ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन ने मध्य प्रदेश के अमरकंटक ताप विद्युत गृह की नई इकाई के लिए ज्वाइंट वेंचर के माध्यम से बन रही कंपनी का किया विरोध।
केंद्र और राज्य सरकार को पत्र लिखा पत्र कहा मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी के पूर्ण स्वामित्व मे हो इकाई का हो निर्माण।
जबलपुर /सारणी। आँल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने राज्य और केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मांग किया है कि अमरकंटक ताप विद्युत ग्रह में विद्युत उत्पादन की क्षमता में वृद्धि करने हेतु MPPGCL एवं SECL के बीच हस्ताक्षरित MoU निरस्त करते हुए मध्य-प्रदेश उत्पादन कंपनी के पूर्ण स्वामित्व मे 1X660 MW की नवीन इकाई की स्थापना की जाए। ज्वाइंट वेंचर का निर्माण कर्मियों एवं देश/प्रदेश हित में नहीं है।
अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने कहा है कि अत्यंत खेद का विषय है कि अमरकंटक ताप विद्युत गृह हेतु नवीन इकाई की स्थापना मध्य-प्रदेश सरकार के पूर्ण स्वामित्व में न कराकर MPPGCL द्वारा SECL के साथ जॉइंट वेंचर हेतु MoU हस्ताक्षरित किया गया एवं यह निर्णय लिया गया है कि नवीन इकाई की स्थापना जॉइंट वेंचर कंपनी के माध्यम से किया जायेगा, जिसमे लगभग दोनों ही कंपनियों को 15-15% इक्विटी लगानी होगी। जबकि मध्य-प्रदेश शासन द्वारा गठित कमिटी ने दो इकाइयों (660MW X 2) को MPPGGL के पूर्ण स्वामित्व में स्थापना की अनुसंशा की थी। इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में दिए गए प्रावधानों के अनुसार कर्मियों की सेवा शर्तों का ध्यान रखा जाना अनिवार्य है, किन्तु फेडरेशन के संज्ञान में यह भी आया है कि कथित MoU में कार्मिकों की सेवा शर्तों एवं करियर प्लानिंग का भी कोई जिक्र नहीं किया गया है न ही नवीन इकाई के ओ.एंड म. का कोई जिक्र किया गया है। ऐसे में विद्युत कर्मियों में अपना भविष्य अंधकारमय देखते हुए अत्यंत चिंतित एवं भारी आक्रोश है।
ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने कहा है कि विद्युत मंत्रालय; भारत सरकार द्वारा दिसम्बर 2010 में इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2003 के सेक्शन 3 के तहत “विद्युत टैरिफ पालिसी” का स्पष्टीकरण जारी किया गया था, जिसके अनुसार “मौजूदा परियोजनाओं के विस्तार के मामलों को छोड़कर या जहां एक चिन्हित विकासकर्ता के रूप में राज्य नियंत्रित/स्वामित्व वाली कंपनी है और जहां नियामकों को मानदंडों के आधार पर टैरिफ निर्धारण का सहारा लेने की आवश्यकता होगी, को छोड़कर बिजली की सभी भविष्य की आवश्यकता को वितरण लाइसेंसधारियों द्वारा प्रतिस्पर्धात्मक रूप से खरीदा जाना चाहिए” अर्थात वितरण लाइसेंस धारियों द्वारा विद्युत क्रय अनुबंध (PPA) के द्वारा विद्युत क्रय उपरोक्त स्पष्टीकरण अनुसार किसी नए विद्युत उत्पादक से किया जाना संभव नहीं है। अमरकंटक नवीन परियोजना हेतु PPA (विद्युत क्रय अनुबंध) अनुमति‘ राज्य नियंत्रित/स्वामित्व वाली कंपनी’ होने एवं ‘मौजूदा परियोजनाओं के विस्तार’ के कारण ही प्राप्त हुई है, जिसे एक प्राइवेट कंपनी के नाम पर स्थानांतरित कदापि नहीं किया जा सकता है ।यदि ऐसा किया गया तो उस परिस्थिति में जॉइंट वेंचर कंपनी द्वारा विद्युत क्रय अनुबंध म.प्र.पॉ.मै.कं.लि. के साथ TBCB (अर्थात प्रतिस्पर्धात्मकता) के माध्यम से प्राप्त करना होगा, अन्यथा की स्थिति में यह विद्युत मंत्रालय; भारत सरकार के उल्लेखित नियम का खुला उल्लंघन होगा ।
जब मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी द्वारा परियोजना हेतु समस्त स्वीकृति जैसे कि पर्यावरणीय, जल, कोयला, भूमि, वन्य भूमि, विद्युत संचार एवं 100% ऊर्जा हस्ताक्षरण हेतु पी.पी.ए., म.प्र.पॉ.मै.कं.लि. के नाम पर काफी लम्बे समय के उपरान्त प्राप्त हुए है, ऐसे में परियोजना में देरी को भी टाला नहीं जा सकता, जिसका सीधा नुकसान शासन एवं जन-मानस को ही होगा, साथ ही परियोजना में विलंब से लागत में वृद्धि की संभावना को नहीं टाला जा सकता है।
अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने बताया है कि कथित परियोजना पूर्णत: मध्य प्रदेश शासन द्वारा क्रियान्वित की जाती है तो उपरोक्त उल्लेखित विवादों का प्रश्न ही नहीं होता, अपितु 660 MW कि सुपर क्रिटिकल प्लांट होने के कारण जो की सिंगाजी (2X660 MW) एवं सतपुड़ा से परिलक्षित की जाने वाली (1X660 MW) के समान ही होगी, जिससे आपातकालीन समय में अतिरिक्त उपकरणों का आदान-प्रदान सरलता से किया जा सकेगा एवं कुल श्रमशक्ति भी न्यूनतम आवश्यकता होगी ।साथ ही MPERC द्वारा परिरक्षित किये गए नॉर्म्स “राज्य के विद्युत मांग में नियुक्त 30% प्रदेश कि स्वयं की उत्पादन क्षमता रखने हेतु” का भी अनुपालन किया जा सकेगा। मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल अभियंता संघ लगातार मांग कर रहा है, कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओ और विद्युत कर्मियों के हित मे मध्य प्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड के पूर्ण स्वामित्व मे ही पावर हाउस का निर्माण हो।