वास्तु जाने और सीखे – भाग १२ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल  से सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल

RAKESH SONI

वास्तु जाने और सीखे – भाग १२ वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल  से सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल

कोलकाता सिटी प्रेजिडेंट इंटरनेशनल वास्तु अकादमी


कोलकाता। सूतजी ऋषियों को स्पस्ट रूप से बताते है किस कार्य से जुड़े व्यक्ति को किस प्रकार के गृह में वस् करना चाहिए। एक राजा जो देश का संचालक होता है और पालक होता है उनके लिए ऊर्जा की आवस्यकता अधिक होती है, एक सेनापति की कम होती है, ब्राह्मण, छत्रिय, शूद्र हर वर्ण के व्यक्ति की ऊर्जा छमता अलग होती है और उसी के अनुरूप ही उन्हें अपने गृह का निर्माण करना चाहिए।

सूत जी कहते है –

चत्वारिंशत् तथाष्टौ च चतुर्भिर्हीयते क्रमात् ।

चतुर्थांशाधिकं दैर्घ्यं पञ्चस्वेतेषु शस्यते ॥ २२

अर्थात – इनमें उत्तम भवनकी चौड़ाई अड़तालीस हाथ की होनी चाहिये तथा अन्य चारों की चौड़ाई क्रमशः चार-चार हाथ कम कही गयी है।
इन पाँचों भवनों की लम्बाई चौड़ाई की अपेक्षा सवाया अधिक कही गयी है।

शिल्पिनां कञ्चुकीनां च वेश्यानां गृहपञ्चकम् ।
अष्टाविंशत् कराणां तु विहीनं विस्तरे क्रमात् ॥ २३
अर्थात – अब शिल्पकार, कंचुकी और वेश्याओं के पाँच प्रकार के भवनों को सुनिये।
इन सभी भवनों की चौड़ाई अट्ठाईस हाथ कही गयी है। अन्य चारों भवनों की चौड़ाई में क्रमशः दो-दो हाथ की न्यूनता होती है। लम्बाई चौड़ाई से दुगुनी कही गयी है ॥

द्विगुणं दैर्घ्यमेवोक्तं मध्यमेष्वेवमेव तत् ।
दूतीकर्मान्तिकादीनां वक्ष्ये भवनपञ्चकम् ॥ २४
अर्थात – दूती कर्म करनेवालों तथा परिवार के अन्य लोगों के पाँच प्रकार के भवनों की वास्तु रचना – उनकी चौड़ाई बारह हाथ की तथा लम्बाई उससे सवाया अधिक होती है।

चतुर्थांशाधिकं दैर्घ्यं विस्तारो द्वादशैव तु।
अर्धार्धकरहानिः स्याद् विस्तारात् पञ्चशः क्रमात् ॥ २५
दैवज्ञगुरुवैद्यानां सभास्तारपुरोधसाम् ।
तेषामपि प्रवक्ष्यामि तथा भवनपञ्चकम् ॥ २६
चत्वारिंशत् तु विस्ताराच्चतुर्भिर्हीयते क्रमात्।
पञ्चस्वेतेषु दैर्घ्यं च षड्भागेनाधिकं भवेत् ॥ २७
चतुर्वर्णस्य वक्ष्यामि सामान्यं गृहपञ्चकम् ।
द्वात्रिंशतः कराणां तु चतुर्भिर्हीयते क्रमात् ॥ २८
आषोडशादिति परं नूनमन्त्यावसायिनाम् ।
दशांशेनाष्टभागेन त्रिभागेनाथ पादिकम् ॥ २९
अधिकं दैर्घ्यमित्याहुर्ब्राह्मणादेः प्रशस्यते ।
सेनापतेर्नृपस्थापि गृहयोरन्तरेण तु ॥ ३०
नृपवासगृहं कार्यं भाण्डागारं तथैव च ।
अर्थात –
शेष चार गृहों की चौड़ाई क्रमशः आधा-आधा हाथ न्यून होती है।
ज्योतिषी, गुरु, वैद्य, सभापति और पुरोहित -इन सभी के पाँच प्रकार के भवनों का वर्णन कर रहा हूँ।
उनके उत्तम भवन की चौड़ाई चालीस हाथ की होती है।
शेष की क्रम से चार-चार हाथ की कम होती है। इन पाँचों भवनों की लम्बाई चौड़ाई के षष्ठांश से अधिक होती है।
अब फिर साधारणतया चारों वर्णों के लिये पाँच प्रकार के गृहों का वर्णन है ।
उनमें ब्राह्मण के घर की चौड़ाई बत्तीस हाथ की होनी चाहिये ।
अन्य जातियों के लिये क्रमशः चार-चार हाथ की कमी होनी चाहिये।
अर्थात् ब्राह्मण के उत्तम गृह की चौड़ाई बत्तीस हाथ, क्षत्रिय के घर की अट्ठाईस हाथ, वैश्य के घर की चौबीस हाथ तथा सत्-शूद्र के घर की बीस हाथ और असत्-शूद्र के घर की सोलह हाथ होनी चाहिये।
किंतु सोलह हाथ से कमकी चौड़ाई अन्त्यजों के लिये है।
ब्राह्मण के घर की लम्बाई चौड़ाई से दशांश, क्षत्रिय के घरकी अष्टमांश, वैश्यके घर की तिहाई और शूद्र के घरकी चौथाई भाग अधिक होनी चाहिये। यही विधि श्रेष्ठ मानी गयी है।

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