धन अभाव, आर्थिक असंतुलन और कर्जा जानते है वास्तु शास्त्री सुमित्रा से ।
कोलकाता। आर्थिक असंतुलन होने पर कर्ज लेना कभी मजबूरी तो कभी आवश्यकता हो जाती है। व्यक्ति के जीवन में दो क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ कर्ज की आवश्यकता पड़ती है – घरेलु और शैक्षिक आवश्यकताएँ और दूसरी व्यावसायिक आवश्यकताएँ ।
कर्ज और जन्मपत्रिका –
कर्ज लेने की परिस्थितियों के उत्पन्न होने में अथवा कर्ज के निस्तारण में सिर्फ एक व्यक्ति की जन्मपत्रिका के ग्रह महत्वपूर्ण नहीं होते है , अपितु जीवनसाथी या व्यवसायिक साझेदारों की पत्रिकाएँ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
कर्ज लेना किसके नाम से शुभ रहेगा ?
यह जान लेना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है की किसके नाम पर कर्ज ले। जन्मपत्रिका में इसका जवाब मिलता है।
घरेलु आवश्यकताएँ:
गृहस्थ जीवन पति-पत्नी दोनों के भाग्य से सुखमय बना रहता है। आजकल फाइनेंस करवाकर वस्तुएँ खरीदने की व्यवस्था अधिक प्रभावी है। जीवनसाथी कोई काम धंधा करें या न करें, उनकी आई.टी.आर. फाईल बनवा देना जरूरी हो गया है क्योंकि पता नहीं कब जरूरत पड़ जाये। गृहस्थ जीवन सर्वाधिक अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों से युक्त होता है। समय-समय पर भाँति-भाँति के काम पड़ते रहते हैं । पति-पत्नी की जन्मपत्रिकाओं में ग्रह स्थितियाँ व दशाएं अलग-अलग चल रही होती हैं। किसी की पत्रिका में खर्चे का योग बन रहा होता है तो किसी की पत्रिका में कर्ज लेने का योग बन रहा हो।
जिसकी पत्रिका में कर्ज लेने का योग बन रहा हो उसके नाम से ऋण लिया जाए तो वह आसानी से चुक जाता है। ऐसी मान्यताएँ रही हैं कि जो योग बने तदनुसार ही कार्य किए जाएं तो असुविधा उत्पन्न नहीं होती। पति या पत्नी दोनों में से जिसकी पत्रिका में छठे भाव को बृहस्पति प्रभावित कर रहे हों, कर्जा उसी के नाम से लेना ठीक रहता है। छठे भाव में बृहस्पति स्थित हों तो जातक को बार-बार कर्जा लेना ही पड़ता है।
जन्मपत्रिका, ग्रह और उनकी स्थिति –
कर्ज लेने से संबंधित ग्रह स्थितियाँ निम्न हो सकती हैं –
१ . बृहस्पति का छठे भाव में स्थित होना।
२ . बृहस्पति का छठे भाव में गोचर करना।
३ . बृहस्पति का जन्म राशि से १२ वीं राशि में। आना।
४ . षष्ठेश का लाभ भाव में गोचर करना।
५ . षष्ठेश का लग्न में गोचर करना।
६ . धनेश का छठे भाव में गोचर करना।
७ . षष्ठेश की दशान्तर्दशा रहना ।
८ . षष्ठ भाव में स्थित ग्रह की दशान्तर्दशा रहना।
९ . चौथे भाव का बृहस्पति से प्रभावित होना ।
कर्ज , साझेदारी और व्यवसाय –
व्यावसायिक आवश्यकताएँ: यदि आपका व्यवसाय साझेदारी में चलता है तो स्वयं की और साझेदार की जन्मपत्रिका का आंकलन करके ही कर्ज लेने का मानस बनाना चाहिए। यदि व्यवसाय पर आपका एक छत्र अधिकार हो तो फिर जीवनसाथी की पत्रिका को अपने साथ जोड़कर संयुक्त रूप से कर्ज लेना चाहिए।
कर्ज और संतान –
यदि पुत्र भी आपके कार्य व्यवसाय में बराबर का सहयोगी है तो पुत्र की जन्मपत्रिका भी आपके लिए अनुकूल सिद्ध हो सकती है। ग्रहो की स्थिति को देखने के बाद ये निर्णय करना चाहिए की उनके नाम पर कर्ज लेना है की नहीं।
मनुष्य जीवन में आवश्यकता किसी भी रूप में सामने आ सकती है परंतु उसकी पूर्ति पूर्ण बुद्धिमानी से करनी चाहिए। धन के अभाव को दूर करने या कर्ज प्राप्ति के लिए महालक्ष्मी जी के पूजा पाठ भी मददगार सिद्ध होते हैं।