बैतूल के लाडो अभियान ने बेंगलुरु-कर्नाटक में दी दस्तक
बेटियों की पहचान और सम्मान का अनिल ने किया अद्भुत प्रयास

बैतूल। कौन कहता है आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों’ कवि दुष्यंत की यह प्रख्यात कविता बैतूल के अनिल यादव पहलवान पर सटीक बैठती है। उन्होंने बेटियों को पहचान दिलाने के लिए 7 वर्ष पहले शुरू किए गए अभियान को पूरे देश में बहुत ही कम समय में पहचान दिलाने का काम किया है। हाल ही में अनिल यादव द्वारा शुरू किया गया बेटी के नाम से हो घर की पहचान, लाडो अभियान ने बेंगलुरु कर्नाटक में दस्तक दे दी है। यहां बेंगलुरु कर्नाटक निवासी पिता एमके चंद्रमौली, माता श्रीमती वैष्णवी सुधा की बेटी लीला अश्वनी एवं पिता रविकिरण नूतालापति माता श्रीमती गिरिजाश्री की बेटी नेतन्या के नाम की नेम प्लेट लगाई गई। गौरतलब है यह अभियान फाउंडेशन के अनिल गूंजेले द्वारा पहुंचाया गया। हॉउस नंबर 303 और 310 अगना इंद्रप्रस्थ चर्च रोड मुरुगेशपाल्या बेंगलुरु पहुंचकर उनके द्वारा नेम प्लेट लगाई गई। इस अवसर पर सभी ने लाडो फाउंडेशन की अभियान की प्रशंसा की।
इस अवसर पर अनिल यादव ने कहा कि पहले जहां लोग कहते थे कि बेटियों के नाम से नेम प्लेट लगाने से क्या होगा आज आज वह अभियान बनकर पूरे देश में बेटियों का नाम रोशन कर रहा है। उनका प्रयास है कि देश के कोने कोने में उनका यह अभियान पहुंचे। उन्होंने कहा कि किसी भी कार्य की सफलता की कोई भी ऐसी सीमा तय नहीं है, जिससे अधिक सफलता आप प्राप्त नहीं कर सकते या कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जिसके बारे में यह कहा जा रहा हो कि उसे सफलतापूर्वक नहीं किया जा सकता बस जरूरत यह है कि उस कार्य की सफलता हेतु आप अपना सर्वस्व अर्पण कर दें, पूरी ताकत लगा कर पूरी तबीयत से अपना प्रयास करें। हर आसमाँ में छेद किया जा सकता है अगर आसमाँ की तरफ तबीयत से पत्थर फेंका जाए।
बेटी के जन्म से की थी अभियान की शुरुआत
कद छोटा सोच बड़ी
अनिल यादव ने अपनी लाडो बेटी आयुषी के जन्मदिन 8 नवंबर 2015 को आयुषी के नाम की नेम्पलेट लगाकर जन्मदिन का तोहफा दिया था। अनिल ने 7 वर्ष पूर्व अपने पिता नारायण यादव से अपनी इच्छा सांझा करते हुए कहा था कि क्यों ना बेटी आयुषी के नाम की घर के बाहर नेम पर लगाई जाए तो कैसा रहेगा। श्री यादव के पिता ने खुशी-खुशी हां कर दी और फिर शुरू हुई एक नई मुहिम जिस भी घर में बेटी होगी उस घर में बेटी के नाम की नेमप्लेट निशुल्क लगाई जाएगी। बेटी के नाम घर की पहचान इस पहल की प्रेरणा उनकी स्वयं की लाडो बेटी आयुषी से मिली और फिर यह पहल धीरे धीरे अभियान बन गई। नेमप्लेट देखकर आसपास के लोगों ने पूछा कि इस नेम प्लेट से क्या होगा इससे क्या फायदा है फिर उन माता-पिता को समझाया गया कि पहले घर की पहचान बड़े बुजुर्गों के नाम से हुआ करती थी अब घर के बाहर बेटी की नेमप्लेट लगेगी तो घर तो घर की पहचान बेटी के नाम से होगी और इस अभियान से बेटियों के साथ-साथ बेटीयों के माता-पिता भी खुश है। अनिल की इस नई पहल की हर तरफ सराहना हो रही है चाहे जनप्रतिनिधि हो या प्रशासनिक अधिकारी या गणमान्य नागरिक समाज सेवी,आमजन भी इस पहल की प्रशंसा कर रहे हैं।
16 राज्यों में पहुंचा अभियान
समिति के सदस्य एवं अन्य सहयोगियों के माध्यम से यह अभियान देश के 16 राज्यों में पहुंच गया जिसमे कर्नाटक,हरियाणा, राजस्थान,गुजरात, उड़ीसा, केरला, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, हिमाचल प्रदेश,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, असम एवं मध्य प्रदेश के 25 जिले और बैतूल जिले के लगभग 100 से अधिक गांव में लगभग 3000 घरों में बेटियों के नाम की नेम प्लेट लगाने का कार्य कर चुके है। श्री यादव स्वयं के खर्च पर यह नेम प्लेट लगाते हैं। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत एवं शपथ दिलाई गई थी। कुछ महीनों बाद 8 नवंबर 2015 में उन्होंने बेटी के नाम से घर की पहचान अभियान की शुरुआत की। यह अभियान निरंतर जारी है। श्री यादव के इस अभियान से गांव, शहर और राज्यों के लोग भी जुड़ रहे हैं। निश्चित ही बेटियों की पहचान और सम्मान का अभियान देश भर में अपना परचम लहराएगा और बैतूल जिले का नाम गौरवान्वित होगा।