अखिल भारतीय कला साधक संगम सामाजिक समरसता पर हुए कार्यक्रम।
बैंगलुरु/सारणी। अखिल भारतीय कला साधक संगम के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में महाराष्ट्र प्रांत के सदस्यों ने संस्कार भारती के ध्येय गीत से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। धुव्र पद का सुंदर गायन वीणा के साथ प्रस्तुत किया। आर्ट ऑफ लिविंग अंतर्राष्ट्रीय सेंटर के विशाल परिसर में आयोजित कला साधक संगम के मंच पर सामाजिक समरसता पर आधारित संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें देश के असम से अनिल सैकिया , दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉक्टर अदिती नारायणी पासवान, डॉक्टर इंदू शेखर तत्पुरूष और कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्मश्री मालिनी अवस्थी द्वारा की गई। सभी विद्वत जनो ने सामाजिक समरसता के प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के ऐसे अनेक उदाहरण देते हुए बताया कि राम जी ने शबरी के झुठे बेर खाकर कृतार्थ किया। रामजी ने निषादराज को गले लगा कर समाज में आदर्श प्रस्तुत किया। डॉक्टर अदिती पासवान ने पावर पाइंट के माध्यम से मिथिला के घर-घर बनाई जाने वाली मधुबनी चित्रकला के माध्यम से समाज में दिए जाने वाले संदेशों को प्रस्तुतीकरण किया।पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने सामाजिक समरसता विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत में समरसता का भाव प्राचीन काल से हमारे मंगल कार्य होने से ही प्रारंभ हो जाता है।भारत में पहले भी समाज में कोई छुआछूत नहीं था, और आज भी नही है। यह तो एक षडयंत्र है कि किस प्रकार हिंदू समाज को तोड़ा जाए। अंत में मालवा प्रांत ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित नाट्य प्रस्तुत किया। शाम के सत्र में समरसता पर आधारित कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। जिसमें पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडू सहित अनेक प्रांतों के युवा कवियों ने अपनी समरसता आधारित कविता का पाठ किया।