क्यों करे माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म पितामह का तर्पण – जानते है सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल

RAKESH SONI

क्यों करे माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म पितामह का तर्पण – जानते है सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल

सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल

सिटी प्रेसीडेंट इंटरनेशनल वास्तु अकादमी , कोलकाता

कोलकाता। भीष्म अष्टमी शनिवार, जनवरी २८ , २०२३ को है।  मध्याह्न समय – दिन में ११ :२८ बजे से दोपहर ०१ :२९ बजे तक रहेगा।

माघ शुक्ल अष्टमी भीष्म पितामह की पुण्यतिथि है, जो महान भारतीय महाकाव्य, महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक हैं और इस दिन को भीष्म अष्टमी के रूप में जाना जाता है। भीष्म ने ब्रह्मचर्य के लिए सिर झुकाया और जीवन भर इसका पालन किया। अपने पिता पितामह के प्रति निष्ठा और भक्ति के कारण भीष्म को अपनी मृत्यु का समय चुनने का वरदान प्राप्त था।

जब वह महाभारत के युद्ध में घायल हो गए तो उन्होंने अपने वरदान के कारण अपना शरीर नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने शरीर को त्यागने के लिए शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा की। हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान सूर्यदेव वर्ष के आधे समय में दक्षिण दिशा में विचरण करते हैं जो कि अशुभ अवधि होती है और सभी शुभ कार्य तब तक के लिए स्थगित कर दिए जाते हैं जब तक कि सूर्यदेव वापस उत्तर दिशा में नहीं चले जाते। माघ शुक्ल अष्टमी ‘भीष्माष्टमी’ के नामसे प्रसिद्ध है। इसी तिथिको बाल ब्रह्मचारी भीष्मपितामहने सूर्यके उत्तरायण होनेपर अपने प्राण छोड़े थे। उनकी पावन स्मृतिमें यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन प्रत्येक हिन्दूको भीष्मपितामहके निमित्त कुश, तिल, जल लेकर तर्पण करना चाहिये, चाहे उसके माता-पिता जीवित ही क्यों न हों। महाभारत अनुसार जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमीको भीष्मके निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसके वर्षभरके पाप नष्ट हो जाते हैं। 

 इस दिन स्नानकर भीष्मपितामहके निमित्त हाथमें तिल, जल आदि लेकर अपसव्य और दक्षिणाभिमुख होकर तर्पण करना चाहिये। 

 भीष्मपितामह से जुड़ी कथा – भीष्मपितामह हस्तिनापुर के राजा शन्तनु के पुत्र थे। गङ्गा जी इनकी माता थीं। बचपन में इनका नाम देवव्रत था। इन्होंने देवगुरु बृहस्पति से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। वीर होने के साथ ही ये सदाचारी और धार्मिक थे। सब प्रकार से योग्य देखकर महाराज शन्तनुने इन्हें युवराज घोषित कर दिया था। 

एक बार महाराज शन्तनु शिकार खेलने गये और वहाँ उन्होंने मत्स्यगन्धा नामक एक निषादकन्या को देखा, उसके शरीरसे कमलकी सुगन्ध निःसृत हो रही थी जो एक योजनतक जाती थी। महाराज शन्तनु उसके रूपलावण्यपर मुग्ध होकर उसके पिता निषादराजसे उस कन्या के लिये याचना की। निषादराजने शर्त रखी कि इस कन्यासे उत्पन्न पुत्र ही राज्यका अधिकारी हो ।

राजा शन्तनु उदास हो गये, वे राजकुमार देवव्रत के अधिकार को छीनना नहीं चाहते थे, पर मत्स्यगन्धा को वे अपने हृदय से निकाल नहीं पा रहे थे और बीमार हो गये। राजकुमार देवव्रतको जब राजाकी बीमारी का कारण का पता लगा तो वे निषादराज के पास गये। देवव्रत ने कहा कि इस कन्यासे उत्पन्न होनेवाला पुत्र ही राज्यका अधिकारी होगा, मैं सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ कि मैं राजसिंहासन पर नहीं बैठूंगा। इसपर निषादराज ने कहा कि आप राज्यसिंहासन पर नहीं बैठेंगे, परंतु आपका पुत्र मेरे दौहित्रों से सिंहासन छीन सकता है। ऐसा सुनकर राजकुमार देवव्रतने सभी दिशाओं और देवताओंको साक्षी करके आजीवन ब्रह्मचारी रहने और विवाह न करनेकी भीषण प्रतिज्ञा की। इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम ‘भीष्म’ पड़ा।

अपने पिताके सुखके लिये इतने बड़े व्रतको निभानेवाले आजीवन बालब्रह्मचारी भीष्मका चरित्र हम सबके लिये अनुकरणीय है। उनकी पुत्रहीन अवस्था में मृत्यु हुई, परंतु इनके अखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत के कारण समस्त हिन्दू समाज पुत्र की भाँति भीष्म पितामह का तर्पण करते है।

Advertisements
Advertisements
Advertisements
Advertisements
Advertisements
Advertisements
Share This Article
error: Content is protected !!