समुद्र तल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचेगा राष्ट्र रक्षा मिशन
भारत- चीन, तिब्बत,भूटान पर स्थित तवांग में तैनात सैनिकों की कलाई पर सजेगी बैतूल की राखी
15 सदस्यीय दल आइटीबीपी के जवानों के साथ 30-31 अगस्त को मनाएंगा रक्षाबंधन का पर्व
बैतूल। यह इत्तफाक ही है कि बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति लगातार तीसरे वर्ष में रक्षाबंधन का पर्व भारत-चीन सीमा पर मना रही है। कारगिल युद्ध के बाद से संस्था द्वारा राष्ट्र रक्षा मिशन के माध्यम से देश की अंतराष्ट्रीय सीमाओं पर तैनात सैनिकों के साथ बैतूल की बेटियां रक्षाबंधन का पर्व मना रही है। मिशन का 24वां पड़ाव इस बार देश के अरुणाचल प्रदेश स्थित भारत-चीन सीमा पर पूरा होगा।
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समुद्र तल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचेगा राष्ट्र रक्षा मिशनभारत- चीन, तिब्बत,भूटान पर स्थित तवांग में तैनात सैनिकों की कलाई पर सजेगी बैतूल की राखी15 सदस्यीय दल आइटीबीपी के जवानों के साथ 30-31 अगस्त को मनाएंगा रक्षाबंधन का पर्वआगामी 30 एवं 31 अगस्त को जिले से 15 सदस्यीय दल द्वारा लगातार तीसरी बार भारत चीन सीमा पर रक्षाबंधन मनाया जाएगा। इसके पूर्व वर्ष 2021 में समिति के 17 सदस्यीय दल ने लेह लद्दाख, कारगिल तथा सांभा में, वर्ष 2022 में 24 सदस्यीय दल ने सिक्किम के गंगटोक एवं नाथूला में रक्षाबंधन मनाया था। इस वर्ष अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में भारत चीन, तिब्बल एवं भूटान की सीमा पर तैनात आईटीबीपी सैनिकों के साथ रक्षाबंधन मनेगा। यह पहला मौका होगा जब विषम परिस्थितियों में 17 हजार फीट पर तैनात सैनिकों की तरह दो दिन राष्ट्र रक्षा मिशन का दल भी सरहद पर रहेगा। गौरतलब है कि गत वर्ष संस्था के दल ने 14 हजार 150 फीट ऊंचाई पर पांच घंटे नाथूला में बिताये थे। अनुमति मिलने के बाद समिति द्वारा 15 सदस्यीय दल का चयन किया जा चुका है, इसी के साथ जोर-शोर से तैयारियां भी प्रारंभ हो गई है। राखियां बनाने का सिलसिला भी शुरु हो चुका है साथ ही आरती की थालियां भी सजाई गई है।
26 को रवाना होगा 15 सदस्यीय दल
बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की अध्यक्ष गौरी पदम ने बताया कि 26 अगस्त को इटारसी से डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस से संस्था का दल तवांग के लिए रवाना होगा। जो 29 अगस्त की शाम तक तवांग पहुंचेगा। 30 एवं 31 अगस्त को तवांग में एलएसी साथ बटालियन मुख्यालय पर भी सैनिकों के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि 15 सदस्यीय दल में 5 नए सदस्यों को भी अवसर दिया गया है। जिनमें अरुणा पाटनकर, निशि राठौर शाहपुर, ज्योति यदुवंशी, आकृति परमार, प्रियंका पंडोले शामिल है। पदाधिकारियों एवं वरिष्ठ सदस्यों में भारत सिंह पदम, मेहर प्रभा परमार, प्रचिति कमाविसदार, प्रज्ञा झगेकर, वंश कुमार पदम, प्रदीप निर्मले, नीलेश उपासे, अरुण सूर्यवंशी राष्ट्र रक्षा मिशन 2023 का हिस्सा बनेंगे।
चीन, तिब्बल और भूटान की सीमा पर स्थित है तवांग
भारत और चीन के बीच करीब 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह बॉर्डर अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तरारखंड और सिक्किम से लगता है। अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग लगभग 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है। तवांग का इलाका मैकमोहन लाइन के अंदर पड़ता है और यह भारत का अहम हिस्सा है। यह इलाका पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत का बॉर्डर भी साझा करता है। तवांग मेंं विशाल बौद्ध मठ भी है। तवांग 1962 के भारत-चीन युद्ध से भी जुड़ा हुआ है। 1962 के युद्ध में भारत को यहां काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। बाद में युद्धविराम के तहत चीन को पीछे हटना पड़ा था। मैकमोहन समझौते के बाद तवांग को भारत का हिस्सा माना गया। