संस्कार भारती की बारहवीं ऑनलाइन साहित्य संगोष्ठी सम्पन्न
संवाद जितने सरल, सहज और स्वाभाविक होंगे, उतने ही प्रभावशाली होंगे – डॉ.असीम

सारनी। संवाद-लेखन एक ऐसी कला है, जो पाठक अथवा श्रोता पर गहरा प्रभाव छोड़ती है।संवाद जितने सरल,सहज और स्वाभाविक होंगे,उनका प्रभाव उतना ही गहरा और स्थाई होगा।संवाद लेखन के क्षेत्र में बहुत संभावनाएँ हैं।संवाद चाहे काल्पनिक हो या वास्तविक उसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है।आज संवाद लेखन की कला बहुत लोकप्रिय हो रही है। लेखक अथवा वक्ता के संवाद में दिखावा या नीरसता नहीं होना चाहिए, वह जो कहना और बताना चाहता है, वह उसी प्रकार स्पष्ट होना चाहिए।भाव और विचारों के आदान-प्रदान में संवाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संवाद , लेखन और वक्तृत्व कौशल का अहम भाग होता है। यही कारण है कि लोगों को कई रचनाओं और चलचित्रों के संवाद वर्षों बाद भी यथावत कंठस्थ हैं।उक्त विचार वरिष्ठ लेखक व समीक्षक डॉ.अरविंद श्रीवास्तव ‘असीम’ ने संस्कार भारती मध्यभारत प्रांत की भोपाल महानगर इकाई द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्य संगोष्ठी के 12वें भाग में मुख्य वक्ता के रूप में “संवाद लेखन” विषय पर व्यक्त किए। डॉ.असीम ने अपने उद्बोधन में संवाद लेखन के भेद,विशेषताओं और सावधानियों का विस्तार से वर्णन करते श्रीमद्भगवद्गीता के श्रीकृष्ण-अर्जुन के मध्य हुए संवाद का उदाहरण दिया। संगोष्ठी का शुभारंभ दुर्गा मिश्रा द्वारा प्रस्तुत संस्कार भारती के ध्येय गीत के साथ हुआ ।तत्पश्चात् साहित्य संगोष्ठी की संयोजिका कुमकुम गुप्ता ने संगोष्ठी की प्रस्तावना रखी। संगोष्ठी में पुस्तक परिचय के क्रम में सर्वप्रथम डॉ.प्रभुदयाल मिश्र ने अनुपमा श्रीवास्तव’अनुश्री’ की काव्य कृति “नव अर्श के पाँखी ” तथा डॉ.माया दुबे ने कमलेश बख्शी के कहानी संग्रह ”कब तक”का पाठ किया । संगोष्ठी का कुशल संचालन व्याप्ति उमड़ेकर ने तथा युवा कवि राजेन्द्र राज, हरदा ने आभार प्रकट किया। इस अवसर पर अनीता करकरे , मोतीलाल कुशवाह , अंबादास सूने,डाक्टर रमा सिंह गुना, अरुणा शर्मा, नसरीन सिददकी सहित मध्यभारत प्रांत की विभिन्न इकाइयों से बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने भाग लिया ।