इस सावन करे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन जानते है वास्तु शास्त्री सुमित्रा से
कोलकाता। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर मिलता है फल प्राप्त होता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आध्रप्रदेश के कृष्णा नदी के तट पर स्थित है और यह ज्योतिर्लिंग श्रीशैल नामक पर्वत पर स्थित है। ग्रंथों के अनुसार हिंदुओं के लिए श्री शैल पर्वत का अधिक महत्व है और इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस पर्वत पर जो व्यक्ति भगवान शिव की पूजा अर्चना करता है वह अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल पाता है। और भगवान शिव की कृपा से उसके सारे दुख नष्ट हो जाते हैं। शिव पुराण के अनुसार यह बताया गया है कि मल्लिका का अर्थ मां पार्वती है।
भगवान शिव और पार्वती के पुत्र गणेश और कार्तिकेय है।
कथा
एक दिन भगवान गणेश और कार्तिकेय विवाह के लिए आपस में झगड़ रहे थे और झगड़ते – झगड़ते अपने माता पिता के पास झगड़ा सुलझाने के लिए गए। भगवान शिव और पार्वती जी ने झगड़े का कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि पहले किसका विवाह होगा, इसी विषय में झगड़ा हो रहा है। यह सुनकर माता पार्वती ने झगड़े के समाधान के लिए दोनों भाइयों से कहां की जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा उसी का विवाह पहले होगा, माता पार्वती के द्वारा ऐसा सुनकर कार्तिकेय जी ने पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल दिए। कार्तिकेय का वाहन मोर है और गणेश जी का वाहन चूहा है लेकिन भगवान गणेश बहुत ही बुद्धिमान थे। जब कार्तिकेय परिक्रमा के लिए वहां से चले गए तब गणेश ने कुछ विचार किया उसके बाद फिर अपने माता पिता से एक स्थान पर बैठने का आग्रह किया।
उसके बाद अपने माता पिता का ७ बार परिक्रमा किया जिससे पृथ्वी की परिक्रमा से मिलने वाले फल की प्राप्ति की और शर्त जीत गए। उनकी यह बुद्धि देखकर भगवान शिव और पार्वती बहुत ही प्रसन्न हुए और गणेश जी का विवाह कराया पृथ्वी की परिक्रमा पूरा कर जब कार्तिकेय जी वापस आए तो गणेश जी का विवाह देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। तब उसी समय कार्तिकेय जी ने अपने माता-पिता के चरण छू कर वहां से चले गए। जब माता पार्वती और भगवान शिव को पता चला कि कार्तिकेय जी नाराज हो कर चले गए तब उन्होंने नारद जी को मनाने के लिए भेजें और कहां की कार्तिकेय जी को मना कर घर वापस लाएं। क्रौंच पर्वत पर नारद जी कार्तिकेय जी को मनाने पहुंचे और मनाने का बहुत प्रयत्न किया। कार्तिकेय जी ने नारद जी की एक न सुनी अंत में निराश होकर नारद जी वापस चले गए और माता पार्वती और भगवान शिव से सारा वृत्तांत सुनाया। यह सुन माता पार्वती भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर कार्तिकेय जी को मनाने पहुंची। माता पिता के आगमन को सुन कार्तिकेय जी १२ कोस दूर चले गए तब भगवान शिव वहां पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से वह स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से प्रसिद्ध हुआ। ऐसा कहा जाता है कि वहां पर पुत्र स्नेह में माता पार्वती हर पूर्णिमा और भगवान शिव हर अमावस्या के दिन वहां आते हैं।
क्या ये शक्ति पीठ है ?
इस स्थान पर माता सती का एक अंग गिरने से यह स्थान शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यहां मंदिर में महालक्ष्मी के रूप में अष्टभुजा मूर्ति स्थापित है यह स्थान बहुत ही पवित्र माना गया है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व
शैल को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। शैल पर्वत से निकलने वाली कृष्णा नदी के तट पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत, शिव पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। जिसके अनुसार यहां दर्शन करने मात्र से अभीष्ट फल मिलता है।पुराणों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि शैल पर्वत पर सच्ची श्रद्धा से पूजा अर्चना करने से अश्वमेघ के बराबर फल की प्राप्ति होती है और यहां आने मात्र से सभी भक्तों के कष्ट दूर होते हैं ५१ शक्तिपीठों में से १ शक्तिपीठ यह भी है। यहां एक जगदंबा माता का मंदिर भी है और यहां सावन के महीने में भक्तों की अधिक भीड़ लगती है दर्शन के लिए यहां भक्तों की लंबी कतार में लाइन लगती है।