नंदनी लहेजा,संदीप खैरा,आकाशवीर ने मारी बाजी
सारणी। मनसंगी साहित्य संगम के तत्वाधान में आयोजित प्रतियोगिता विषय आलोचना में नंदनी लहेजा जी ने प्रथम संदीप खैरा ने द्वितीय अकाशवीर तृतीय स्थान पर रहे।
रचनाएं क्रमवार है।
नमन मंच
विषय – अलोचना
मानव के स्वाभाव मे मिलते हैं अनेकों भाव
कभी प्रेम,अपनत्व पनपता, कभी क्रोध,द्वैष ईर्षा का भराव
राग द्वैष के भाव जब बहुत अधिक हैं बढ़ जाते
छीन लेते चैन मन का,ह्रदय को विकृत कर देते
विकार बन शब्द किसी के विरुद्ध जब हम हैं बोलते
कहलाते निंदा या अलोचना,मन को तृप्त कर देते
ना भाँती हमें अच्छाई किसी की
ना किसी की प्रशंसा
केवल दिखती कमी,बुराई,हम करने लगते अलोचना
निंदा मे रस मिलता बहुत हैं
अलोचना से चैन
भूल जाते यह भी इक विकार है
मिलता सुकून दिन रैन
पर ना भूलें आलोचक बनना सरल हैं
बड़ा कठिन है अलोचना को सहना
तेरे भीतर कि नेकी को करें खत्म यह
मानव इस बात को समझना
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
विषय- आलोचना
आलोचना और प्रशंसा
एक सिक्के के दो पहलु है
आलोचना उन्हीं की होती
जिनके भाग्य में सफलता होती
इसलिए सफर को जारी रखिये
लोग प्रशंसा करे या आलोचना
यह चिन्ता छोड़कर सोचें कि
आपने ईमानदारी से अपनी
जिम्मेदारी पूरी की या नहीं
आलोचना से व्यथित होकर
अपने लक्ष्य को न छोड़ें
क्योंकि, लक्ष्य मिलते ही
लोगों की राय बदल जाती है
सराहना और आलोचना का
अपना ही लाभ होता है
सराहना से प्रेरणा मिलती
आलोचना से सुधार का अवसर
आलोचना जिंदा होने की निशानी
मरने के बाद तो तारीफ होती है ।।
संदीप खैरा”दीप”
ग्वालियर, म0प्र0
स्वरचित व मौलिक
आलोचना
क्या करूं ? भूल गया हूं
खुदको सोचना
अब करता हूं
दूसरों की आलोचना
अच्छा लगने लगा है
दूसरों के दिल को खरोचना
बड़ा मजा आता है
करके इसकी उसकी आलोचना
छोड़ चुका हूं
अपना दिल टटोलना
मैं सबसे अच्छा
बुरों की करता आलोचना
थाली में खाने से ज्यादा
सबकी बातें परोसना
तृप्त हो जाएगी आत्मा
करके लोगों की आलोचना
आलोचक नहीं हूं मैं किसी का
लेकिन ‘मैं’ हूं सबसे महान
बस मैं ही हूं जो भी हूं
करता हूं इसकी विवेचना
’‘मैं’ से छुटकारा पाओ ….