हसलपुर का रुदन ,तपती दुपहरी:- (गौरी बालापुरे पदम)
बैतुल। किसी के पांव में चप्पल तो कोई नंगे पैर था..कोई बाल्टी लिए तो कोई पाइप को थामे था…चारों तरफ बस धुंधलका था..धुआं था..ग़ुबार था…सैकडों जोड़ी आंखे बरस रही थी..तरस रही थी.. व्यथित थी..आकुल और व्याकुल थी..कोई टकटकी लगाए था..तो कोई स्तब्ध था..कोई भाग रहा था, तो कहीं चीख-पुकार थी..पांच साल के हजारों मासूम बच्चे जल रहे थे और उनके पालक दावानल में राख होती जिंदगियों की धड़कनें न बचा पाने की लाचारी से छटपटा रहे थे। आमला के नज़दीकी हसलपुर ग्राम की सुरम्य और हरी-भरी पहाड़ी भरी दुपहरी में सुलग रही थी..आग की भयावह लपटों और पहाड़ी से उठते धुएं ने जब प्रकृति के रक्षकों को सूचना दी, तो कुछ ही मिनटों में गांव और शहर से सैकड़ों लोग बच्चे, बुजुर्ग, जवान सब दौड़ पड़े थे, पहाड़ी पर रोपे गए नन्हें पौधों को बचाने.. बैतूल, आमला यहां तक कि वायुसेना की दमकलों से भी आग न बुझाई जा सकी। पांच बरस में गायत्री परिवार के न जाने कितने स्वयंसेवकों ने इस पहाड़ी पर पौधे रोपे, अपने पसीने से हजारों पौधों को सींचा..
आम नागरिक, स्कूल के नौनिहालों, सामाजिक संगठनों ने बच्चों की तरह उन पौधों का ध्यान रखा। गर्मी, बरसात, ठंड से जिन्हें बचाया उन्हें किसी की बुरी नजऱ से नहीं बचा पाए। पांच वर्ष पहले जो पहाड़ी वीरान थी वहां चहचहाहट लौट रही थी, हंसी- ठिठोली और ठहाके लौट रहे थे..हरियाली की चादर ओढ़ चुकी इस पहाड़ी पर बाबा रामटेक और अंजनी के लाल के दर्शन के लिये तांता लगने लगा था..प्रकृति पुत्रों द्वारा पहाड़ी पर की हरीतिमा की सिग्नेचर के साथ लोग सेल्फी खींचने लगे थे..हसलपुर भी अपनी इस विरासत इस हरी-भरी पहाड़ी पर इतराने-इठलाने लगा था..पांच बरस में पौधों की जो पहली खेप लगाई थी, वह पेड़ बनने की दहलीज तक पहुंच चुकी थी और जो आखरी खेप थी उसमें नई कोपलें फूट रही थी…इस गर्मी आखरी खेप में लगे पौधों को हर तरह से बचाने का मंथन भी जारी था…
पर सब धूं-धूं कर जल गया…एक साथ हजारों बच्चे और युवा पौधे बिना चीखे.. राख हो गए…खुद को बचाने के लिये युवा पेड़ो ने पत्ते तक नहीं हिलाए शायद वह महसूस कर रहे थे डाली और पत्ते हिले तो दूसरे पौधे और पेड़ों को नुकसान होगा। स्वयंसेवकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी..पर दावानल के सामने सारे प्रयास, सारी दुआएं, सारी मेहनत बौनी साबित हुई…जिन पौधों को स्नेह से रोपा उनके जल जाने के बाद आमला स्तब्ध है.. बैतूल बेचैन और हसलपुर रुदन कर रहा है। हर एक प्रकृति प्रेमी की आंखे नम है…हसलपुर की सुलगती पहाड़ी एक शिक्षा तो दे गई कि सेवा से द्वेष के परिणाम कभी भी सुखद नहीं हो सकते। पता नहीं वह कौन था..? क्या सोचकर उसने हरियाली पर ग्रहण लगा दिया…? नशे में किया कृत्य है या दुर्घटना, बीड़ी-सिगरेट पीकर सुलगता छोड़ गया कोई या जानबुझकर एक खुबसूरत पहाड़ी को फिर से विरान बनाने की साजिश। यह जांच का विषय हो सकता है। जिले के उन सभी प्रकृति पे्रमियों से बस एक ही अनुरोध है कि यह वक्त हार मानने का नहीं है… बाधाओं से जो लड़ा वह जीता जरूर है.. जो पहाड़ी कल हरी थी आज काली है, पर फिर यह हरियाली की चादर ओढ़ेगी.. कल फिर सूरज निकलेगा…कल फिर पंछी गाएंगे…
बैतूल से आमला जाने और लौटने के दौरान कई बार मैंने इस पहाड़ी के तल में खड़े होकर शिखर पर विराजे बाबा रामटेक और बजरंगबली का जयकारा लगाया है.. कभी मंदिर में जाकर दर्शन नहीं कर पाई…कईयों बार यहां फ़ोटो भी खिंचवाए..पर अबकी बार जब आमला जाऊँगी एक पौधा मैं भी इस वीरान पहाड़ी को फिर से हरा-भरा देखने की चाह में लगाउंगी…
एक जतन और अभी एक जतन और,
रोशनी उगाने का एक जतन और।
कब तक सहेंगे इन कड़वे अँधियारों को,
अंधे अनुसरणों में, बंधे गतिकारों को,
समय की हथेली पर, एक रतन और..
एक जतन और अभी एक जतन और!!
गौरी बालापुरे पदम
नेशनल यूथ अवार्डी