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, महावीर चक्र से सम्मानित जसवन्त सिंह रावत ने सेला और नूरा नाम की दो स्थानीय मोनपा लड़कियों की मदद से इस पहाड़ी दर्रे पर चीनी सेना को रोक दिया था। बाद में, सेला की हत्या कर दी गई और नूरा को पकड़ लिया गया। एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागते हुए, जसवंत सिंह ने दुश्मन को 72 घंटों तक रोके रखा जब तक कि चीनियों ने एक स्थानीय आपूर्तिकर्ता को पकड़ नहीं लिया, जिसने उन्हें बताया कि वे केवल एक लड़ाकू का सामना कर रहे थे। इसके बाद चीनियों ने जसवंत की स्थिति पर हमला कर दिया और वह शहीद हो गए। भारतीय सेना ने जसवन्त सिंह के लिए जसवन्त गढ़ युद्ध स्मारक बनवाया और दर्रे, सुरंग और झील का नाम सेला के बलिदान के लिए उसके नाम पर रखा गया। सुरंग का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है। 2 किमी पूर्व में स्थित नूरानांग जलप्रपात का नाम नूरा के नाम पर रखा गया है।
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आगामी 30 एवं 31 अगस्त को जिले से 15 सदस्यीय दल द्वारा लगातार तीसरी बार भारत चीन सीमा पर रक्षाबंधन मनाया जाएगा। इसके पूर्व वर्ष 2021 में समिति के 17 सदस्यीय दल ने लेह लद्दाख, कारगिल तथा सांभा में, वर्ष 2022 में 24 सदस्यीय दल ने सिक्किम के गंगटोक एवं नाथूला में रक्षाबंधन मनाया था। इस वर्ष अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में भारत चीन, तिब्बल एवं भूटान की सीमा पर तैनात आईटीबीपी सैनिकों के साथ रक्षाबंधन मनेगा। यह पहला मौका होगा जब विषम परिस्थितियों में 17 हजार फीट पर तैनात सैनिकों की तरह दो दिन राष्ट्र रक्षा मिशन का दल भी सरहद पर रहेगा। गौरतलब है कि गत वर्ष संस्था के दल ने 14 हजार 150 फीट ऊंचाई पर पांच घंटे नाथूला में बिताये थे। अनुमति मिलने के बाद समिति द्वारा 15 सदस्यीय दल का चयन किया जा चुका है, इसी के साथ जोर-शोर से तैयारियां भी प्रारंभ हो गई है। राखियां बनाने का सिलसिला भी शुरु हो चुका है साथ ही आरती की थालियां भी सजाई गई है।
26 को रवाना होगा 15 सदस्यीय दल
बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की अध्यक्ष गौरी पदम ने बताया कि 26 अगस्त को इटारसी से डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस से संस्था का दल तवांग के लिए रवाना होगा। जो 29 अगस्त की शाम तक तवांग पहुंचेगा। 30 एवं 31 अगस्त को तवांग में एलएसी साथ बटालियन मुख्यालय पर भी सैनिकों के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि 15 सदस्यीय दल में 5 नए सदस्यों को भी अवसर दिया गया है। जिनमें अरुणा पाटनकर, निशि राठौर शाहपुर, ज्योति यदुवंशी, आकृति परमार, प्रियंका पंडोले शामिल है। पदाधिकारियों एवं वरिष्ठ सदस्यों में भारत सिंह पदम, मेहर प्रभा परमार, प्रचिति कमाविसदार, प्रज्ञा झगेकर, वंश कुमार पदम, प्रदीप निर्मले, नीलेश उपासे, अरुण सूर्यवंशी राष्ट्र रक्षा मिशन 2023 का हिस्सा बनेंगे।
चीन, तिब्बल और भूटान की सीमा पर स्थित है तवांग
भारत और चीन के बीच करीब 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह बॉर्डर अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तरारखंड और सिक्किम से लगता है। अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग लगभग 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है। तवांग का इलाका मैकमोहन लाइन के अंदर पड़ता है और यह भारत का अहम हिस्सा है। यह इलाका पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत का बॉर्डर भी साझा करता है। तवांग मेंं विशाल बौद्ध मठ भी है। तवांग 1962 के भारत-चीन युद्ध से भी जुड़ा हुआ है। 1962 के युद्ध में भारत को यहां काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। बाद में युद्धविराम के तहत चीन को पीछे हटना पड़ा था। मैकमोहन समझौते के बाद तवांग को भारत का हिस्सा माना गया। