मनसंगी मंच पर आयोजित वाक्य प्रतियोगिता मे इंदु धूपिया जी की बेहतरीन समीक्षा।

सारणी:- मनसंगी साहित्य संगम जिसके संस्थापक अमन राठौर जी सहसंस्थापिका मनीषा कौशल जी अध्यक्ष सत्यम जी के तत्वाधान में काव्यधारा समूह पर आयोजित प्रतियोगिता जिसका विषय *तुम होती तो। रखा गया उसमें कई रचनाकारों ने विभिन्न राज्यों से भाग लिया अपनी स्वरचित रचनाए प्रेषित की समीक्षक का कार्यभार आदरणीय इंदु धूपिया जी ने बखूबी संभाला इन्होंने कहा सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक है जिससे उन्हें चयन करने में काफी समस्या हुई छोटी छोटी बारीकियों को ध्यान में रखकर उन्होंने प्रथम स्थान नरेन्द्र वैष्णव शक्ति जी को द्वितीय स्थान सोनाली मालू जी तथा तृतीय स्थान व्यंजना आनंद मिथ्या जी को मिला
इनकी रचनाएँ क्रमबद्ध है।
*”मनसंगी काव्य धारा”*
*प्रतियोगिता, दिन – शुक्रवार*
दिनांक – 29/4/2022
*विषय – “तुम होती तो”*
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तुम होती तो जीवन मेरा , आज मधुर हो जाता ।
सुनता प्यारी बातें तेरी , सपनों में खो जाता ।।
दर्द छुपा कर जीता हूँ अब , अँधियारी गलियों में ।
प्रेम कल्पना कोरी लगतीं , बागों की कलियों में ।।
तेरी तिरछी मुस्कानों पर , अब भी मैं मर जाता ।
तुम होती तो जीवन मेरा , आज मधुर हो जाता ।।
किसे सुनाऊँ हाल भला मैं , समझूँ किसको अपना ।
सुन अतीत की जीवन गाथा , लोग कहेंगे सपना ।।
तेरे साँसों की ऊष्मा से , बनता रिश्ता-नाता ।
तुम होती तो जीवन मेरा , आज मधुर हो जाता ।।
सौम्य भाव नित खुशियाँ देने , निज दामन लहराना ।
आकर चुपके से कानों में , बात वही कह जाना ।
प्यार हमारा अमर रहेगा , गीत वही शुभ गाता ।
तुम होती तो जीवन मेरा , आज मधुर हो जाता ।।
प्रेषक
*”(नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”)”*
*हरिओम काॅलोनी वार्ड नंबर 17 , स्टेशन रोड सक्ती*
*छत्तीसगढ़*
तुम होते तो
मेरी नजर सिर्फ तुम्हे ही निहारती …
तुम्हारे साथ वो हर पल जीती जिसकी मै अब सिर्फ कल्पनाएं करती हूं …
हमेशा खिली खिली मुस्कुराहट से तुम्हारे जीवन को ओर प्रकाशित करती मै …
रोज तेरे लिए नए नए श्रृंगार करती मै…
घंटो सजती ताकि तेरी नजर ठहर सी जाए मुझे देखकर …
तुम होते तो सावन की पहली बारिश में तेरे साथ झूम उठ ती मै …
तेरे साथ कई नई धुने बनाती मै और गाकर तेरा दिल बहलाती मै ..
तुम होते तो जीवन किसी ओर ही रूप में परिभाषित होता मेरा …
तुम होते तो
सोनाली मालू
शाहपुरा , भीलवाड़ा ,राजस्थान
*शृंगार रस-वियोग*
**सृजन शब्द- तुम होते तो*
दूर पिया जो आज हुए हो , हँसी लबों की चली गयी है ।
तुम होते तो कुमकुम मेरे , देख भाल पर लगे नयी है ।।
नैन निहारे हर- पल तुमको , सुध -बुध खोई मैं रहती हूँ ।
हिया नहीं अब मेरा लगता , दर्द जुदाई का सहती हूँ ।।
कुछ मीठी यादों ने लब पर , छोटी मुस्कान बिखेरी है ।
पर नयना चिंतिंत रहते हैं ,अब दृष्टि खुशी ने फेरी है।।
काजल भी तो फीका दिखता ,वो नहीं लबों पर लाली है।
नागिन सी रात अँधेरी ये ,जो डसे सदा से काली है।।
सब शृंगार अधूरा लगता , तुमने ही हृदय लुभाया था।
है तुमसे ही जीवन मेरा ,फागुन वासंती आया था।।
अब विरहन की पीड़ा समझो , दो आलिंगन ऐसा आकर ।
यह तृप्त करो व्याकुल मनवा , मैं पूर्ण बनूँ तुमको पाकर ।।
व्यंजना आनंद ‘मिथ्या’