कई बार हमसे वह हो जाता है जो हम नहीं चाहते हैं, ऐसा क्यों होता है: – पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज

RAKESH SONI

कई बार हमसे वह हो जाता है जो हम नहीं चाहते हैं, ऐसा क्यों होता है: – पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज

सारनी। श्रीरामचरितमानस के प्रसंगों के माध्यम से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि भावी प्रबल होता है और ईश्वर द्वारा रचित विधान का हर हाल में पालन होता है। भगवान श्री राम का वन गमन इसका उदाहरण है। परम विदुषी कैकई अंबा को सब कुछ पता है कि अगर रामजी वन चले जाएंगे तो भरत जी गद्दी स्वीकार नहीं करेंगे, लक्ष्मण भैया अयोध्या में नहीं रहेंगे, माता सीता भी उनके साथ जाएंगी और दशरथ जी के प्राण की रक्षा नहीं हो पाएगी । फिर भी उनसे यह कार्य हुआ। इसे ही विधि की रचना कहते हैं। मनुष्य का इस विधि की रचना पर कोई वश नहीं होता है।

उक्त बातें बैतूल के सारनी में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के छठे दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।

श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि वो व्यक्ति जो अपना सब कार्य कर पूरा चुका हो अर्थात अपने जीवन से जुड़े सभी दायित्वों का निर्वाहन कर चुका हो तो उसके लिए यह उचित होता है कि वह अब जो कुछ भी एक बच्चे को छह समय हैं उसमें अपने लिए तैयारी करें अपने अगले बचपन की तैयारी करें। परमार्थ पथ की यात्रा की तैयारी करे।

आपाधापी और भागदौड़ में आम आदमी की पूरी जिंदगी निकल जाती है और जब मनुष्य को अपने बारे में सोचने का समय आता है तो उसके पास समय ही नहीं बचता है। सनातन धर्म के हिसाब से बचपन युवा अवस्था की तैयारी करता है। युवा अवस्था बुढ़ापे की तैयारी करता है और बुढ़ापा अगले बचपन की तैयारी करता है।

महाराज श्री ने कहा कि

अगर आपको हमारी बातों पर विश्वास नहीं हो तो आप उन व्यक्तियों की सूची बनाना शुरू करिए जो आपके लिए समर्पित हों। आप सूची बनाते जाएंगे काटते जाएंगे और अंत में पाएंगे कि शायद एक या दो ही ऐसे व्यक्ति होंगे जो आपके लिए होंगे। उनमें भी आपको निर्मलता के भाव की तलाश नहीं करनी चाहिए अन्यथा दुख के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।

 हमारे सनातन शास्त्र इस बारे में बार-बार चेतावनी देते हैं। मंदोदरी माता ने रावण को भी यही शिक्षा दी थी कि अब चौथेपन में वानप्रस्थ की सोच करें, लेकिन रावण नहीं माना और परिणाम सभी को पता है।

 पूज्य श्री ने कहा कि धर्म स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं करता है। धर्म को जानना मानना और उसके अनुरूप आचरण करना यह तीनों अलग विषय हैं। धर्म के अनुसार आचरण करने वाला ही अपने प्र

प्रारब्ध को पुष्ट करते हुए अगले जन्म के लिए सुख पूर्वक यात्रा कर पाता है।

श्री सीताराम विवाह के बाद के प्रसंगों का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोता गण को महाराज जी के द्वारा गाए गए दर्जनों भजनों पर झूमते हुए देखा गया।

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