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, महावीर चक्र से सम्मानित जसवन्त सिंह रावत ने सेला और नूरा नाम की दो स्थानीय मोनपा लड़कियों की मदद से इस पहाड़ी दर्रे पर चीनी सेना को रोक दिया था। बाद में, सेला की हत्या कर दी गई और नूरा को पकड़ लिया गया। एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागते हुए, जसवंत सिंह ने दुश्मन को 72 घंटों तक रोके रखा जब तक कि चीनियों ने एक स्थानीय आपूर्तिकर्ता को पकड़ नहीं लिया, जिसने उन्हें बताया कि वे केवल एक लड़ाकू का सामना कर रहे थे। इसके बाद चीनियों ने जसवंत की स्थिति पर हमला कर दिया और वह शहीद हो गए। भारतीय सेना ने जसवन्त सिंह के लिए जसवन्त गढ़ युद्ध स्मारक बनवाया और दर्रे, सुरंग और झील का नाम सेला के बलिदान के लिए उसके नाम पर रखा गया। सुरंग का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है। 2 किमी पूर्व में स्थित नूरानांग जलप्रपात का नाम नूरा के नाम पर रखा गया है।
26 को रवाना होगा 15 सदस्यीय दल
बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति की अध्यक्ष गौरी पदम ने बताया कि 26 अगस्त को इटारसी से डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस से संस्था का दल तवांग के लिए रवाना होगा। जो 29 अगस्त की शाम तक तवांग पहुंचेगा। 30 एवं 31 अगस्त को तवांग में एलएसी साथ बटालियन मुख्यालय पर भी सैनिकों के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि 15 सदस्यीय दल में 5 नए सदस्यों को भी अवसर दिया गया है। जिनमें अरुणा पाटनकर, निशि राठौर शाहपुर, ज्योति यदुवंशी, आकृति परमार, प्रियंका पंडोले शामिल है। पदाधिकारियों एवं वरिष्ठ सदस्यों में भारत सिंह पदम, मेहर प्रभा परमार, प्रचिति कमाविसदार, प्रज्ञा झगेकर, वंश कुमार पदम, प्रदीप निर्मले, नीलेश उपासे, अरुण सूर्यवंशी राष्ट्र रक्षा मिशन 2023 का हिस्सा बनेंगे।
चीन, तिब्बल और भूटान की सीमा पर स्थित है तवांग
भारत और चीन के बीच करीब 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह बॉर्डर अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तरारखंड और सिक्किम से लगता है। अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग लगभग 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है। तवांग का इलाका मैकमोहन लाइन के अंदर पड़ता है और यह भारत का अहम हिस्सा है। यह इलाका पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत का बॉर्डर भी साझा करता है। तवांग मेंं विशाल बौद्ध मठ भी है। तवांग 1962 के भारत-चीन युद्ध से भी जुड़ा हुआ है। 1962 के युद्ध में भारत को यहां काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। बाद में युद्धविराम के तहत चीन को पीछे हटना पड़ा था। मैकमोहन समझौते के बाद तवांग को भारत का हिस्सा माना गया। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, महावीर चक्र से सम्मानित जसवन्त सिंह रावत ने सेला और नूरा नाम की दो स्थानीय मोनपा लड़कियों की मदद से इस पहाड़ी दर्रे पर चीनी सेना को रोक दिया था। बाद में, सेला की हत्या कर दी गई और नूरा को पकड़ लिया गया। एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागते हुए, जसवंत सिंह ने दुश्मन को 72 घंटों तक रोके रखा जब तक कि चीनियों ने एक स्थानीय आपूर्तिकर्ता को पकड़ नहीं लिया, जिसने उन्हें बताया कि वे केवल एक लड़ाकू का सामना कर रहे थे। इसके बाद चीनियों ने जसवंत की स्थिति पर हमला कर दिया और वह शहीद हो गए। भारतीय सेना ने जसवन्त सिंह के लिए जसवन्त गढ़ युद्ध स्मारक बनवाया और दर्रे, सुरंग और झील का नाम सेला के बलिदान के लिए उसके नाम पर रखा गया। सुरंग का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया है। 2 किमी पूर्व में स्थित नूरानांग जलप्रपात का नाम नूरा के नाम पर रखा गया है।
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