संस्कार भारती की दसवीं ऑनलाइन साहित्य संगोष्ठी सम्पन्न कथा साहित्य में दो धाराओं का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है- डॉ.मिश्र

RAKESH SONI

संस्कार भारती की दसवीं ऑनलाइन साहित्य संगोष्ठी सम्पन्न

कथा साहित्य में दो धाराओं का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है- डॉ.मिश्र

 


सारनी:-जब हम कथा शब्द प्रयोग में लाते हैं तो उसकाअत्यंत विस्तृत स्वरूप हमारे समक्ष प्रत्यक्ष होता है।कथा के अंतर्गत उपन्यास, कहानी,लघुकथा, नवीन कहानी, पुरानी कहानी सबका समावेश हो जाता है।कथा अपने में बड़ा व्यापक शब्द है।जो स्थान पद्य साहित्य में गीत का है वही स्थान गद्य साहित्य में कथा का है। गद्य साहित्य में कथा का जो स्वरूप है, वहअत्यंत प्रभावशाली है। आजादी से पहले और आजादी के बाद कथा के स्वरूप में बड़ा अंतर दिखाई देता है। समकालीन कथा साहित्य दो धाराओं में विभक्त है; एक धारा भारतीय संस्कृति से जुड़ी है, भारतीय जन-जीवन को व्याख्यायित करती है, भारतीय मूल्यों को महत्व देती है और हमारी सनातन परंपराओं को रेखांकित करती है जिसका स्रोत प्रेमचंद, प्रसाद, गुलेरी, सुदर्शन इन सबमें में जुड़ता है।स्व.नरेंद्र कोहली,स्व. मृदुला सिन्हा ने भी इस धारा का प्रतिनिधित्व किया।वर्तमान में मालती जोशी जैसे रचनाकारों में यह धारा दिखाई देती है।’ढाई बीघा जमीन’, ‘वापसी’ ये सब वो कहानी हैं जो मार्मिक हैं, संवेदना से युक्त हैं, इनमें समाज व जीवन की कठिनाइयों का वर्णन तो है किंतु समाधान भी सुझाती हैं।दूसरी धारा इससे भिन्न रूप में प्रवाहित हो रही है, इस धारा की कहानियाँ हमारे समाज में मानव मूल्यों को प्रतिष्ठा देने के स्थान पर नवीनता के लिए, नवीनता के अतिरिक्त आग्रह के लिए कहानी का वैसा स्वरूप प्रस्तुत कर रही हैं जैसा नयी कविता, अकविता आंदोलनों ने उत्पन्न किया।आज की कहानियाँ समस्याओं को तो उठाती हैं किंतु उनका सार्थक समाधान प्रस्तुत नहीं कर पातीं।उक्त विचार डॉ.कृष्णगोपाल मिश्र प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी ,होशंगाबाद ने संस्कार भारती मध्य भारत प्रांत की भोपाल महानगर इकाई द्वारा ऑनलाइन आयोजित साहित्य संगोष्ठी के दसवें भाग में मुख्य वक्ता के रूप में ” कथा लेखन का समकालीन परिदृश्य और कथाकार का दायित्व ” विषय पर व्यक्त किए। डॉ.मिश्र ने अपने उद्बोधन में स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात लिखे गए कथा साहित्य तथा समाज पर उसके प्रभाव का विस्तार से वर्णन करते हुए कथाकार के दायित्वों का उल्लेख किया। संगोष्ठी का शुभारंभ संस्कार भारती के ध्येय गीत के साथ हुआ ।तत्पश्चात् साहित्य संगोष्ठी की संयोजिका कुमकुम गुप्ता ने संगोष्ठी की प्रस्तावना रखी। संगोष्ठी में पुस्तक परिचय के क्रम में महिमा तारे,ग्वालियर ने प्रसिद्ध मराठी साहित्यकार विजय तेंदुलकर की नाटक कृति “कमला ” का तथा शलाका गोले,पुणे ने महान उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री के प्रसिद्ध उपन्यास ” वैशाली की नगर वधु ” का परिचय देते हुए कुछ अंशों का पाठ किया । संगोष्ठी का कुशल संचालन जगदीश शर्मा ‘सहज’ , अशोकनगर ने तथा युवा कवि राजेन्द्र राज हरदा ने आभार प्रकट किया। इस अवसर पर अनीता करकरे , मोतीलाल कुशवाह , अंबादास सूने, कुम कुम गुप्ता, दुर्गा मिश्रा सहित मध्यभारत प्रांत की विभिन्न इकाइयों से बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने ऑनलाइन सहभागिता की।

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