कर रहेंगे ऐसे हम तुम
हंसों का जोडा़ हो जैसे हम तुम
कभी भी तुमसे बिछड़ने का नाम न लूंगा

दु:ख हो या सुख हो , साथ रहेंगे हम सदा
पावन प्रेम का आनंद लेते रहेंगे हम सदा
तेरी पलकों से नीर कभी बहाने न दूंगा

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